Causes of Heart Disease : जानलेवा बीमारी कैंसर से ठीक हो जाना ही काफी नहीं है। इसके बाद भी हेल्थ को लेकर कई तरह की परेशानियां बनी रहती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के साइंटिस्टों ने अपने एक नए रिसर्च में पाया है कि कैंसर से उबरे बच्चों के बढ़ती उम्र के साथ भी बीमार पड़ने का रिस्क ज्यादा होता है। ये रिस्क कैंसर के प्रकार और उसके इलाज की विधि पर भी निर्भर करता है। दी लैंसेट रीजनल हेल्थ- यूरोप जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी के मुताबिक, जो लोग बचपन में कैंसर से उबर चुके होते हैं, उन्हें 45 वर्ष की उम्र तक सामान्य लोगों की तुलना में हार्ट और धमनियों यानी कार्डियोवस्कुलर से संबंधित रोगों के कारण अस्पताल का चक्कर लगाने का जोखिम 7 गुना ज्यादा होता है।
इस स्टडी में यह भी पाया गया कि वैसे लोगों को संक्रमण, इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी और फिर से कैंसर पनपने को लेकर ज्यादा मेडिकल केयर की जरूरत होती है। इस स्टडी में कैंसर के इलाज की विधि से जुड़े रिस्क को लेकर पाया गया कि जिनका इलाज कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी दोनों विधियों से हुआ, बाद में उनकी हेल्थ पर ज्यादा असर पड़ा, जबकि सिर्फ सर्जरी से ठीक हुए मरीजों के बाद में बीमार होने का रिस्क कम था।
उदाहरण के लिए जिन लोगों का उपचार कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से हुआ, उन्हें 45 वर्ष की उम्र तक सर्जरी से ठीक हुए लोगों की तुलना में दोगुना ज्यादा बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इतना ही नहीं, इसी उम्र तक उन्हें कार्डियोवस्कुलर समस्याओं की वजह से सात गुना ज्यादा अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े। उनमें तेजी से फैलने वाला कैंसर फिर से पनपने का खतरा भी ज्यादा था।
यूसीएल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ इंफोर्मैटिक्स की साइंटिस्ट और इस स्टडी की सीनियर राइटर अल्विना लाइ ने बताया कि सही समय पर कैंसर की पहचान हो जाने पर 80 प्रतिशत बच्चे और युवा बच तो जाते हैं, लेकिन कैंसर के ट्रीटमेंट मैथड के कारण उन्हें बाद में भी हेल्थ संबंधी खास देखभाल की जरूरत होती है। हमारी स्टडी में पहली बार इसका पूरा खाका तैयार किया गया है कि बचपन में कैंसर ग्रस्त हुए लोगों को बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य संबंधी क्या परेशानियां होती हैं। इसलिए जिन परिवार के बच्चे कैंसर से पीड़ित हों, उन्हें चाहिए कि इलाज के तरीके को लेकर भविष्य की स्वास्थ्य चिंताओं को भी ध्यान में रखें। इसके बारे में जागरूकता जरूरी है। हमें उम्मीद है कि आगे की रिसर्च में कैंसर थेरेपी के लॉन्ग टर्म साइड इफैक्ट्स को कम करने पर खास ध्यान दिया जाएगा।
इस स्टडी के दौरान रिसर्चर्स ने इंग्लैंड में 25 साल से कम उम्र में कैंसर से पीड़ित हुए 3,466 लोगों के डाटा की पड़ताल की। ये लोग कैंसर से उबरने के बाद कम से कम पांच साल तक जिंदा रहे थे। इनकी तुलना कंट्रोल ग्रुप (जिन्हें कैंसर नहीं हुआ था) के 13,517 लोगों के डेटा से की गई। दोनों ग्रुपों के लोगों में उम्र और सामाजिक हैसियत में समानता थी। इनके डाटा 1998 से 2020 के बीच एकत्र किए गए थे।
इस स्टडी के निष्कर्ष में पाया गया कि कैंसर से उबरे जो लोग कार्डियोवस्कुलर डिजीज से पीड़ित हुए, उन्होंने कंट्रोल ग्रुप के लोगों की तुलना में औसतन 10 साल ज्यादा जीवन खो दिए। इसी तरह कैंसर के जिन पुराने रोगियों को इम्यून सिस्टम और संक्रमण संबंधी बीमारियां हुईं, उन्हें औसतन 6.7 साल के जीवन का ज्यादा नुकसान हुआ। जबकि दोबारा कैंसर पनपने पर औसतन 11 साल के जीवनकाल का नुकसान हुआ।
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