धर्म

पापी रावण को मुक्का मारने के बाद खुद क्यों रो पड़े थे हनुमान जी, जानें राम भक्त ने उसके बाद क्या किया?

India News (इंडिया न्यूज़), Hanuman Ji Punched Ravana: हनुमान जी, जिन्हें “महावीर” कहा जाता है, अजर और अमर हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि जो भी भक्त उनकी शरण में आएगा, उसका इस कलियुग में कोई भी बुरा नहीं कर सकेगा। हनुमान जी ने उन भक्तों के कष्टों को शीघ्र दूर किया है, जिन्होंने उनकी भक्ति पूर्ण भाव और निष्ठा से की। वास्तव में, हनुमान भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता; उनके संकटों को स्वयं हनुमान जी हर लेते हैं।

हनुमान जी की विशेषताएँ

रामचरितमानस में हनुमान जी को “महावीर” कहा गया है। शास्त्रों में “वीर” शब्द का उपयोग अन्य योद्धाओं जैसे भीम, भीष्म, मेघनाथ और रावण के लिए भी किया गया है, लेकिन “महावीर” शब्द केवल हनुमान जी के लिए ही विशेष है। रामचरितमानस के अनुसार, “वीर” वह है जो पाँच लक्षणों से युक्त होता है:

  1. विद्या-वीर
  2. धर्म-वीर
  3. दान-वीर
  4. कर्म-वीर
  5. बलवीर

“महावीर” वह है जिसने इन पाँच लक्षणों से युक्त वीरों को भी अपने वश में कर रखा हो। भगवान श्री राम में भी ये पाँच लक्षण थे, और हनुमान जी ने उन्हें भी अपने वश में किया था।

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हनुमान जी का बल

शास्त्रानुसार, इंद्र के “एरावत” में 10,000 हाथियों के बराबर बल होता है। “दिग्पाल” में 10,000 एरावत जितना बल होता है। इंद्र में 10,000 दिग्पाल का बल होता है। लेकिन हनुमान जी की सबसे छोटी उंगली में 10,000 इंद्र का बल होता है। इस शक्ति का एक रोचक प्रसंग है जब रावण का पुत्र मेघनाथ हनुमान जी के मुक्के से बहुत डरता था। हनुमान जी को देखते ही मेघनाथ भाग खड़ा होता था।

रावण और हनुमान जी का संवाद

जब रावण ने हनुमान जी के मुक्के की प्रशंसा सुनी, तो उसने हनुमान जी से सामना करने की चुनौती दी। रावण ने कहा, “आपका मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा मेरे ऊपर भी आजमाओ।” हनुमान जी ने कहा, “ठीक है! पहले आप मारो।” इस पर रावण ने कहा, “मैं क्यों मारूँ? पहले आप मारो।”

हनुमान जी ने कहा, “आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे।”

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इस पर रावण ने पहले हनुमान जी को मुक्का मारा। यह प्रसंग रामचरितमानस में इस चौपाई से पुष्टि होती है:

“देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर।
आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर।”

रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेक कर रह गए, लेकिन वे पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरकर उठे। रावण मोह का प्रतीक है, और मोह का मुक्का इतना तगड़ा होता है कि अच्छे-अच्छे संत भी अपने घुटने टेक देते हैं।

हनुमान जी की विजय

फिर हनुमान जी ने रावण को एक घुसा मारा, जिससे रावण ऐसा गिर पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो। मूर्च्छा भंग होने पर रावण जागा और हनुमान जी के बल की सराहना करने लगा। गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि “अहंकारी रावण किसी की प्रशंसा नहीं करता, लेकिन मजबूरन हनुमान जी की प्रशंसा कर रहा है।”

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प्रशंसा सुनकर हनुमान जी को प्रसन्न होना चाहिए था, लेकिन वे रो रहे थे और स्वयं को धिक्कार रहे थे। गोस्वामी जी के अनुसार, हनुमान जी ने रोते हुए कहा:

“मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है,
जो हे देवद्रोही! तू अब भी जीता रह गया।”

यह दर्शाता है कि हनुमान जी का मुक्का खाने के बाद भी रावण जीवित है। यह मोह की ताकत का प्रतीक है। मोह को यदि कोई मार सकता है तो केवल भगवान श्रीराम हैं; इसके लिए यह चौपाई प्रमाणित करती है:

“मुरुछा गै बहोरि सो जागा।
कपि बल बिपुल सराहन लागा धिग धिग मम पौरुष धिग मोही।
जौं तैं जिअत रहेसिसुरद्रोही।”

निष्कर्ष

हनुमान जी की भक्ति में शक्ति और साहस है। उनकी कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि असंभव को संभव करने का सामर्थ्य केवल भक्ति में है। हनुमान जी ने न केवल अपने भक्तों की रक्षा की है, बल्कि उन्होंने जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा भी दी है। हनुमान जी के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति से हम जीवन के संकटों का सामना कर सकते हैं।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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