मां ने समझा था ‘मनहूस’
जाकिर हुसैन ने अपनी किताब “ZAKIR HUSSAIN: A Life in Music” में अपने बचपन के कुछ दर्दनाक और दिल को छू लेने वाले किस्से साझा किए हैं। उनका कहना है कि जब उनका जन्म हुआ, तो उनके पिता की सेहत बहुत खराब थी और उन्हें गंभीर दिल की बीमारी थी। उस समय उनके परिवार के लोग उन्हें “मनहूस” मानने लगे थे, क्योंकि उनका जन्म उनके पिता के लिए एक कठिन समय में हुआ था।
जाकिर ने अपनी किताब में लिखा है, “जब मुझे घर लाया गया, तो मेरी मां ने मुझे ब्रेस्टफीड नहीं कराया, क्योंकि वह मुझे मनहूस समझती थीं। उन्होंने महसूस किया कि मैं परिवार के लिए दुख लेकर आया हूं। उस समय मेरी मां के आसपास की एक करीबी महिला ने मेरी देखभाल की और शुरुआती हफ्तों में वह मेरी ‘सरोगेट मां’ बन गई।”
ज्ञानी बाबा का आशीर्वाद और नामकरण
जाकिर हुसैन के जीवन में एक और महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब एक पवित्र व्यक्ति, ज्ञानी बाबा, उनके परिवार के दरवाजे पर प्रकट हुए। ज्ञानी बाबा ने उनके जीवन के बारे में एक भविष्यवाणी की थी, जिसने जाकिर हुसैन के नाम और उनके जीवन की दिशा को बदल दिया। उन्होंने जाकिर के मां से कहा कि उनका बेटा अगले चार सालों में बहुत कठिनाइयों का सामना करेगा, लेकिन वह उनके पिता को बचा लेगा। साथ ही, बाबा ने उनका नाम “जाकिर हुसैन” रखने की सलाह दी।
जाकिर ने बताया कि “हुसैन” उनका पारिवारिक उपनाम नहीं था, बल्कि यह नाम हजरत इमाम हुसैन के नाम पर रखा गया था। ज्ञानी बाबा ने यह भी कहा था कि जाकिर को एक फकीर बनना चाहिए और विनम्रता सीखने के लिए मुहर्रम के दौरान सात घरों में जाकर भीख मांगनी चाहिए।
घर-घर जाकर भीख मांगते थे जाकिर हुसैन
जाकिर हुसैन के जीवन में मुहर्रम के दौरान घर-घर जाकर भीख मांगने की एक दिलचस्प परंपरा रही। यह परंपरा उन्हें ज्ञानी बाबा के निर्देशानुसार निभानी पड़ी। जाकिर ने बताया, “मेरी मां मुझे हरा कुर्ता पहनाती थीं और मुझे एक झोला देती थीं, और हम अपने मोहल्ले में घर-घर जाकर भीख मांगते थे। लोग मुझे थोड़े पैसे या मिठाइयाँ देते थे, और मैं जो भी प्राप्त करता, उसे सीधे मस्जिद या माहिम दरगाह में दान कर देता था।”
यह प्रथा सिर्फ उनके बचपन तक सीमित नहीं रही, बल्कि जाकिर ने भारत में रहते हुए भी इसे जारी रखा, और जब वह अमेरिका चले गए, तो भी यह परंपरा उनके जीवन का हिस्सा रही। यह अनुभव उन्हें विनम्रता, दीन-हीनता और समाज की भलाई के लिए काम करने की प्रेरणा देता था।
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संघर्ष और सफलता की ओर यात्रा
जाकिर हुसैन का बचपन कई तरह के संघर्षों से भरा हुआ था। बीमारियां, मुश्किलें, और एक खराब स्वास्थ्य की स्थिति के बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत, समर्पण और जुनून से तबला वादन में महारत हासिल की। उनके पिता, उस्ताद अल्लारखा, स्वयं एक महान तबला वादक थे और जाकिर हुसैन ने उनके सान्निध्य में संगीत की दीक्षा ली। हालांकि, जाकिर के लिए ये राह आसान नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ-साथ भारतीय संगीत की परंपराओं को समझा और फिर उन्हें वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया।
उन्होंने अपनी अद्वितीय शैली और समर्पण से न केवल भारतीय संगीत को ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि पश्चिमी दुनिया में भी भारतीय संगीत की पहचान बनाई। उनकी संगीत यात्रा ने उन्हें ग्रैमी अवार्ड जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिलाए। इसके साथ ही, उन्होंने पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित भारतीय पुरस्कारों से भी नवाजा गया।
जाकिर हुसैन की धरोहर
जाकिर हुसैन का योगदान सिर्फ तबला वादन तक सीमित नहीं था, बल्कि वह एक ब्रिज की तरह कार्य करते थे, जिसने भारतीय और पश्चिमी संगीत को एक दूसरे से जोड़ा। उनका संगीत भारतीय रागों, तालों और धुनों का अद्वितीय मिश्रण था, जो सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता था। उन्होंने कई प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ सहयोग किया, जिनमें जॉन मैक्लॉघलिन, लुइस बैंक्स, और गैर-इंडियन म्यूजिक के साथ उनके सहयोग शामिल थे।
उनका संगीत और तबला वादन न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में एक मशहूर नाम बन चुका था। उनका निधन एक युग के समाप्त होने जैसा है, लेकिन उनका संगीत हमेशा हमारे दिलों में गूंजता रहेगा।
जाकिर हुसैन का जीवन एक प्रेरणा है, जो संघर्ष और मेहनत के साथ अपने सपनों को साकार करने की कहानी बयान करता है। उनका बचपन विपरीत परिस्थितियों से भरा था, लेकिन उन्होंने अपनी कला के प्रति अपने प्रेम और समर्पण से दुनिया को अपनी छाप छोड़ी। उनका संगीत न केवल भारतीय कला और संस्कृति का हिस्सा बना, बल्कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संगीत की पहचान भी बनाई। जाकिर हुसैन का योगदान सदैव अमर रहेगा, और उनके संगीत की थाप हमेशा हमारे दिलों में गूंजती रहेगी।