धर्म

शादी के दिन दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को क्यों पहनाते है वरमाला? कैसे शुरू हुई ये रस्म? जाने इसके पीछे का हैरान करने वाला कारण

India News (इंडिया न्यूज), Indian Wedding Garland Tradition: हिंदू धर्म में शादी से कुछ दिन पहले ही रस्में शुरू हो जाती हैं। सभी रस्में विधि-विधान से निभाई जाती हैं। इनमें हल्दी, मेहंदी, जयमाला और जूता चुराई जैसी रस्में शामिल हैं। जयमाला एक ऐसी रस्म है, जिसमें दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। इस रस्म के लिए एक खास कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शादी के दौरान दूल्हा-दुल्हन द्वारा एक-दूसरे को वरमाला पहनाने की रस्म कैसे शुरू हुई और यह रस्म क्यों निभाई जाती है? जानें इसके पीछे का कारण।

ऐसे शुरू हुई वरमाला पहनाने की परंपरा

वरमाला पहनाने की रस्म का उल्लेख पौराणिक कथाओं और शास्त्रों में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, स्वयंवर के दौरान भगवान श्री राम ने भगवान शिव का धनुष तोड़ा था, जिसके बाद माता सीता ने राम जी को वरमाला पहनाकर उन्हें अपना जीवनसाथी स्वीकार किया था। उसी समय से वरमाला पहनाने की रस्म की शुरुआत मानी जाती है। इस रस्म को विवाह का अहम हिस्सा माना जाता है।

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एक अन्य कथा के अनुसार, एक समय ऐसा आया जब जगत के पालनहार भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन में व्यस्त हो गए, उस समय धन की देवी माता लक्ष्मी समुद्र की गहराइयों में समा गईं। इस कारण श्री हरि ने देवी लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करवाया। इसके बाद समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी हाथ में फूलों की माला लेकर प्रकट हुईं। उन्होंने भगवान विष्णु को माला पहनाई।

बता दें कि विवाह के दौरान दूल्हा-दुल्हन द्वारा एक-दूसरे को वरमाला पहनाने का अर्थ होता है कि दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को जीवन साथी के रूप में स्वीकार करते हैं। इस दौरान परिवार, घर और दोस्त दूल्हा-दुल्हन को नए जीवन की शुरुआत की शुभकामनाएं देते हैं।

कैसी होती है जयमाला?

जयमाला कई तरह के फूलों की मदद से बनाई जाती है, क्योंकि फूलों को उत्साह, सुंदरता और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। मान्यता के अनुसार जयमाला को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। विवाह के दौरान यह रस्म प्राचीन काल से निभाई जाती रही है।

 

 

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Nishika Shrivastava

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