India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Katha: महाभारत के मुख्य पात्र दुर्योधन के बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उसकी पत्नी कौन थी, जिससे वो बेहद प्यार करता था? महाभारत युद्ध में अपने पति और कौरवों की मृत्यु के बाद उसका क्या हुआ? दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमती था, जो एक अद्वितीय सुंदरी थी। क्षेत्रीय कहानियों में कहा गया है कि जब दुर्योधन नहीं रहा, तो भानुमती ने अर्जुन से विवाह किया। ऐसा कहा जाता है कि दुर्योधन से विवाह करने से पहले, वो गुप्त रूप से अर्जुन से प्रेम करती थी। हालांकि, महाभारत या उसके बाद के ग्रंथों में अर्जुन से उसके विवाह का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

महाभारत के अनुसार, दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमती था। महाभारत में दुर्योधन की पत्नी का उल्लेख तीन बार किया गया है। शांति पर्व में बताया गया है कि दुर्योधन ने कर्ण की मदद से राजा चित्रांगद की बेटी भानुमती को स्वयंवर से हरण कर लिया और उससे विवाह किया। आगे चलकर स्त्री पर्व में भी दुर्योधन की सास गांधारी ने भानुमति का जिक्र किया है। भानुमति के एक बेटा और एक बेटी थी। शांति पर्व में नारद मुनि दुर्योधन और कर्ण की मित्रता की कहानी सुनाते हैं और बताते हैं कि कैसे दुर्योधन ने कर्ण की मदद से कलिंग राजा चित्रांगद की बेटी का अपहरण कर उससे विवाह किया।

पूरी ज़िंदगी की कृष्ण की पूजा

कहा जाता है कि भानुमती ने पूरी ज़िंदगी कृष्ण की पूजा की। बेशक, उनके पति दुर्योधन ने अक्सर कृष्ण को डांटा, उनका अपमान भी किया, लेकिन भानुमती के लिए वो हमेशा उनके आदर्श रहे। अपने पति की मृत्यु के बाद भी, वो उनकी भक्त रहीं। महाभारत के स्त्री पर्व में दुर्योधन की माता गांधारी कृष्ण से अपनी पुत्रवधू का वर्णन इस प्रकार करती हैं। भानुमती के पुत्र का नाम लक्ष्मण था, जो स्वयं महाभारत युद्ध में मारा गया था। पुत्री का नाम लक्ष्मणा था।

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गांधारी कृष्ण से कहती हैं, हे कृष्ण! देखो, यह दृश्य मेरे पुत्र की मृत्यु से भी अधिक दुःखदायी है। दुर्योधन की प्रिय पत्नी बहुत बुद्धिमान कन्या है, देखो वह अपने पति और पुत्र के लिए किस प्रकार विलाप कर रही है।

अर्जुन से क्यों की शादी

अब सवाल यह उठता है कि भानुमती ने अपने पति दुर्योधन के सबसे बड़े दुश्मन पांडु के बेटे अर्जुन से शादी क्यों की। भानुमती जितनी खूबसूरत थी उतनी ही चतुर भी थी। कहा जाता है कि जब महाभारत का युद्ध तय हो गया था तो भानुमती को पता था कि कौरवों का नाश हो जाएगा। अपने कुल को बचाने के लिए उसने भगवान श्री कृष्ण के बेटे सांब को अपनी बेटी लक्ष्मणा के साथ भागने की तरकीब सुझाई।

अपनी बेटी का विवाह कृष्ण के बेटे साम्भ से किया

एक अन्य कथा के अनुसार, जब साम्भ लक्ष्मण का अपहरण करके भाग गया, तो भानुमति ने दुर्योधन को उसके अपहरण की याद दिलाई और लक्ष्मण का विवाह साम्भ से करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भानुमति ने अपने कुल को बचाने के लिए हर असंभव कार्य किया, हर उस चीज को जोड़ा, जिसे जोड़ना असंभव था। इसीलिए भानुमति ने इधर से ईंट और उधर से पत्थर लेकर कुल को जोड़ा। इससे संबंधित एक कहावत गढ़ी गई।

क्या कृष्ण ने भानुमती और अर्जुन की शादी तय की थी?

लक्ष्मण को अपने बेटे की मौत का गहरा सदमा लगा था। महाभारत युद्ध में दुर्योधन के बेटे की हत्या अभिमन्यु ने कर दी थी। इसके बाद भी भानुमती जानती थी कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए उसे अर्जुन से शादी करनी चाहिए। इसमें भगवान कृष्ण की खास भूमिका थी। उन्होंने अर्जुन और भानुमती की शादी तय कर दी।

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दुर्योधन से शादी करने से पहले अर्जुन को ही करती थी पसंद

इसके पीछे एक और कहानी बताई जाती है कि भानुमती शल्य की बेटी थी, जो नकुल और सहदेव के चाचा थे। वह पहले अर्जुन से शादी करना चाहती थी। जब स्वयंवर हुआ तो अर्जुन उसमें नहीं आए। तब उनके पिता चाहते थे कि उनका विवाह दुर्योधन से हो जाए, तो उन्होंने वैसा ही किया, लेकिन पति की मौत के बाद उन्होंने अर्जुन की नौवीं पत्नी बनना चुना। इसकी वजह यह भी थी कि अब लड़ाई-झगड़ा न हो और कुल में शांति बनी रहे।

पांडवों ने भी किया था भानुमती का सम्मान

महाभारत में युद्ध के बाद की कहानी बहुत ज़्यादा नहीं है, इसलिए किसी भी बड़े ग्रंथ में अर्जुन और भानुमती के विवाह के बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन यह बात पूरी तरह से तय है कि महाभारत युद्ध में भीम के हाथों दुर्योधन की मृत्यु के बाद पांडवों ने भानुमती का सम्मान किया था। वह अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित थी। उसने कौरव और पांडव परिवारों को एकजुट करने की कोशिश की। कुछ जानकारी यह भी कहती है कि पति की मृत्यु के बाद वह विधवा रही।

कहानियों में यह भी कहा जाता है कि भानुमती ने अपने ससुराल में रहकर धृतराष्ट्र की सेवा की। उसने गंगा नदी के किनारे धृतराष्ट्र के साथ रहकर तपस्या की। बाद में भानुमती ने गंगा में समाधि ले ली।

जब भानुमती को लगा कि दुर्योधन उस पर शक न करे

एक तमिल लोककथा है, जिसमें बताया गया है कि दुर्योधन के कहने पर कर्ण अक्सर भानुमती की देखभाल करने के लिए उसके पास आता था। कर्ण और भानुमती पासा खेलने लगे। धीरे-धीरे कर्ण जीतने लगा। इसी बीच दुर्योधन वापस आ गया। वह कमरे में दाखिल हुआ। अपने पति को अंदर आता देख भानुमती आदरपूर्वक खड़ी हो गई। कर्ण ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उसने सोचा कि भानुमती इसलिए खड़ी है क्योंकि वह हारना नहीं चाहती।

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जब कर्ण ने भानुमती की शॉल पकड़ी और उसे खींचा तो शॉल के मोती बिखर गए। इससे भानुमती की स्थिति बहुत ही अजीब हो गई। वह हैरान थी कि पता नहीं अब उसका पति क्या सोचेगा और क्या करेगा। तब दुर्योधन ने अपनी समझदारी दिखाई और दोनों को एक अप्रिय स्थिति से बचाया। उसने अपनी पत्नी से कहा, “क्या मैं सिर्फ मोती इकट्ठा करूं या तुम चाहोगी कि मैं उन्हें पिरो भी दूं?” दरअसल, दुर्योधन को अपनी पत्नी पर बहुत भरोसा था।

शिवाजी सावंत के उपन्यास मृत्युंजय में, जो कर्ण के जीवन पर आधारित है, लिखा है कि भानुमती की एक दासी थी जिसका नाम सुप्रिया था, जो उसके बहुत करीब थी। जब दुर्योधन और कर्ण ने भानुमती का अपहरण किया, तो सुप्रिया भी साथ आई। भानुमति ने दुर्योधन को अपना जीवन साथी स्वीकार किया, जबकि सुप्रिया ने कर्ण को अपना पति चुना।

 

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