India News (इंडिया न्यूज), Shiv Ji Ki Behen: भगवान शिव, जिन्हें अनादि और स्वयंभू माना जाता है, सृष्टि के संहारक, रुद्र और महादेव के रूप में पूजनीय हैं। उनकी अनेक छवियाँ हैं, जैसे वीरभद्र, नटराज, काल भैरव और अर्धनारीश्वर, जो उनके विविध पहलुओं को दर्शाती हैं। भगवान शिव की महानता और रहस्यमयता की कथाएँ पौराणिक ग्रंथों में प्रचलित हैं। लेकिन क्या आपने कभी भगवान शिव की बहन असावरी देवी के बारे में सुना है? आइए, जानें उनके और माता पार्वती से जुड़ी एक दिलचस्प कथा।
जब माता पार्वती, भगवान शिव से विवाह कर कैलाश पर्वत पर आईं, तो उन्होंने वहां कई बार अकेलापन और उदासी महसूस की। भगवान शिव, जो सबके मन की गहराई को समझते हैं, ने पार्वती जी की उदासी का कारण जानने की कोशिश की। जब उन्होंने पार्वती से पूछा, तो माता पार्वती ने बताया कि उन्हें एक ननद की कमी महसूस हो रही है।
भगवान शिव ने तुरंत इस समस्या का समाधान निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने पार्वती से पूछा कि क्या वे ननद के साथ निभा सकेंगी। पार्वती ने उत्तर दिया कि ननद से उनकी क्यों नहीं बनेगी। शिव ने उनकी इच्छा पूरी करने का वादा किया।
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भगवान शिव ने अपनी माया से एक स्त्री उत्पन्न की, जिसका नाम असावरी देवी था। लेकिन असावरी देवी का स्वरूप बहुत ही असामान्य था – वह मोटी, भद्दी और उसके पैर भी फटे हुए थे। जब असावरी देवी कैलाश पर्वत पहुंचीं, तो माता पार्वती ने उन्हें देखकर खुशी जताई और उनके लिए भोजन का प्रबंध करने लगीं।
असावरी देवी ने स्नान के बाद स्वादिष्ट भोजन का आग्रह किया। पार्वती ने समस्त भोजन उनके सामने पेश किया, जिसे असावरी देवी ने तुरंत खा लिया। भोजन के बाद, असावरी देवी को शरारत सूझी। उन्होंने अपनी फटी हुई पांव की दरारों में माता पार्वती को छिपा दिया, जिससे पार्वती जी का दम घुटने लगा।
जब भगवान शिव वापस आए और अपनी पत्नी को न देखकर चिंतित हुए, तो उन्होंने असावरी देवी से पूछा कि क्या यह उनकी चाल है। असावरी देवी मुस्कुराई और पार्वती जी को अपने पांव की दरारों से आजाद किया। पार्वती ने भगवान शिव से विनती की, “भोलेनाथ, कृपया इस ननद को ससुराल भेज दें, अब और धैर्य नहीं रखा जाता।”
भगवान शिव ने पार्वती की इस व्यथा को समझते हुए असावरी देवी को कैलाश पर्वत से विदा कर दिया। इस घटना के बाद, ननद-भाभी के बीच छोटी-छोटी तकरार और नोंक-झोंक का सिलसिला शुरू हो गया।
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भगवान शिव की बहन असावरी देवी की कथा केवल एक पौराणिक कहानी नहीं है, बल्कि यह रिश्तों की जटिलताओं और पारिवारिक जीवन के असली पहलुओं को भी उजागर करती है। यह कथा बताती है कि भले ही दिव्य पात्र हों, उनके भी जीवन में सामान्य मानवीय भावनाएँ और संघर्ष होते हैं। ननद-भाभी के बीच का यह अनूठा रिश्ता हमें यह सिखाता है कि कैसे परिवार के सदस्य एक-दूसरे की कमी और जरूरतों को समझ सकते हैं और उनके साथ समरसता बनाए रख सकते हैं।
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