पवन शर्मा
चंडीगढ़। देश को खाद्यान्न के क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर’ बनाने में हरियाणा और पंजाब के किसानों का हमेशा से ही अहम योगदान रहा है, परंतु पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में अपनाई गई नीतियों तथा किसानों की मेहनत की बदौलत हरियाणा छोटा-सा प्रदेश होते हुए भी अपने ‘बड़े भाई’ पंजाब से काफी आगे निकल गया है।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि हरियाणा प्रदेश द्वारा कृषि के मामले में हो रही प्रगति का एक बहुत बड़ा आधार राज्य सरकार की कृषि-नीतियां हैं।
सरकारी योजनाओं में पंजाब से कहीं आगे है हरियाणा
पंजाब राज्य कुल क्षेत्रफल व कृषि योग्य भूमि के मामले में बेशक हरियाणा से कहीं ज्यादा है परंतु पिछले 7 वर्षों में मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल की वर्तमान सरकार ने जो 21 फल व सब्जियों तथा 11 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करके खरीद करने का जो साहसिक निर्णय लिया है उसके मुकाबले पंजाब नजदीक भी नहीं ठहरता। यही नहीं फसलों के विविधिकरण के लिए आरंभ की गई प्रोत्साहन योजना से लेकर फसल बीमा योजना के तहत किसानों के नुकसान की भरपाई करने जैसी लाभकारी योजनाओं ने प्रदेश के किसानों में नई स्फूर्ति का संचार करके उनके आर्थिक हालातों को सुधारने की दिशा में कदम उठाए गए हैं।
हरियाणा की कृषि विकास दर पंजाब से तिगुणी
कृषि को किसी भी देश की आर्थिक रीढ़ माना जाता है। कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में गहन जानकारी रखने वालों की बात मानें तो हरियाणा पिछले 7 वर्षों के दौरान पंजाब से किसानी-व्यवसाय के क्षेत्र में चार-कदम आगे जा चुका है। हरियाणा से तुलनात्मक रूप से पंजाब के पिछडऩे के कारण चाहे जो भी रहे हों परंतु हरियाणा में विकास का मूल कारण मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के नेतृत्व में गत कुछ वर्षों में किसान-हित में राज्य सरकार द्वारा उठाए गए सकारात्मक कदम हैं।
हरियाणा में जहां तक कृषि क्षेत्र में उपलब्धियों की बात है, हरियाणा के आगे पंजाब कहीं नहीं ठहरता है। हरियाणा का कुल क्षेत्रफल जहां 44,212 वर्ग किलोमीटर है वहीं पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है। इसी प्रकार, हरियाणा की कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल 37.41 लाख हैक्टेयर तथा पंजाब की 42 लाख हैक्टेयर है।
कृषि विकास दर के मामले में भी हरियाणा की दर 6.3 फीसदी तथा पंजाब की दर हरियाणा की एक-तिहाई है जो कि मात्र 2.1 फीसदी है। गन्ना उत्पादक किसानों के लिए राज्य सरकार ने प्रदेश में 11 चीनी-मिलें स्थापित की हैं, दूसरी तरफ पंजाब में कहने को तो चीनी-मिलों की कुल संख्या 15 है परंतु चालू हालत में मात्र 9 मिल हैं, शेष 6 मिल बंद पड़ी हैं।
अपने ‘बड़े भाई’ पंजाब से काफी आगे है हरियाणा
किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम देने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के मामले में भी हरियाणा प्रदेश अपने ‘बड़े भाई’ पंजाब से काफी आगे है। हरियाणा में 11 फसलें जिनमें गेंहू, जौ, चना, सूरजमुखी, सरसों,धान, मूंग, मक्का, बाजरा, कपास व मूंगफली शामिल हैं, को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है, पंजाब में मात्र तीन फसलें गेंहू,धान व सूरजमुखी की ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की जाती है।
हरियाणा में 21 प्रकार के फलों व सब्जियों के संरक्षित भाव निर्धारित करने के लिए जो ‘भावांतर भरपाई योजना’ शुरू की गई है उसकी चर्चा तो पूरे देश के किसानों में है। पंजाब में भावांतर भरपाई योजना जैसी कोई योजना ही नहीं है।
अंतर्राज्यीय स्तर पर अपनी फसल की डिमांड व अच्छे भाव देखकर बेचने के इच्छुक किसानों के लिए हरियाणा सरकार ने प्रदेश की 81 मंडियों को ई-नाम पोर्टल से जोडऩे का काम किया,जबकि पंजाब की
कृषि के साथ-साथ हरियाणा के किसानों की अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने के लिए भी राज्य सरकार ने पशुपालन को बढ़ावा देते हुए ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ की तर्ज पर ‘पशुधन क्रेडिट कार्ड योजना’ शुरू की और राज्य में आज तक करीब 58 हजार कार्ड जारी भी कर दिए, पंजाब इस योजना को शुरू ही नहीं कर पाया।
पिछले 7 वर्षों में किसानों का रूझान ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ की तरफ काफी बढ़ा है। राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर चलाए गए जागरूकता अभियान की बदौलत बहुत बड़ी संख्या में किसानों ने अपनी फसलों का बीमा करवाना शुरू कर दिया। उनको लाभ यह हुआ कि जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आई तो उनके नुकसान की भरपाई समय पर होने से उनकी आर्थिक हालत संभल गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 17 लाख किसानों को लगभग 4,000 करोड़ रूपए बीमे के रूप में मिले। इतना ही नहीं, इसके अलावा 34 लाख से अधिक किसानों को 7,000 करोड़ रूपए की राशि भी किसानों को अन्य नुकसान के भरपाई की एवज में दी गई। पंजाब के किसानों के लिए वहां की सरकार ने कोई भी फसल-बीमा योजना शुरू नहीं की है।