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Winter 2022 Poem in Hindi

Winter 2022 Poem in Hindi: ठंड का लोग बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते है क्योंकि गर्मी से बहुत ज्यादा परेशान हो जाते है। ठंड आने पर रातें लम्बी हो जाती है। जिसके कारण लोग खूब खाते और खूब सोते है। कई तरह के ऐसे पकवान होते है जिनका लुफ़्त आप केवल ठंड में ही ले सकते हैं।

जो लोग खाने के शौक़ीन होते है उनके लिए यह मौसम सबसे प्रिय होता है। क्या आप ने बचपन में आग में आलू और शकरकंद को भून कर खाया है। उसका स्वाद लाजबाब होता है। मिठाई खाने का असली मजा ठंड में ही आता है। नीचे दी गई सर्दी पर कविता को जरूर पढ़े।

Winter 2022 Poem in Hindi

  • सर्दी लगी रंग जमाने, दांत लगे किटकिटाने, नई-नई स्वेटरों को, लोग गए बाजार से लाने।
  • बच्चे लगे कंपकंपाने, ठंडी से खुद को बचाने, ढूंढकर लकड़ी लाए, बैठे सब आग जलाने।
  • दिन लगा अब जल्दी जाने, रात लगी अब पैर फैलाने, सुबह-शाम को कोहरा छाए, हाथ-पैर सब लगे ठंडाने।
  • सांसें लगीं धुआं उड़ाने, धूप लगी अब सबको भाने, गर्म-गर्म चाय को पीकर, सभी लगे स्वयं को गरमाने।

Poem 2022 on Thand in Hindi

  • बचपन में हमें ठंड लगती सुहानी थी, जब पूरे घर में चलती हमारी मनमानी थी, स्कूल में पूरे 15 दिन की छुट्टी होती थी, वो भी दिन क्या मस्ती भरे होते थे।
  • इन छुट्टियों में जी भर के खेलते थे, ठंड से तनिक भी नहीं डरते थे, हमको ठंड नहीं लगेगी सबसे हम यही कहते थे।
  • ठंड में माँ बहुत ख्याल रखती थी, ठण्ड लग जायेगी बाहर मत जाना, हमेशा यही कहती रहती थी, लेकिन अब ये जवानी बहुत सताती है, गर्मी हो ठंड रोज ऑफिस का रास्ता दिखाती है।

Funny Hindi Poem on Winter Season in Hindi

  • बारिश बीती ठंड आई, बच्चों और जवानों के लिए खुशियाँ लाई, बूढ़ों की थोड़ी परेशानी बढ़ाई, पर सबने निकाल ली स्वेटर, कंबल और रजाई।
  • मेरे नाना-नानी की हालत कड़कड़ाई, ओढ़ कर बैठे है कंबल और रजाई, बंदर टोपी लगाकर मेरी नानी शरमाई, अगर ठंड लग जाये तो खाना पड़ता है दवाई।

Poems on Winter Season in Hindi

सफेद चादर में लिपटी कोहरे की धुंध, ले आई ठंड की कैसी चुभन, कोहराम करती वो सर्द हवाएं,
छोड़ जाती बर्फ से ठंडी सिहरने, कोहरे का साया भी ऐसा गहराया, सूरज की लाली भी ना बच पाया,
अंधेरा घना जब धुंधलालाया, रात के सन्नाटों ने ओस बरसाया, कैसी कहर ये ठंड की पड़ी,
जहां देखो दुबकी पड़ी है जिंदगी, अमीरों के अफसानों के ठाठ हजार, गरीबी कम्बलों से निहारती दांत कटकटाती,
ठिठुरती कपकपाती सर्द रातों में, आग की दरस की प्यासी निगाहें, याद आती है अंगूठी के इर्द-गिर्द
चाय की चुस्कियां लेती हो मजलिसे, तन को बेचैन करती कोहरे ओढ़ें, आती सुबह शुष्क हवाओं संग,
कैसी कहर ये ठंड की पड़ी, जहां देखो दुबकी पड़ी है जिंदगी।

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Sunita

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