India News (इंडिया न्यूज), Diwali Puja 2024: वैदिक पंचांग के अनुसार आज दिवाली है। यह त्योहार हर साल कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर से दरिद्रता दूर होती है। साथ ही सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि मां लक्ष्मी बहुत चंचल हैं। वे अधिक समय तक एक स्थान पर नहीं रुकती हैं। इसके लिए नियमित रूप से मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। अगर आप भी धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो दिवाली के दिन श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा के समय यह व्रत कथा जरूर पढ़ें।
सनातन धर्मग्रंथों में वर्णित है कि प्राचीन काल में राजा बलि का वर्चस्व तीनों लोकों में फैला हुआ था। राजा बलि न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि महान दानवीर भी थे। इस कारण उनकी चर्चा तीनों लोकों में होती थी। इस दौरान राजा बलि ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और इंद्र देव को गद्दी से उतार दिया। सत्ता खोने के बाद स्वर्ग के राजा इंद्र इधर-उधर भटकने लगे। उस समय इंद्र की माता अदिति जगत के उद्धारक भगवान विष्णु के पास पहुंची और उन्हें अपनी कहानी और अपनी व्यथा सुनाई।
माता अदिति को दुखी देखकर भगवान विष्णु ने कहा- हे माता! आप बिल्कुल भी चिंता न करें। भविष्य में मैं आपके गर्भ से जन्म लूंगा। उस समय इंद्र देव को फिर से स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त होगा। इसलिए आप खुशी-खुशी जाएं और सही समय का इंतजार करें। समय आने पर माता अदिति ने भगवान विष्णु की कठोर आराधना की। माता अदिति की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया। काल गणना के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को उन्होंने वामन रूप में अवतार लिया था।
कुछ समय बाद दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की सलाह पर राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यदि यह यज्ञ सफल हो जाता तो राजा बलि तीनों लोकों का विजेता बन जाता। राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ की सफलता के लिए तीनों लोकों को आमंत्रित किया। निमंत्रण पाकर भगवान विष्णु भी वामन रूप में वहां पहुंच गए। राजा बलि ने वामन ब्राह्मण का सत्कार किया। लौटते समय राजा बलि ने दान देने की इच्छा जताई।
हालांकि, वामन देव दान लेने को तैयार नहीं हुए। इसके बाद राजा बलि ने फिर दान देने की बात कही। तब वामन देव ने केवल तीन पग भूमि मांगी। यह सुनकर राजा बलि मन ही मन मुस्कुराने लगे और बोले, “यह तो कुछ भी नहीं है।” यह सोचकर उन्होंने तुरंत कहा कि मैं दे देता हूं। तब भगवान विष्णु ने एक पग में भूमि और दूसरे पग में आकाश नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए भूमि नहीं बची तो राजा बलि ने अपना मस्तिष्क भगवान विष्णु के पैरों के नीचे रख दिया।
भगवान विष्णु के पैर रखते ही राजा बलि पाताल लोक पहुंच गए। यह सब देखकर राजा बलि ने भगवान नारायण को पहचान लिया। तब भगवान विष्णु ने राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल लोक में उनके साथ रहने को कहा। भगवान विष्णु ने राजा बलि का वरदान स्वीकार कर लिया। इधर इंद्र देव को स्वर्ग का सिंहासन मिल गया। उधर भगवान विष्णु के वैकुंठ वापस न लौटने पर माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं।
जब उन्हें भगवान विष्णु के पाताल लोक में रहने की बात पता चली। तब माता लक्ष्मी रक्षा सूत्र लेकर पाताल लोक पहुंचीं। वहां उन्होंने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और उन्हें अपना भाई बनाया। इससे प्रसन्न होकर राजा बलि ने वरदान मांगने को कहा। तब माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त करने का वरदान मांगा, जिसे राजा बलि ने स्वीकार कर लिया।
इस वरदान के तहत उन्होंने श्रावण पूर्णिमा से धनतेरस तक पाताल लोक में रहने का अनुरोध किया। लक्ष्मी नारायण जी ने राजा बलि के इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। इसके बाद जब भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी वैकुंठ लौटे तो दीप पर्व दिवाली मनाई गई। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा बलि ने धनतेरस से दिवाली तक अपनी बहन मां लक्ष्मी की पूजा का वरदान भी मांगा था। इसके लिए धनतेरस से दिवाली तक मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
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