India News (इंडिया न्यूज), Story of Hanuman Janmotsav: प्रभु श्रीराम के परम भक्त और अतुलनीय शक्ति के प्रतीक हनुमान जी का जन्मोत्सव हर साल अत्यंत श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल हनुमान जयंती 12 अप्रैल को मनाई जाएगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जन्मोत्सव का पर्व साल में दो बार क्यों मनाया जाता है? आइए, इस परंपरा और इसके पीछे छिपे धार्मिक तथ्यों को विस्तार से समझते हैं।

हनुमान जन्मोत्सव के दो पर्व

हनुमान जयंती का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है:

  1. चैत्र माह की पूर्णिमा: इसे अधिकतर लोग हनुमान जयंती के रूप में मनाते हैं।
  2. कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी: इसे हनुमान जी की वास्तविक जन्म तिथि माना जाता है।

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क्यों मनाया जाता है दो बार?

हनुमान जी के दो बार जन्मोत्सव मनाने के पीछे एक अनोखी पौराणिक कथा और तर्क है। इसके अनुसार:

पहला जन्म (चैत्र पूर्णिमा):

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार हनुमान जी सूर्यदेव को फल समझकर निगलने के लिए चले गए। जब उन्होंने सूर्यदेव को मुख में लिया, तो इंद्रदेव ने उन्हें सूर्य को निकालने के लिए कहा। लेकिन हनुमान जी नहीं माने।

इससे क्रोधित होकर इंद्रदेव ने अपने वज्र से हनुमान जी पर प्रहार किया, जिससे वह मूर्छित हो गए। इस घटना के बाद देवताओं ने हनुमान जी को दूसरा जीवन दिया और उन्हें दिव्य शक्तियां प्रदान की। इस घटना को हनुमान जी का दूसरा जन्म माना जाता है और इसे चैत्र पूर्णिमा को मनाया जाता है।

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दूसरा जन्म (कार्तिक चतुर्दशी):

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हनुमान जी का जन्म हुआ था। इसे उनकी वास्तविक जन्म तिथि माना जाता है। इस दिन को उनके भक्त विशेष रूप से पूजा और व्रत के साथ मनाते हैं।

हनुमान जी को दिव्य शक्तियां कैसे प्राप्त हुईं?

इंद्रदेव के वज्र प्रहार से जब हनुमान जी मूर्छित हुए, तब उनके पिता केसरी और माता अंजना ने देवताओं से विनती की। तब देवताओं ने उन्हें विशेष शक्तियां प्रदान कीं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, सूर्यदेव और अन्य देवताओं ने उन्हें अपार बल, बुद्धि, और ऊर्जा का आशीर्वाद दिया। यही शक्तियां हनुमान जी को अमरत्व और अतुलनीय वीरता का प्रतीक बनाती हैं।

हनुमान जी का जीवन हमें भक्ति, सेवा और साहस की प्रेरणा देता है। उनके जन्मोत्सव को दो बार मनाना उनकी अलौकिकता और उनकी महिमा को दर्शाता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि संकटों से डरने के बजाय धैर्य और ईमानदारी से उनका सामना करना चाहिए।

हनुमान जन्मोत्सव का पर्व दो बार मनाने की परंपरा उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ी हुई है। चैत्र पूर्णिमा और कार्तिक चतुर्दशी, दोनों तिथियां उनके जन्म और जीवन से संबंधित अद्भुत घटनाओं की याद दिलाती हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमें जीवन में साहस, समर्पण और निःस्वार्थ सेवा का मार्ग भी दिखाता है।

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