India News (इंडिया न्यूज़), Ganesh Special: हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश को सर्वप्रथम पूजे जाने वाले देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत श्री गणेश के स्मरण से ही होती है, क्योंकि वे सुख-समृद्धि और ज्ञान के देवता माने जाते हैं। इसके अलावा, गणेश जी को ‘प्रथम लिपिकार’ यानी प्रथम लेखक के रूप में भी प्रतिष्ठा मिली है। उन्होंने महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत का लेखन किया था। इस पौराणिक कथा का विवरण काफी रोचक और प्रेरणादायक है, जिसमें गणेश जी की भूमिका महत्वपूर्ण है।
गणेश जी ने क्यों किया महाभारत का लेखन?
महाभारत, एक महान महाकाव्य, महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित है। महाभारत के निर्माण की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार है कि महर्षि वेद व्यास ने गहन तपस्या के माध्यम से इस महाकाव्य का स्मरण किया और उसे दुनिया के सामने लाने का निश्चय किया। लेकिन समस्या यह थी कि इस विशाल ग्रंथ को लिखेगा कौन? यह एक कठिन कार्य था, क्योंकि महाभारत की जटिलता और गहराई को शब्दों में ढालना सरल नहीं था।
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ब्रह्मा जी का सुझाव और गणेश जी का चयन
महर्षि वेद व्यास ने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए ब्रह्मा जी की शरण ली। ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान गणेश का नाम सुझाया, क्योंकि गणेश जी की लिखावट तेज, सुंदर और स्पष्ट थी। वेद व्यास ने गणेश जी से इस दिव्य कार्य के लिए प्रार्थना की, और गणेश जी ने इसे स्वीकार कर लिया।
शर्तों के साथ हुआ लेखन कार्य का आरंभ
गणेश जी और महर्षि वेद व्यास के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी शर्तें रखीं। गणेश जी ने शर्त रखी कि वे लिखने के दौरान रुकेंगे नहीं, और अगर वे रुक गए, तो आगे लेखन नहीं करेंगे। यह शर्त सुनकर वेद व्यास ने भी एक चालाकी भरी शर्त रखी कि गणेश जी को प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझने के बाद ही उसे लिखना होगा। गणेश जी ने वेद व्यास की इस शर्त को स्वीकार कर लिया।
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महाभारत का लेखन
महाभारत का लेखन कार्य शुरू हुआ, और इस प्रक्रिया में वेद व्यास ने जटिल श्लोकों का निर्माण किया, जिनका अर्थ समझने में गणेश जी को समय लगता था। इस प्रकार वेद व्यास को अपने अगले विचारों को व्यवस्थित करने का समय मिल जाता था। इस प्रकार, गणेश जी ने महाभारत को लिपिबद्ध किया, जो आज भी विश्व के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण महाकाव्यों में से एक माना जाता है।
निष्कर्ष
भगवान गणेश जी का महाभारत लेखन न केवल उनकी बुद्धिमत्ता और प्रतिभा का परिचायक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सही योजना और धैर्य के साथ कठिन से कठिन कार्य भी संपन्न हो सकते हैं। इस पौराणिक कथा से हमें यह सीख मिलती है कि कठिनाइयों के बावजूद, धैर्य और दृढ़ संकल्प से हम किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक पूरा कर सकते हैं। श्री गणेश जी का यह योगदान उन्हें केवल प्रथम पूजनीय देवता ही नहीं, बल्कि महान लेखक और ज्ञान के प्रतीक के रूप में भी स्थापित करता है।
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