पवन शर्मा, चंडीगढ़:
हरियाणा कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर चल रही अटकलबाजियों का दौर अब लंबा खिंच सकता है। बार बार उलझते समीकरणों के बीच हाईकमान अब दौराहे पर खड़ा नजर आ रहा है। कांग्रेस के बड़े नेताओं की मानें तो कांग्रेस न तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नाराज करने के पक्ष में और न ही हुड्डा विरोधी गुट काे कोई ऐसा संदेश देना चाहता है जिससे यह लगे कि हाईकमान किसी के दबाव में काम कर रहा है। यह भी माना जा रहा है कि पूरा खेल अब जाट नॉन जाट पॉलिटिक्स में उलझ गया है।
राजस्थान के उदयपुर में 13 से 15 मई तक आयोजित होने वाले चिंतन शिविर में कांग्रेस ने भले ही हरियाणा से तीन नेताओं भूपेंद्र सिह हुड्डा, कमारी शैलजा व रणदीप सिंह सुरजेवाला को बड़ी जिम्मेवारी दे दी हो परंतु हाईकमान हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष के फैसले पर पूरी तरह से उलझता नजर आ रहा है। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो कुलदीप बिश्नोई और भूपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों ही अध्यक्ष पद के लिए ऐडी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिहं हुड्डा अपने गुट के लगभग दो दर्जन विधायकों के दम पर कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
उनका साफ कहना है कि उन्हे अध्यक्ष पद के साथ साथ सीएलपी का पद भी चाहिए। मगर कांग्रेस हाईकमान ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने से पहले सारे घटा जोड़ लगाकर देख रहा है। दूसरी ओर हुड्डा विरोधी गुट ने भी अपनी ओर से कुलदीप बिश्नाेई को आगे कर दिया है। पिछले एक सप्ताह के अंदर ही कुलदीप ने सोनिया व प्रियंका से मुलाकात कर सारी बाते हाईकमान के सामने रख दी हैं। इतना ही नहीं अपने धुर विरोधी माने जाने वाले रणदीप सिंह सुरजेवाला को भी कुलदीप ने अपने घर बुलाकर यह साफ संकेत दे दिया कि वे 2005 की कहानी इस बार हुड्डा को नहीं दोहराने देंगेे।
इन सब बातों को देख हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी विवेक बंसल ने भी दो दिन पहले कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात कर सारे हालात ए हाजरा उन्हे बता दिए हैं। अब यह माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान अभी किसी भी प्रकार के विवाद से बचने के लिए अध्यक्ष पद की नियुक्ति कुछ दिन के लिए टाल सकता है।
जुलाई अगस्त में हरियाणा से दो राज्यसभा सीटों पर चुनाव होना है। इनमें एक कांग्रेस का सांसद बनना तय माना जा रहा है। मगर भुपेद्र सिंह हुड्डा के बिना यह चुनाव जीतना टेढी खीर है। इस बात को हुड्डा सुभाष चंद्रा वाले चुनाव में दिखा भी चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के सामने अब निर्णय लेना किसी मुसीबत से कम नहीं है। क्योंकि यह भी माना जा रहा है कि अगर कुलदीप बिश्नोई की अनदेखी की गई तो वह भी कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं।
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