Hindi News / Dharam / Why Did Shri Krishna Marry Iravan Despite Being In Love With Radha Rani How Much Do You Know About This Story Of Mahabharata

राधा रानी से प्रेम के बावजूद भी क्यों श्री कृष्ण ने किया था इरावन से विवाह? महाभारत की इस गाथा को कितना जानते है आप!

Mahabharat Kathayein: राधा रानी से प्रेम के बावजूद भी क्यों श्री कृष्ण ने किया था इरावन से विवाह

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Katha: सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को जगत के पालनहार और अधर्म का नाश करने वाले के रूप में पूजा जाता है। उनकी भक्ति और पूजा-अर्चना से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण की कई लीलाएं महाभारत और अन्य ग्रंथों में वर्णित हैं। इनमें से एक अनोखी कथा अर्जुन के किन्नर पुत्र इरावन से उनके विवाह से जुड़ी है। यह प्रसंग धार्मिक और पौराणिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए इस कथा को विस्तार से समझते हैं।

कौन थे इरावन?

पौराणिक कथा के अनुसार, इरावन अर्जुन और नाग कन्या उलूपी के पुत्र थे। उन्हें मायावी अस्त्र-शस्त्रों का अद्वितीय ज्ञान था और महाभारत के युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया। युद्ध के दौरान उन्होंने शकुनि के छह भाइयों का अंत किया और कई योद्धाओं को पराजित किया।

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पांडवों की विजय के लिए बलिदान की आवश्यकता

महाभारत के युद्ध के दौरान, देवी चामुण्डा की कृपा प्राप्त करने और युद्ध में विजय सुनिश्चित करने के लिए पांडवों को बलिदान देना आवश्यक था। इरावन ने स्वयं को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। हालांकि, पांडव इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे। भगवान श्रीकृष्ण ने समझाया कि इरावन का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, और पांडवों के बीच सहमति बन गई।

इरावन की अंतिम इच्छा

बलिदान से पहले, इरावन ने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वे अविवाहित अवस्था में मृत्यु नहीं चाहते। उनकी इच्छा थी कि वे मरने से पहले विवाह करें। यह सुनकर पांडव असमंजस में पड़ गए। प्रश्न यह था कि कौन अपनी कन्या का विवाह ऐसे व्यक्ति से करेगा, जो शीघ्र ही बलिदान दे देगा।

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भगवान श्रीकृष्ण ने निकाला समाधान

पांडवों की चिंता को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप धारण किया। मोहिनी के रूप में उन्होंने इरावन से विवाह किया और उनकी अंतिम इच्छा पूर्ण की। इसके बाद, इरावन ने खुशी-खुशी देवी चामुण्डा को अपना बलिदान दिया। यह बलिदान पांडवों की विजय का महत्वपूर्ण कारण बना।

धार्मिक और सामाजिक संदेश

यह कथा भगवान श्रीकृष्ण की करुणा, समर्पण और धर्म की रक्षा के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है। साथ ही, यह समाज में त्याग और धर्म के प्रति निष्ठा का संदेश भी देती है।

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कथा का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण और इरावन का यह प्रसंग सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। यह दर्शाता है कि धर्म की रक्षा और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा से बड़ा कुछ नहीं है।


भगवान श्रीकृष्ण की यह अनोखी लीला न केवल महाभारत युद्ध के महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि धर्म और कर्तव्य के प्रति समर्पण से ही जीवन का सच्चा उद्देश्य प्राप्त होता है। इस कथा के माध्यम से सनातन धर्म की गहराई और उसकी शिक्षाओं को समझा जा सकता है।

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