Corona प्रेग्नेंसी के दौरान जो महिलाएं कोविड-19 मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड (एमआरएनए) वैक्सीन की डोज लेती हैं। वे अपने बच्चे को उच्च स्तर की एंटीबॉडी देती हैं। एक स्टडी में यह सामने आया है। ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनोकोलॉजी मैटरनल-फीटल मेडिसिन’ में प्रकाशित अध्ययन उन 36 नवजातों पर किया गया, जिनकी माताओं ने गर्भावस्था के दौरान फाइजरया मॉडर्ना की कोविड-19 वैक्सीन की डोज ली थी। अमेरिका में एनवाईयू ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के अगुवाई वाले दल ने पाया कि 100 प्रतिशत शिशुओं में जन्म के समय सुरक्षात्मक एंटीबॉडी थे। रिसर्चर्स का कहना है कि कोविड-19 वैक्सीन की क्षमता सही एंटीबॉडी और संक्रमण से लोगों को बचाने में सक्षम रक्त प्रोटीन का उत्पादन करने की उनकी क्षमता पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि क्या यह सुरक्षा माताएं जन्म से पहले अपने शिशुओं तक पहुंचा सकती है, यह अब भी एक सवाल बना हुआ है।
एनवाईयू लैंगोन में हैसनफेल्ड चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल में सहायक प्रोफेसर और अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका जेनिफर एल लाइटर ने कहा कि हालांकि सैंपल का आकार छोटा है। लेकिन यह प्रोत्साहित करने वाला है कि अगर महिलाएं वैक्सीन लगवाती हैं तो नवजात शिशु में एंटीबॉडी का स्तर अधिक होता है। रिसर्चर्स ने कहा कि यह नतीजा प्रासंगिक है क्योंकि सार्स-सीओवी2 वायरस के खिलाफ बनने वाली प्राकृतिक एंटीबॉडी कई लोगों के लिए पर्याप्त रूप से सुरक्षात्मक नहीं होती।
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अमेरिका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र के ताजा आंकड़ों से यह पता चलता है कि प्रसव पूर्व वैक्सीन की सुरक्षा के बढ़ते सबूतों के बावजूद महज 23 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने वैक्सीन की डोज ली। रिसर्चर्स ने पाया कि जिन महिलाओं ने अपनी गर्भावस्था के बाद के आधे समय के दौरान वैक्सीन की दोनों डोज ली उनके गर्भनाल के रक्त में एंटीबॉडी का उच्चतम स्तर पाया गया। उन्होंने बताया कि इससे यह साक्ष्य मिलता है कि माताओं से नवजातों को जन्म से पहले रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलती है। एनवाईयू लैंगोन हेल्थ में प्रोफेसर एश्ले एस रोमन ने कहा कि अध्ययन में गर्भावस्था के दौरान वैक्सीन की महत्ता और माताओं तथा शिशुओं दोनों में गंभीर बीमारी होने से रोककर एक बार में दो जिंदगियां बचाने पर जोर दिया गया है। अगर शिशुओं का जन्म एंटीबॉडी के साथ होता है तो इससे वह अपने जीवन के पहले कई महीनों तक सुरक्षित रह सकते हैं और यह ऐसा समय होता है जब वे बीमार पड़ने के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं।