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Chulkana Dham के लिए वृंदावन ट्रस्ट पानीपत 2 मार्च को निकालेगा पैदल निशान यात्रा, जानें चुलकाना धाम का इतिहास

BY: • LAST UPDATED : February 24, 2025

India News Haryana (इंडिया न्यूज), Chulkana Dham : वृंदावन ट्रस्ट रजिस्टर्ड पानीपत द्वारा 02 मार्च मार्च दिन रविवार अल सुबह 4:00 बजे गोहाना मोड सुविधा शोरूम के सामने से चुलकाना धाम के लिए पैदल श्याम निशान यात्रा निकल रही है। इसके लिए संस्था ने पहला निमंत्रण पत्र चुलकाना स्थित श्री श्याम बाबा के मंदिर में जाकर श्याम बाबा काे अर्पित किया। वृंदावन ट्रस्ट के संरक्षक विकास गोयल और चुलकाना मंदिर सेवा समिति के प्रधान रोशन लाल ने चुलकाना धाम के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि जैसे ही वीर बर्बरीक इस चुलकाना धाम की पावन धरती पर पहुंचें, तभी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के साथ ब्राह्मण वेश में इस तपोभूमि, भावभूमि पर पहुंचे।

Chulkana Dham : बढ़ती जा रही है चुलकाना धाम की महिमा

यहां भगवान ने बर्बरीक की परीक्षा ली और उनसे शीश का दान मांगा। जहां बर्बरीक ने अपना शीश काटकर भगवान के हाथ में रख दिया। इसके बाद से ही वह श्याम बाबा के नाम से जाने गए। ट्रस्ट के सचिव हरीश बंसल ने बताया कि चुलकाना धाम की महिमा बढ़ती जा रही है।

इस बार 2 मार्च की यात्रा में 25 हजार से ज्यादा भक्त जाएंगे। इसके लिए गांव- काॅलाेनियाें से जत्थे भी यात्रा में शामिल हाेंगे। इस फाल्गुन उत्सव में कई लाख लाेग चुलकाना धाम में पहुंचेंगे। पूर्व सरपंच मदन लाल शर्मा ने बताया कि श्री श्याम बाबा का प्राचीन सिद्ध मन्दिर हरियाणा के पानीपत जिले के चुलकाना गांव में स्थित है। जहां हर वर्ष फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी व द्वादशी को लाखों श्रद्वालु दर्शन करने के लिए आते हैं।

श्री श्याम बाबा चुलकाना वाले की कथा

जो द्वापरयुग में कुरुक्षेत्र धर्म युद्ध में चुलकाना धाम सिद्ध पीठ पर घटित हुई थी। द्वापर युग के अंत समय में महाभारत का युद्ध हुआ। जिसमें अनेक शक्तिशाली बलशाली योद्धाओं ने हिस्सा लिया। मोरवी और घटोत्कच के एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका बर्बरीक नाम रखा गया। बर्बरीक के दादा का नाम भीम और दादी का नाम हिडिंबा था। महाभारत युध्द में वीर बर्बरीक यूवा अवस्था में था माता मोरवी और दादी हिडिंबा से युद्ध देखने की इच्छा लेकर चल पड़ा और इनकी माता ने वचन लिया की इस युद्ध में हारे का सहारा बनना, क्योंकि पाण्डव पक्ष कमजोर था। इनके घोड़े का रंग नीला था इसलिए इनको नीले का असवार भी कहा जाता है।

मैं घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हूँ

वृंदावन ट्रस्ट के सरंक्षक विकास गोयल और चुलकाना मंदिर सेवा समिति के प्रधान रोशन लाल ने चुलकाना धाम के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि जैसे ही वीर बर्बरीक इस चुलकाना धाम की पावन धरती पर पहुंचें, तभी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के साथ ब्राह्मण वेश में इस तपोभूमि, भावभूमि पर पहुँचे और अपनी लीला शुरू की बर्बरीक को रोकने के लिये श्याम, धाम, दंड, भेद सारी नीतियाँ अपनाई, बर्बरीक के न मानने से फिर ब्राहमण ने कहा तुम कौन हो ?

तब बाबा ने कहा मैं घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हूँ। ब्राहमण ने कहा तुम बर्बरीक नहीं हो सकते बर्बरीक तो महादानी है, महान्यायधीश,महाबली है तब बर्बरीक ने कहा हे ब्राह्मण देवता मुझे अपने आपको बर्बरीक सिद्ध करने के लिए क्या करना होगा। तब ब्राहमण ने कहा मेरे मन की इच्छा पूर्ण होगी तो सिर्फ वीर बर्बरीक ही पूरी कर सकते हैं। क्या करना होगा बोलिए ब्राहमण देवता – तब विप्रधारी भगवान ने कहा हे बालक इस पेड़ के हर पत्ते में सुराख देखना चाहता हूं, जो सिर्फ वीर बर्बरीक ही कर सकते हैं, वीर बर्बरीक ने जैसे ही एक बाण अपने तरकश से निकाला और मस्तक पर लगाया ठीक उसी दौरान ब्राह्मण देवता ने एक पत्ता वृक्ष से तोड़कर झट से पैर के नीचे दबा लिया और वीर बर्बरीक ने बाण छोड़ दिया।

मेरे बाण भी मेरी मन की इच्छानुसार ही चलते

बाण ने पूरी रफ्तार से वृक्ष के सभी पत्तो में छिद्र कर दिऐ उसके बाद बाण उस ब्राह्मण के पैर की तरफ आने लगा तभी बर्बरीक ने कहा हे ब्राह्मण देवता आपने मुझे बर्बरीक सिद्ध करने के लिए अपने मन की इच्छा जाहिर की थी और मेरे बाण भी मेरी मन की इच्छानुसार ही चलते हैं। मैंने अपने बाण को आदेश दिया कि इस ब्राह्मण की इच्छा पूरी करने के बाद ही मेरे पास वापिस आना। मुझे और मेरे बाण को संशय है आपके पैर के नीचे पत्ता छिपा हुआ है, अपना पैर उठाइऐ अन्यथा आपके पैर को भेद देगा मेरा बाण क्योंकि मेरा बाण तभी वापस आयेगा जब हर पत्ते में छिद्र हो जाएगा। कृप्या अपना पैर उठाइये ब्राहमण ने झट पैर उठाया । उस पत्ते में भी छिद्र करने के बाद बाण वापिस बर्बरीक के पास आ गया।

अगर ये योद्धा सचमुच में इतना शक्तिशाली है तो ये शत्रु को ढूंढ ढूंढ कर मारेगा

आज भी चुलकाना धाम में महाभारत कालीन पीपल का वृक्ष है जिसके पत्तों में आज भी छिद्र अपने आप बनते है, अर्जुन को संशय हुआ कहीं कन्हैया की तो कोई लीला नहीँ है। अगर ये योद्धा सचमुच में इतना शक्तिशाली है तो ये शत्रु को ढूंढ ढूंढ कर मारेगा। भगवान मन ही मन मुस्करा रहे हैं , तब ब्राहमण ने बर्बरीक से कहा की हमें यकीन हो गया है कि आप ही बर्बरीक हो, आप ही महादानी हो, आप महाआज्ञाकारी हो,और आप अकेले ही इस युद्ध को जीत सकते हो, लेकिन आपको ये बताना होगा कि आप किसकी तरफ से युद्ध लड़ोगे तब बर्बरीक ने कहा जो पक्ष हार जायेगा उसकी तरफ से मैं युद्ध लडूंगा । तब ब्राह्मण ने कहां आप वहां मत जाये क्योंकि वहां पर आपकी बलि देने की चर्चा हम सुनकर आ रहे हैं।

 बर्बरीक बोलें अब तो मैं जरूर जाऊंगा..अपने कुल का नाम रोशन करूँगा

धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ एक स्त्री के पैर में पड़े गिडगिडा रहे हैं, और उस स्त्री को महाचंडी नाम से पुकार रहे हैं , वो स्त्री बडी क्रोधित हैं और कह रही है, मैं सबका विनाश करूंगी तुम्हेँ भी खत्म करूंगी । धर्मराज इसका उपाय पूछ रहे हैं तब वो देवी कहती है तुम्हारे पास तीन महाबली है। अर्जुन,श्रीकृष्ण और वीर बर्बरीक । इन तीनों में से मुझे किसी एक की बलि चाहिये मैं तभी आपको क्षमा कर सकती हूं, तब सभी आपकी बलि देने को राजी हो गए। इसलिये आप कृपया वहां मत जाइये और अपनी शक्ति व्यर्थ न कीजिये । जब भी तीनों लोंको में कोई आपातकालीन स्थिति आयेगी तब ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन कीजिए। बर्बरीक बोलें अब तो मैं जरूर जाऊंगा। अपने कुल का नाम रोशन करूँगा।

…तब ब्राह्मण ने क्या आप हमें वो दे सकते हैं जो हम चाहे

भगवान की सारी नीतियाँ व्यर्थ हुई, तब कहा, तो जाओ, ये रास्ता सीधा युद्धभूमि को गया है। आप जाओ और युद्ध देखो, लड़ो,बर्बरीक जैसे ही चलने लगे भगवान ने इस तपोभूमि से जो भाव प्रकट हुए हैं वो भाव वाला तीर छोड़ दिया । मां सरस्वती को वीर बर्बरीक के हृदय में विराजमान कर दिया, तभी बर्बरीक को भाव आया कि इन मानवों ने मेरी सारी शक्ति जान ली जो ब्राह्मण है उसके फलस्वरुप मैंने इन ब्राह्मणों को कोई उपहार तो दिया नहीं, तब बर्बरीक वापस मुडे और ब्राह्मण से कहा हे ब्राहमण देवता मैं आपको उपहार स्वरूप कोई भेंट देना चाहता हूं. जो आप चाहे मुझे बताइये । तब ब्राह्मण ने कहा नहीं आप युद्ध में जाइये, इस वक्त आपके पास इतना कुछ नहीं है जो हमें दे दे। तब बर्बरीक ने कहा नहीं मैं देना चाहता हूं। तब ब्राह्मण ने क्या आप हमें वो दे सकते हैं जो हम चाहे।

वचन के बदले ब्राह्मण ने शीश का दान मांग लिया

हाँ बर्बरीक ने कहा – ब्राह्मण ने कहा ऐसे नहीं वचन दो, और वचन इस प्रकार मांगा जो चीज हम तुमसे माँगेंगे वो तुम मुझे दोगे, अगर नहीं दे पाये तो युद्ध भी नहीं देखोगे, यहीं से वापिस मुड जाओगे। बर्बरीक ने वचन दिया। वचन के बदले ब्राह्मण ने शीश का दान मांग लिया।

तीनों लोकों में जैसे समय का चक्र, हृदय गति, हवा, जल, पत्ते जैसे कुछ समय के लिए रुक से गए हों, कुछ देर में बर्बरीक को आभास हुआ कि इस ब्राह्मण ने मेरे बारे में सब कुछ जान लिया मेरी शक्ति का प्रदर्शन देख लिया और अपने बारे में कुछ बताया नहीं और अब मुझसे वचन के बदले शीश माँग लिया। ये मेरे साथ कोई न कोई चाल चली जा रही है। बर्बरीक तभी बोले, हे ब्राह्मण देवता मैं अपने वचन का पालन जरूर करूंगा, लेकिन मुझे एक संशय है आप अपना वास्तविक रुप मुझे दिखाइये। भगवान भी यही चाहते थे।

जहाँ दिया था शीश का दान, वो भूमि है चुलकाना धाम

ट्रस्ट के सचिव हरिश बंसल ने बताया कि चुलकाना धाम की इस पावन पवित्र भूमि पर ये सारी लीला हुई तभी ब्राह्मण ने अपना नारायणी रूप विराट रुप वीर बर्बरीक को दिखाया। विराट रुप देखकर वीर बर्बरीक ने प्रभु की खूब प्रंशसा की और शीश दान देने के लिए तैयार हुए, तभी भगवान ने कहा, आपकी कोई इच्छा हो तो मुझे बताये।

तब वीर बर्बरीक ने कहा, प्रभु मैं अब ये युद्ध तो लड नहीं सकता, मेरी यह सारा युद्ध देखने की इच्छा है, प्रधान राकेश बंसल ने बताया कि तभी वीर बर्बरीक ने फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अपना शीश उतार कर भगवान के श्री चरणों में सौंप दिया। भगवान ने तुरंत शीश उठाया और देवियों का आह्वान करके अमृत से सींचा। जहाँ दिया था शीश का दान, वो भूमि है चुलकाना धाम।

यहां से श्री श्याम फाल्गुन मेले की शुरुआत हुई

भगवान ने ऊँचे सिंहासन पे विराजमान करके शीश को सारा युद्ध दिखाया। पाण्डवों की युद्ध में विजय हुई,पाण्डवों में घमंड हुआ अपने-अपने बल का। तब भगवान उन सभी को वीर बर्बरीक के शीश के पास लेकर आये और बर्बरीक के शीश से पूछा कि ये युद्ध किस महयोध्दा की बदौलत पाण्डव जीत पाये ? तब बर्बरीक ने मुझे क्षमा करना,क्योंकि जो मैनें देखा मैं वहीँ आप सब को बताऊंगा । इस युद्ध में मुझे सिर्फ श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र और मेरी दादी द्रोपति का खप्पर ही नजर आया (सतयुग में श्री चुनकट ऋषि की बची हुई आधी कुशा ने द्रोपदी का रूपधारण किया) इसके अलावा पाण्डवों आपके द्वारा तो किसी चीटी का भी वध होते नहीं देखा । भगवान बड़े प्रसन्न हुए और बर्बरीक को बोले, मांगो जो मांगना है।

बर्बरीक ने भगवान से नारायणी रुप (श्याम रूप) मांग लिया

तब बर्बरीक ने भगवान से नारायणी रुप (श्याम रूप) मांग लिया। तब भगवान ने अपना नाम और अपना श्याम रूप वरदान स्वरुप वीर बर्बरीक को दिया और तीनों लोकों में घोषणा (आकाशवाणी) कर दी कि हे बर्बरीक आज के बाद आप मेरे श्याम नाम से ही जाने जाओगे और मेरे श्याम रूप में पूजे जाओगे। आने वाले युग कलियुग में जो भी जन तुम्हारा दर्शन करेगा उसका कल्याण हो जायेगा और भगवान श्री कृष्ण के वरदान फलस्वरूप चुलकाना धाम में ठाकुर श्री श्याम बाबा मन्दिर की स्थापना हुई। पहले यहां भक्तों की भीड़ हजारों में होती थी आज हर महीने लाखों में होती हैं आने वाले समय में करोड़ो मे होगी।

एकादशी व द्वादशी को लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिये आते

पूर्व सरपंच मदन लाल शर्मा ने बताया कि वीर बर्बरीक के शीश दान करने के बाद इसी धरा पर देवियों का भगवान श्री कृष्ण ने आह्वान किया और वीर बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचवाया, भगवान श्री कृष्ण की अनुकम्पा से वीर बर्बरीक के अमृत से सींचे हुए उस शीश का एक अंश उसी समय श्री चुनकट ऋषि की तपोभूमि पर गिर गया था जो कालान्तर में श्याम नाम से विख्यात हुआ जहां हर वर्ष लाखों भक्त पूजा अर्चना के लिए आते हैं।

वीर बर्बरीक की धड़ यानि शीश से निचे का जो शरीर था ओ भी यहीं धरती में समा गया। श्री श्याम बाबा का प्राचीन सिद्ध मन्दिर हरियाणा के पानीपत जिले के चुलकाना गांव में स्थित है। जहां हर वर्ष फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी व द्वादशी को लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिये आते हैं।

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