India News (इंडिया न्यूज़), Ravan Purva Janam: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था और माता सीता को उनके बाल रूप से मुक्त कराया था। रावण के बारे में कहा जाता है कि वो बहुत ज्ञानी व्यक्ति था, लेकिन उसकी वजह से उसका आचरण समाप्त हो गया। रावण के जन्म के बारे में कहा जाता है कि वह लंका में राक्षसों का राजा था। रामायण में आईएमएस ज़ारियत भी है। लेकिन कुछ प्रमाणों के अनुसार, रावण अपने पिछले जन्म में राक्षस नहीं था। यहां जानें रावण के पिछले जन्मों के बारे में जानकारी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जय-विजय नाम के दो द्वारपाल हमेशा वैकुंठ के द्वार पर खड़े होकर भगवान विष्णु की सेवा करते थे। एक बार सनकादि मुनि श्री हरि विष्णु के दर्शन करने आए, लेकिन जय-विजय ने उन्हें रोक दिया। इससे क्रोधित होकर सनकादि मुनि ने उन्हें राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब विष्णु जी वहां आए और जय-विजय को श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की। तब सनकादि मुनि ने कहा कि “इनके कारण मुझे आपके दर्शन में 3 सेकंड की देरी हुई है, इसलिए ये तीन जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लेंगे और तीनों जन्मों में स्वयं भगवान श्री हरि इनका अंत करेंगे।”
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इसके बाद जय-विजय अपने पहले जन्म में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नाम के राक्षस बने। कहा जाता है कि हिरण्याक्ष ने एक बार पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार में उसका वध कर पृथ्वी को उसके स्थान पर पुनः स्थापित किया था। अपने भाई की मृत्यु से हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ और ब्रह्मदेव से अनेक वरदान प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर मानने लगा था। तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप का वध किया था।
फिर जय-विजय अपने दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण बने। इस जन्म में रावण लंका का राजा था। कुंभकर्ण का शरीर इतना विशाल था कि वो पलक झपकते ही हजारों लोगों का भोजन खा सकता था। फिर भगवान विष्णु ने 7वें अवतार में अयोध्या के राजा दशरथ के यहां श्री राम के रूप में जन्म लिया। तब उन्होंने रावण और कुंभकर्ण का वध किया।
कुछ प्रमाणों के अनुसार, तीसरे जन्म में जय-विजय यानी रावण और कुंभकर्ण ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लिया। ऐसा कहा जाता है कि शिशुपाल और दंतवक्र दोनों ही भगवान कृष्ण की बुआ के बेटे थे, लेकिन फिर भी वो उनसे दुश्मन थे। उनके बुरे कर्मों के कारण श्री हरि के अवतार भगवान कृष्ण ने इस जन्म में उनका वध कर दिया। तीन जन्मों के बाद वो फिर से जय-विजय के रूप में वैकुंठ लोक लौट आए।
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