Hindi News / Dharam / Why Did Draupadi Wipe Away The Vermilion From Her Hairline Even When Her Husband Was Alive Know The Full Story

क्यों पतियों के जिंदा होते हुए भी द्रौपदी ने पोंछ दिया था अपनी मांग का सिंदूर, महाभारत की इस गाथा का सच बेहद ही कम लोगों को होगा मालूम!

Mahabharat Kahani: क्यों पतियों के जिंदा होते हुए भी द्रौपदी ने पोंछ दिया था अपनी मांग का सिंदूर

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Kahani: महाभारत, भारतीय संस्कृति और इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण गाथाओं में से एक, न केवल युद्ध और धर्म के संदेश देती है, बल्कि उसमें नारी के सम्मान, साहस और पीड़ा की भी मार्मिक कहानियाँ छिपी हैं। इनमें से एक अत्यंत पीड़ादायक घटना है द्रौपदी का चीरहरण। यह घटना न केवल महाभारत युद्ध का कारण बनी, बल्कि यह नारी शक्ति और स्वाभिमान का प्रतीक भी है।

द्रौपदी और उनके पतियों का संबंध

द्रौपदी, जिन्हें पांचाली भी कहा जाता है, पांडवों की पत्नी थीं। उनके पांच पति, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं में गिने जाते हैं। द्रौपदी ने अपनी समर्पण और प्रेम से हमेशा अपने पतियों का साथ दिया। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब द्रौपदी को अपने इन्हीं पतियों से गहरा दुख पहुंचा।

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Mahabharat Kahani: क्यों पतियों के जिंदा होते हुए भी द्रौपदी ने पोंछ दिया था अपनी मांग का सिंदूर

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चीरहरण की घटना

यह घटना उस समय की है जब युधिष्ठिर जुए में अपनी संपत्ति, राज्य, भाई, और अंततः द्रौपदी को भी दांव पर लगा देते हैं। जब पांडव जुए में हार जाते हैं, तो दुर्योधन अपने भाई दु:शासन को आदेश देता है कि वह द्रौपदी को सभा में घसीटकर लाए। यह द्रौपदी के स्वाभिमान और नारी मर्यादा का क्रूर अपमान था। द्रौपदी, जो उस समय मासिक धर्म के दौरान एकल वस्त्र में थीं, दरबार में खींचकर लाई जाती हैं।

पतियों का मौन और द्रौपदी की व्यथा

द्रौपदी की सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि उनके पांचों पति इस अपमानजनक घटना के दौरान मौन बने रहे। यह वही पति थे जिनके लिए द्रौपदी ने हर कठिन परिस्थिति में साथ दिया था। लेकिन इस स्थिति में वे विवश और निष्क्रिय खड़े रहे। द्रौपदी को यह महसूस हुआ कि वे केवल वस्तु बनकर रह गई थीं, जिन्हें जुए के खेल में दांव पर लगाया जा सकता था। इसी पीड़ा और अपमान के कारण द्रौपदी ने अपनी मांग का सिंदूर पोंछ दिया, जो उनके पतियों के प्रति उनका समर्पण और प्रेम का प्रतीक था।

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भगवान कृष्ण का हस्तक्षेप

जब दु:शासन ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया, तो द्रौपदी ने अपनी रक्षा के लिए भगवान कृष्ण को पुकारा। उनकी पुकार सुनकर भगवान कृष्ण ने उनकी लाज बचाई और उनके चीर को अनंत कर दिया। यह भगवान कृष्ण का दिव्य चमत्कार था, जिसने न केवल द्रौपदी की मर्यादा की रक्षा की, बल्कि धर्म की विजय का मार्ग भी प्रशस्त किया।

द्रौपदी की प्रतिज्ञा

इस घटना के बाद द्रौपदी ने प्रतिज्ञा ली कि वह तभी अपने बाल बांधेंगी जब कौरवों के रक्त से अपने बाल धोएंगी। यह प्रतिज्ञा उनके आहत स्वाभिमान और कौरवों के प्रति उनके क्रोध का प्रतीक थी। यही प्रतिज्ञा महाभारत युद्ध के लिए प्रेरणा बनी।

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द्रौपदी: नारी शक्ति और स्वाभिमान का प्रतीक

द्रौपदी की कहानी नारी सम्मान और स्वाभिमान की अद्भुत मिसाल है। उन्होंने अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों का साहस और धैर्य से सामना किया। उनकी प्रतिज्ञा और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष यह दर्शाता है कि एक नारी अन्याय को सहन नहीं करती, बल्कि उसके खिलाफ उठ खड़ी होती है।

द्रौपदी का चीरहरण न केवल महाभारत का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, बल्कि यह मानवता के लिए एक सीख भी है। यह घटना हमें सिखाती है कि नारी का सम्मान सर्वोपरि है और किसी भी परिस्थिति में उसकी मर्यादा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। यह गाथा हमें धर्म, साहस और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

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