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क्‍या हैं नवनिर्वाचित राज्‍यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा की जीत के मायने

Amit Gupta • LAST UPDATED : June 11, 2022, 2:33 pm IST

इंडिया न्‍यूज: Kartikeya Sharma Rajya Sabha Member: कार्तिकेय शर्मा की जीत वास्‍तव में हरियाणा की जीत है। वे अब राज्‍यसभा में हरियाणा की आवाज को बुलंद करेंगे। अजय माकन का नाम आते ही हरियाणा ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था। पहले दिन ही हरियाणा में मुद्दा बन चुका था। म्‍हारा छोरा वर्सेज पैराशूट कैंडिडेट।

सोशल मीडिया पर भी म्‍हारा छोरा वायरल रहा। जैसा कि रामकुमार गौतम से अपील में कहा कि जो काम हरियाणा में विनोद शर्मा ने अपने कार्यकाल में करवाए उसी से अनेक वर्गों का उत्‍थान हुआ। यही वो अहम कारण है कि विनोद शर्मा की स्‍वच्‍छ छवि और लोक कल्‍याण के कार्यों के कारण सभी एकजुट हुए। पिता का ये अक्‍स अब कार्तिकेय में भी दिखाई देने लगा है।

पहले दिन से ही प्रबल दावेदार थे कार्तिकेय

राज्‍यसभा नामांकन के वक्‍त से ही हरियाणा का सियासी पारा उफान पर था। कारण भी साफ था कि युवा तुर्क कार्तिकेय की प्रबल दावेदारी। साथ ही सीएम मनोहर लाल और जेजेपी की जुगलबंदी ने पहले ही साफ कर दिया था कि कांग्रेस के हरियाणा में भी बुरे दिन शुरू हो चुके हैं। वहीं अभय चौटाला ने साथ देते हुए साबित किया कि वे कार्तिकेय को उच्‍च सदन में देखना चाहते हैं।

पिता विनोद शर्मा की राह पर कार्तिकेय

पिता विनोद शर्मा की राह पर चल रहे कार्तिकेय ने साबित कर दिया है कि वे उन्हीं की तरह सियासत में परचम लहराएंगे। करीब 30 वर्ष पहले 1992 में उनके पिता विनोद शर्मा भी राज्‍यसभा के सदस्‍य बने थे और अब उसी राह पर कार्तिकेय आगे बढ़ रहे हैं।

उस वक्‍त पंजाब में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री बेअंत सिंह की सरकार थी। इसी दौरान विनोद शर्मा कांग्रेस पार्टी से राज्‍यसभा सदस्‍य निर्वाचित हुए थे। विनोद शर्मा 1998 तक राज्‍यसभा सदस्‍य रहे। केंद्र में उस वक्‍त तत्‍कालीन पीवी नरसिंहा राव की सरकार थी।

पार्टी में अच्‍छी पकड़ और अनुभव के कारण ही उन्‍हें डिप्‍टी मिनिस्‍टर बनाया गया था। इससे पहले विनोद शर्मा 1980 में बनूड़ विधानसभा से विधायक चुने गए थे। वे अब तक तीन टर्म विधायक रह चुके हैं।

कार्तिकेय की जीत के मायने

कार्तिकेय की जीत के मायने हरियाणा के लिहाज से महत्‍वपूर्ण है। पहला ये कि पहली ही दफा जिस सूझबूझ से रणनीति तैयार की गई उससे राजनीति में उनका कद बढ़ गया है। दूसरा ये कि वे ब्राह्मण राजनीति का भी वे केंद्र बिंदु बनकर उभरेंगे। हरियाणा में फि‍लहाल कोई युवा ब्राह्मण नेता भी नहीं है, जिसकी राष्ट्रीय फलक पर पहचान हो। इस लिहाज से जल्‍द ही कार्तिकेय को और अहम और बड़ी जिम्‍मेदारी से भी नवाजा जा सकता है।

ये है युवा तुर्क की खासियत

कार्तिकेय की एक खासियत ये भी है कि जो भी काम वे हाथ में लेते हैं, उसे जब तक पूरा न कर लें चैन से नहीं बैठते हैं। वे इसे डयूटी और डेडिकेशन की तरह देखते हैं। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे महत्‍वपूर्ण भूमिका मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल की रही। उन्‍होंने कंधे से कंधा मिलाते हुए हर एक कड़ी को बारीकी से देखा और उसे एक सूत्र में पिरोते गए। मनोहर की इस पहल का लाभ पहले ही दिन दिखने लगा था जब उन्‍होंने समर्थन की बात कही थी।

कांग्रेस को जोर का झटका

कांग्रेस खुद 31 वोट होने के बावजूद अंतर्कलह से गुजर रही थी। कांग्रेस के नेता अंदर ही अंदर चाहते थे कि हुड्डा हारें और उनकी किरकरी हो। ये सच साबित न हो इसके लिए हुड्डा ने खूब जतन किए, लेकिन खुद की प्रतिष्‍ठा नहीं बचा सके।

पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए राज्‍यसभा चुनाव सबक है। और सबक ये है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। इस हार से उनके कद पर असर डल सकता है। कांग्रेस हाई कमान अभी तक हुड्डा के हर फैसले पर मुहर लगाती आई है, अब इस पर विराम लग सकता है। वहीं अनुभवी सैलजा को किनारा करना भी कांग्रेस के लिए महंगा साबित हो सकता है।

नाराजगी महंगी पड़ गई

बात कांग्रेस की करें तो कहीं न कहीं हाई कमान भी समय रहते सही फैलसे नहीं करती है। यही कारण है कि कांग्रेस उठने की बजाए लगातार रसातल में जा रही है। इस बात की भी चर्चा हो रही है कि कुलदीप बिश्‍नोई को आखिर राहुल गांधी ने समय क्‍यों नहीं दिया।

ये बात वोटिंग से पहले की है। अगर यही समय पर राहुल समय दे देते तो एक वोट का नुकसान नहीं होता। इसकी भी चर्चा है कि कुलदीप को प्रदेश अध्‍यक्ष पद न मिलने के कारण वे नाराज थे और इस पर हुड्डा ने मीटिंग नहीं होने दी। कहीं न कहीं हुड्डा ने अब अपने लिए ही गड्ढा खोद लिया है। हार के डर से ही रणदीप सुरजेवाला को राजस्‍थान की ओर रुख करना पड़ा। ऐसे में पूर्व अध्‍यक्ष सैलजा, रणदीप और कुलदीप किसी भी सूरत में हुड्डा को चैन से बैठने नहीं देंगे।

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