India News (इंडिया न्यूज), Why Muslims Not Touch Feet: हिंदुस्तान में धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का पालन करने वाले विभिन्न समुदायों की मान्यताएं और मूल्य अलग-अलग हैं। जिसको लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि इस्लाम में पैर छूने का रिवाज क्यों नहीं है? जबकि अन्य धर्मों में इसे सम्मान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। आइए इस स्टोरी में हम इस्लामी दृष्टिकोण और इससे जुड़े कुछ सांस्कृतिक दृष्टिकोणों को समझने की कोशिश करेंगे।
बता दें कि, भारत की संस्कृतियों में बड़ों के पैर छूना सम्मान और आदर का प्रतीक माना जाता है। इस प्रथा का तात्पर्य है कि जो व्यक्ति पैर छू रहा है, वह अपने से बड़े और अधिक सम्मानित व्यक्ति के सामने झुक रहा है। साथ ही कई जगहों पर पैर छूना गुरु, माता-पिता या बड़ों का सम्मान करने का एक तरीका माना जाता है। इसे विनम्रता का प्रतीक भी माना जाता है। हालांकि, इस्लाम में पैर छूने के बजाय दूसरे तरीकों से सम्मान और श्रद्धा व्यक्त की जाती है। इस्लाम का मानना है कि हर व्यक्ति को समान सम्मान मिलना चाहिए और किसी के सामने झुकना विनम्रता से ज्यादा अपमान के रूप में देखा जा सकता है।
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इस्लाम समानता और तौहीद पर विशेष जोर देता है। धर्म का मानना है कि अल्लाह की नज़र में हर इंसान बराबर है, चाहे वह अमीर हो या गरीब, किसी भी जाति या रंग का हो। इस्लामी शिक्षाओं में नमाज़ के दौरान लोग एक ही पंक्ति में खड़े होते हैं। इससे पता चलता है कि सभी बराबर हैं। दरअसल, किसी के सामने झुकना इस्लाम में स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यह व्यक्ति को अल्लाह से कमतर दिखाने का प्रतीक हो सकता है। इस्लाम में किसी के सामने पैर छूना या झुकना वर्जित है क्योंकि यह सजदा (प्रणाम) का एक रूप है। जो केवल अल्लाह के लिए किया जा सकता है। इस्लामी शरिया के अनुसार, किसी के प्रति सम्मान दिखाने के लिए झुकना भी हराम माना जाता है। यहाँ तक कि कब्रों पर झुकना और सजदा करना भी अनुचित माना जाता है।
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दरअसल, इस्लामी शरिया में स्पष्ट निर्देश हैं कि कोई व्यक्ति केवल अल्लाह के सामने सिर झुका सकता है। पैगंबर आदम के समय अल्लाह ने फ़रिश्तों को आदम के सामने झुकने का आदेश दिया था। जो उस समय एक सामान्य आदेश था। हालांकि पैगंबर मुहम्मद के समय झुकने की यह प्रथा समाप्त कर दी गई थी। अब शरीयत-ए-मोहम्मदी के अनुसार, किसी के सामने झुकना, चाहे वह कितना भी सम्मानित क्यों न हो, हराम माना जाता है। इस्लामी शिक्षाएँ सिखाती हैं कि सम्मान दिखाने का तरीका सिर झुकाने के बजाय दिल में सम्मान रखना है। वहीं इस्लाम में किसी के प्रति सम्मान दिखाने के कई अन्य तरीके हैं।
बता दें कि, इस्लाम में सबसे प्रमुख तरीका सम्मान देने का सलाम कहना है। जब आप किसी से मिलते हैं या अलविदा कहते हैं, तो आप अस्सलाम वालेकुम कहते हैं। जिसका अर्थ है कि आप पर शांति हो। यह न केवल सम्मान का संकेत है, बल्कि एक दुआ भी है। जिसके द्वारा दोनों व्यक्ति एक-दूसरे के लिए शुभकामनाएं देते हैं। इस प्रकार इस्लामी समाज में पैर छूने के बजाय, सलाम और सद्भावना के द्वारा सम्मान दिखाया जाता है।
धार्मिक परंपरा या फिर कुछ और…, आखिर क्यों मुस्लिम मर्द नहीं रखते मूंछें?
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