India News (इंडिया न्यूज), Marriage Secrets: भारतीय विवाहों में 7 फेरे (सात फेरे) लेने की परंपरा बहुत पुरानी है और इसका महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टिकोण से है। आइए जानें क्यों 7 फेरों को विशेष माना जाता है और अगर कम फेरे लिए जाएं तो क्या हो सकता है।
7 फेरों का महत्व
- धार्मिक मान्यता: हिंदू धर्म में फेरे (सात फेरे) लेना एक महत्वपूर्ण रस्म है। इसे ‘सप्तपदी’ कहा जाता है, जहां दूल्हा-दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे के साथ अपनी प्रतिज्ञा करते हैं। हर फेरा एक विशेष वचन के साथ जुड़ा होता है, जैसे एक-दूसरे के प्रति सच्चे रहना, प्रेम और समर्थन करना, आदि।
- सांस्कृतिक परंपरा: 7 फेरे लेने की परंपरा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यह विवाह को एक सामाजिक बंधन के रूप में भी मान्यता देता है।
- संपूर्णता का प्रतीक: सात फेरे संपूर्णता, समर्पण और स्थिरता का प्रतीक माने जाते हैं। हर फेरा एक नए जीवन के लिए वचनबद्धता का प्रतीक है।
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5 या 6 फेरे लेने पर क्या होगा?
अगर कोई जोड़ा 5 या 6 फेरे लेता है, तो:
- धार्मिक दृष्टिकोण: धार्मिक मान्यता के अनुसार, फेरे पूरे न करने पर विवाह को अधूरा माना जा सकता है। इसे सही तरीके से संपन्न नहीं माना जाएगा।
- सांस्कृतिक प्रतिक्रियाएँ: पारंपरिक भारतीय समाज में, ऐसा होना असामान्य है और यह कुछ लोगों में असंतोष या संदेह उत्पन्न कर सकता है।
- व्यक्तिगत अर्थ: यदि दूल्हा-दुल्हन ने एक-दूसरे के प्रति अपने वादों को समझा और अपने रिश्ते को गंभीरता से लिया है, तो वे अपने तरीके से विवाह की परिभाषा तय कर सकते हैं।
निष्कर्ष
7 फेरे लेना एक महत्वपूर्ण और पारंपरिक रस्म है जो विवाह की पूर्णता और स्थिरता का प्रतीक है। हालांकि, यदि कोई जोड़ा 5 या 6 फेरे लेने का निर्णय करता है, तो यह उनके व्यक्तिगत और सांस्कृतिक मान्यताओं पर निर्भर करता है। महत्वपूर्ण यह है कि दोनों एक-दूसरे के प्रति अपने वादों को निभाने के लिए प्रतिबद्ध हों।
Disclaimer: इंडिया न्यूज़ इस लेख में सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए बता रहा हैं। इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।