India News (इंडिया न्यूज), Shree Ram: श्रीरामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में भगवान राम का जीवन, उनके आदर्श और उनके द्वारा किए गए कार्यों का विस्तार से वर्णन मिलता है। इन्हीं पवित्र ग्रंथों में एक कथा का वर्णन है, जो पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराने की परंपरा से जुड़ी हुई है। इस कथा का संबंध श्रीरामचरितमानस में एक प्रसंग से है, जो भगवान राम, माता सीता, और इंद्रदेव के पुत्र जयंत से संबंधित है।
श्रीरामचरितमानस में वर्णित कथा के अनुसार, एक दिन भगवान श्रीराम माता सीता के बालों में फूल सजा रहे थे। यह सुंदर दृश्य इंद्रदेव के पुत्र जयंत ने देखा और उन्हें भगवान राम की दिव्यता पर संदेह हुआ। जयंत को विश्वास नहीं हुआ कि यह वही भगवान विष्णु के अवतार हैं, जिनकी महिमा का बखान किया जाता है। सत्य की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उन्होंने कौए का रूप धारण किया और माता सीता के पैर में चोंच मार दी। इससे माता सीता के पैर में घाव हो गया और वे पीड़ा से कराह उठीं।
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जब भगवान राम ने यह देखा तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने तुरंत ही एक तीर लिया और उसे कौए के पीछे छोड़ दिया। जयंत, जो कौए का रूप धारण किए हुए थे, यह देखकर भयभीत हो गए और अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। जयंत ने ब्रह्मलोक से लेकर शिवलोक तक हर जगह शरण लेने की कोशिश की, लेकिन कोई भी देवता उनकी सहायता करने में सक्षम नहीं था।
अंततः जयंत अपने पिता इंद्रदेव के पास पहुंचे और उनसे सहायता की गुहार लगाई। इंद्रदेव ने कहा कि इस बाण से तुम्हारी रक्षा केवल भगवान राम ही कर सकते हैं। जयंत को यह सुनकर समझ आ गया कि अब उन्हें केवल भगवान राम की शरण में ही मुक्ति मिल सकती है। वे तुरंत भगवान राम के चरणों में गिर पड़े और अपने किए के लिए क्षमा मांगने लगे।
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भगवान राम ने जयंत की प्रार्थना सुनी, लेकिन कहा कि वे इस बाण को वापस नहीं ले सकते। हालांकि, उन्होंने बाण के प्रभाव को कम करने का वचन दिया। बाण ने जयंत, जो अब भी कौए के रूप में थे, की एक आंख फोड़ दी। उसी समय से माना जाता है कि कौआ केवल एक आंख से देखता है।
इस घटना के बाद, भगवान राम ने कौए को एक विशेष वरदान दिया। उन्होंने कहा कि यदि किसी ने तुम्हें भोजन कराया, तो उसके पितृ प्रसन्न होंगे और उन्हें शांति प्राप्त होगी। इसी वरदान के कारण, पितृ पक्ष में पितरों के साथ-साथ कौए के लिए भी भोजन निकालने की परंपरा आरंभ हुई। यह परंपरा आज भी पितृ पक्ष में निभाई जाती है, जहां लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए कौए को भोजन कराते हैं, ताकि उनके पितृ प्रसन्न हो सकें और उन्हें सद्गति प्राप्त हो।
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इस प्रकार, श्रीरामचरितमानस में वर्णित यह कथा हमें बताती है कि भगवान राम के जीवन में हर घटना का गहरा अर्थ है, और पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराने की परंपरा भी उनके द्वारा दिए गए वरदान का ही परिणाम है।
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