India News (इंडिया न्यूज), Capsule Cover: बदलते मौसम के साथ आए दिन बीमारियाँ भी बढ़ रही हैं। मानसून के आने के साथ ही सर्दी -जुखाम, वायरल फ्लू, बुखार, जैसी कई तरह की समस्याएं भी आने लगती है। इन सब के इलाज के लिए हम सभी को दवा लेने की जरुरत होती है। डॉक्टर्स के जांच के बाद दी हुई दवाईयाँ आम तौर पर कैप्सूल्स ही होती है। पर क्या आप जानते है की कैप्सूल्स के ऊपर प्लास्टिक जैसी दिखने वाली कवर आखिर किस केमिकल से बनाई जाती है और पेट मे कैसे घुल जाती है।
बाज़ार में मिलने वाली दवाइयों में बहुत सी दवाइयां कैप्सूल्स के रूप में उपलब्ध होती है। कैप्सूल्स भी अलग अलग प्रकार और रंग के होते है। कुछ कैप्सूल्स इतने प्रदर्शित होते है की उनके अंदर मौज़ूद दवाई के पदार्थ साफ-साफ दिखाई देते है। आपको बता दें की कैप्सूल्स बनाने के प्रोसेस में दवा के पदार्थ को पाउडर, लिक्विड और कभी कभी दाने के रूप में भरा जाता है। दवाओं को इंसेप्सुलेशन मेथड के प्लास्टिक जैसी दिखने वाली कवर में भरा जाता है। लकिन आप में से बहुत लोगों को लगता होगा की कैप्सूल्स के कवर प्लास्टिक के बने होते है, तो आपको बता दें की ऐसा नहीं है। प्लास्टिक जैसा दिखने वाला ये कवर हालांकि जिलेटिन और सेल्यूलोज से बनता है।
दवाई कम्पनी वाले दवा के डब्बे या पैकेट के पीछे दवा के कंटेंट की साड़ी जानकारी देते है पर बहुत काम कम्पनीज होती है जो कैप्सूल्स की जानकारी देती है। कैप्सूल्स का कवर बनाने के लिए, फैक्ट्रीज में जानवरों की हड्डीयों और स्किन को उबालकर उनको प्रोसेस किया जाता है, जिससे जिलेटिन नामक पदार्थ निकलता है। इसी जिलेटिन को प्रोसेस कर के उन्हें चमकीला और लचीला बनाया जाता है।
कैप्सूल्स दो तरह के कवर में मिलता है, सॉफ्ट कवर और हार्ड कवर। दोनों ही तरह के कवर जिलेटिन और सेल्यूलोज दोनों से ही बन सकता है। जो कैप्सूल्स जानवरों के हड्डियों और स्किन से बनता है उन्हें जिलेटिन कहते है। जिलेटिन बनाने के लिए मछली, मुर्गा, सुअर और गाय के साथ कई दूसरी प्रजाति के जानवर का इस्तेमाल किया जाता है। परन्तु जो कैप्सूल कवर पेड़ पौधों के प्रोटीन से बनता है वो पूरी तरह शाकाहारी और कुदरती होता है और पेड़ पौधों प्रोटीन को ही सेल्यूलोज कहते है।
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एक रिपोर्ट के मुताबिक जिलेटिन से बानी हुई कैप्सूल्स के ज्यादा इस्तेमाल से शरीर के दूसरे हिस्सों पर असर पड़ता है। जिलेटिन आधारित कैप्सूल का अधिक इस्तेमाल करने पर किडनी, और लिवर को भी नुक्सान पहुँचता है। वहीं दूसरी तरफ सेल्यूलोज आधारित कैप्सूल्स ज्यादा सेफ होता है। इन कैप्सूल्स को हमारा पाचन तंत्र ज्यादा आसानी से पचा लेता है। ज्यादातर कैप्सूल्स इसी वजह से इस प्रकार ही बनाये जाते है।
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