India News (इंडिया न्यूज़), Covid 19 Update: पिछले कुछ साल में कोरोना महामारी ने दुनिया भर में जीवन को बदल दिया। कोरोना के बाद दुनियाभर में टीकाकरण किया गया। लेकिन इस टीकाकरण की वजह से एक विशेष तरह के टीके से दुनिया के कई बच्चे महरूम रह गए, जिसकी वजह से बच्चों में एक खास बीमारी पैर पसार रही है। इस बीमारी का नाम है खसरा और सब-एक्यूट स्क्लेरोसिंग पैनेसेफलाइटिस यानी SSPE। ऐसे में ये जानना और समझना बेहद जरूरी है कि आखिरकार SSPE क्या है? ये कितनी खतरनाक है? इसके लक्षण क्या क्या हैं? और फिलहाल इससे बचाव के लिए कौन कौन से कदम उठाए जा रहे हैं। जाने इस रिर्पोट में।
असल में SSPE यानि सब-एक्यूट स्क्लेरोसिंग पैनेसेफलाइटिस एक दिमागी बीमारी है, जो मुख्य रूप से उन बच्चों और युवा वयस्कों को प्रभावित करती है, जिन्हें बचपन में खसरा हुआ था।
WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में दुनिया भर में लगभग 90 लाख खसरे के संक्रमण के मामले सामने आए और इस दौरान 1 लाख 28 हजार मौतें भी हुईं। एक्सपर्ट्स की मानें तो कोरोना महामारी की वजह से साल 2020 से 2022 के बीच बच्चों को खसरा का टीका टलने की वजह से ये बीमारियां ज्यादा फैल रही हैं। WHO की एक रिर्पोट के मुताबिक साल 2021 में दुनियाभर में लगभग 4 करोड़ बच्चे खसरे के टीके की खुराक नहीं ले सके। इस दौरान तकरीबन 2 करोड़ 50 लाख बच्चों ने अपनी पहली खुराक और 1 करोड़ 47 लाख बच्चों ने अपनी दूसरी खुराक मिस कर दी। वहीं साल 2022 में भारत में तकरीबन 11 लाख बच्चों को खसरे के टीके की पहली खुराक नहीं मिली। इसका परिणाम ये हुआ है कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में खसरा और SSPE का खतरा बढ़ गया।
सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल के आंकड़ों के मुताबिक SSPE मामलों की संख्या में भारत यमन के बाद दूसरे स्थान पर है। हालांकि ये एक दुर्लभ बीमारी है और इसका खतरा 1 लाख खसरा पीड़ितों में से 2 लोगों में होता है। खसरे के संक्रमण के दौरान कभी-कभी वायरस मस्तिष्क में एंटर हो जाता है और वायरस की वजह मस्तिष्क में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जिससे मरीज SSPE का शिकार हो जाता है। SSPE के विकसित होने का खतरा उन लोगों में ज्यादा होता है, जो 2 वर्ष की आयु से पहले खसरे से संक्रमित हो जाते हैं। एसएसपीई के लक्षणों को 4 स्टेज में क्लासिफाई किया गया है। हर स्टेज के बाद बीमारी के लक्षण गंभीर होते चले जाते हैं।
फर्स्ट स्टेज के लक्षणों में मरीज का मूड बदलना या अवसाद जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा बुखार और सिरदर्द भी हो सकता है। सेकंड स्टेज में मांसपेशियों में ऐंठन, नजर कमजोर होना, सोचने की क्षमता कम हो जाना और दौरे पड़ना जैसे लक्षण शामिल हैं। SSPE के थर्ड स्टेज के मरीजों को कुलबुलाहट के साथ ही मांसपेशियों में कठोरता जैसी समस्यायें महसूस होती हैं। अगर इन्हें नियंत्रित नहीं किया जाए, तो ये कई बार मरीज की मौत की वजह भी बन जाते हैं। वहीं इसके फोर्थ स्टेज में मस्तिष्क के आसपास का वो भाग जो सांस, हृदय गति और बीपी को कन्ट्रोल करता है। उसे नुकसान पहुंच सकता है। ऐसा होने पर कोमा और फिर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। SSPE का अभी तक कोई इलाज मौजूद नहीं है। हालांकि, इस बीमारी के लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। फिलहाल इस बीमारी के विकसित होने की गति को धीमा करने के लिए कुछ एंटी-वायरल और दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो कि इम्यून सिस्टम को मजबूत करने का काम करती हैं।
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