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Maa Kalratri Ki Katha in Hindi

Sunita • LAST UPDATED : March 29, 2022, 3:20 pm IST

Maa Kalratri Ki Katha in Hindi: नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। पूजा के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा अर्चना पूरी विधि विधान से की जाती हैं। धर्म के अनुसार माता का इसी दिन नेत्र खोला जाता है। इस स्वरूप में मां का शरीर काला सिर के बाल बिखरे और गले में मुंड की माला पहने दिखाई देती हैं। कालरात्रि की पूजा-अर्चना काल के बुरे प्रकोप से बचाता है।

हिंदू शास्त्र के अनुसार कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे हमेशा के लिए खुल जाते हैं। मां के एक अक्षर का मंत्र कानों में पड़ने से दुरात्मा भी मधुर वाणी बोलने वाला वक्ता बन जाता हैं। नवरात्रि के सातवें दिन से ही महिलाएं माता को सोलह शृंगार की चीजें चढ़ाना शुरू कर देती हैं।

Maa Kalratri Ki Katha in Hindi

कालरात्रि को काली का ही रूप माना जाता है। काली मां इस कलियुग मे प्रत्यक्ष फल देने वाली हैं। काली, भैरव तथा हनुमान जी ही ऐसे देवी व देवता हैं, जो शीघ्र ही जागृत होकर भक्त को मनोवांछित फल देते हैं। काली के नाम व रूप अनेक हैं किन्तु लोगों की सुविधा व जानकारी के लिए इन्हें भद्रकाली, दक्षिण काली, मातृ काली व महाकाली भी कहा जाता है।

दुर्गा सप्तशती में महिषासुर के वध के समय मां भद्रकाली की कथा वर्णन मिलता है कि युद्ध के समय महाभयानक दैत्य समूह देवी को रण भूमि में आते देखकर उनके ऊपर ऐसे बाणों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरूगिरि के शिखर पर पानी की धार की बरसा रहा हो। तब देवी ने अपने बाणों से उस बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़े और सारथियों को भी मार डाला।

साथ ही उसके धनुष तथा अत्यंत ऊंची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जाने पर उसके अंगों को अपने बाणों से बींध डाला। और भद्रकाली ने शूल का प्रहार किया। उससे राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गये, वह महादैत्य प्राणों से हाथ धो बैठा।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बहुत बड़ा दानव रक्तबीज था। इस दानव ने जनमानस के साथ देवताओं को भी परेशान कर रखा था। रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जब उसके खून की बूंद (रक्त) धरती पर गिरती थी तो हूबहू उसके जैसा दानव बन जाता था। दानव की शिकायत लेकर सभी भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव जानते थे कि इस दानव का अंत माता पार्वती कर सकती हैं।

भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति संधान किया। इस तेज ने मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाली रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह से देवी मां ने सबका गला काटते हुए दानव रक्तबीज का अंत किया। रक्तबीज का वध करने वाला माता पार्वती का यह रूप कालरात्रि कहलाया।

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Maa Kalratri Ki Aarti

कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली।

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार।

पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा।

खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली।

कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा।

सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी।

रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना।

ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी।

उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली मां जिसे बचावे।

तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि मां तेरी जय।

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