India News (इंडिया न्यूज), First World Map Made In Mahabharat Period: धरती का पहला नक्शा कौन बनाये? यह सवाल सदियों से इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के बीच एक विवादास्पद विषय रहा है। विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं ने इस सवाल का जवाब देने के लिए अपनी-अपनी दावे पेश किए हैं। आइए जानें, इन दावों के बीच एक अद्भुत और प्राचीन तथ्य की कहानी।
प्राचीन रोमन सभ्यता की ओर उंगली उठाने वाले कुछ इतिहासकार मानते हैं कि रोमन सेनाओं ने सबसे पहले पृथ्वी का नक्शा तैयार किया। रोमन साम्राज्य की भव्यता और उनकी सैन्य शक्ति के आधार पर यह दावा किया जाता है कि उन्होंने पूरी दुनिया का नक्शा तैयार किया, जो उनके साम्राज्य की विशालता को दर्शाता था।
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कुछ अन्य इतिहासकारों का कहना है कि नार्वे के वाइकिंग्स समुदाय ने दुनिया का पहला नक्शा बनाया। वाइकिंग्स, जो लूटपाट और नए क्षेत्रों की खोज में प्रसिद्ध थे, ने अपने समुद्री यात्राओं के दौरान दुनिया के विभिन्न हिस्सों का नक्शा तैयार किया। उनकी यात्रा की सटीकता और समुद्री ज्ञान को इस दावे का आधार माना जाता है।
पुर्तगाली और फ्रांसीसी भी अपनी उपनिवेशी यात्रा के दौरान पृथ्वी के पहले नक्शे के दावे को लेकर सक्रिय रहे हैं। पुर्तगाली नाविक वास्को द गामा और फ्रांसीसी खोजी क्रिश्चियन कोलंबस ने अपनी यात्रा के दौरान पृथ्वी की भौगोलिक जानकारी को एकत्र किया, जिससे नक्शे को और सटीक बनाने में मदद मिली।
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अमेरिका और स्पेन के दावे कोलंबस पर आधारित हैं। क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1492 में भारत की खोज के लिए यात्रा की थी, लेकिन गलती से अमेरिका की खोज कर बैठा। उसकी खोज ने पश्चिमी देशों की भौगोलिक समझ को नया दिशा दिया, और उसका योगदान नक्शे की बनावट में महत्वपूर्ण माना गया।
अब यदि हम एक पल के लिए सोचें कि क्या धरती का पहला नक्शा भारतीय मुनि ने बनाया था? भारतीय गणितज्ञ और भूगोल विज्ञानी रामानुजाचार्य का नाम इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। 11वीं शताब्दी के इस महान वैज्ञानिक ने पृथ्वी का एक नक्शा तैयार किया, जिसमें पृथ्वी को दो अंशों में दिखाया गया था। उनका नक्शा चंद्रमंडल में एक खरगोश और दो पीपल के पत्तों के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
हालांकि, रामानुजाचार्य ने बताया कि उन्होंने यह नक्शा महर्षि वेद व्यास द्वारा दिए गए निर्देशों के आधार पर तैयार किया था। महर्षि वेद व्यास ने हजारों साल पहले महाभारत के भीष्म पर्व में एक श्लोक के माध्यम से पृथ्वी का पूरा नक्शा प्रस्तुत किया था:
“सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥ यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।”
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इस श्लोक में महर्षि वेद व्यास ने बताया कि “सुदर्शन द्वीप” चक्र की तरह गोलाकार है, और यह चंद्रमंडल में खरगोश और पीपल के पत्तों के रूप में देखा जाता है। यदि इस श्लोक के आधार पर नक्शा तैयार किया जाए, तो यह वर्तमान महाद्वीपों के नक्शे से मेल खाता है।
धरती के पहले नक्शे को लेकर कई दावे और मान्यताएँ प्रचलित हैं, लेकिन महर्षि वेद व्यास का श्लोक और रामानुजाचार्य का नक्शा एक प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण को उजागर करते हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि इतिहास के हर हिस्से में विभिन्न संस्कृतियों का योगदान होता है, और हमें उनके महत्व को समझने की आवश्यकता है। यह भी दर्शाता है कि ज्ञान और विज्ञान की खोज हर सभ्यता का हिस्सा रही है, और यह मानवता के सामूहिक प्रयास का परिणाम है।
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