Gluten: क्या आप जानते हैं कि ग्लूटन आपकी सेहत के लिए खतरनाक है? क्या आप जानते हैं कि ग्लूटन होता क्या है और यह क्यों खतरनाक है? आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ। दरअसल, ग्लूटन गेहूं, जौ और जई (बार्ली) जैसे अनाजों में मिलने वाला एक प्रोटीन है। ग्लूटन में कई तरह के तत्व होते हैं। उनमें से एक है ग्लियाडिन। ग्लूटन इसी ग्लियाडिन की वजह से खतरनाक बनता है यह सीलिएक और ग्लूटन से एलर्जी रखने वालों के लिए हानिकारक है। जब कोई ग्लूटन सेंसिटिव शख्स ग्लूटन प्रॉडक्ट खाता है तो शरीर ग्लूटन को अपना दुश्मन समझने लगता है। असल परेशानी यही से शुरू होती है। इसकी वजह से शरीर में कई तरह की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। ग्लूटन संबंधी समस्याओं को समझें। सीलिएक ग्लूटन सेंसिटिव। नॉन-सीलिएक ग्लूटन सेंसिटिव या वीट इंटॉलरंस।

क्या और क्यों? (Gluten)

कुछ लोग बचपन से ही ग्लूटन को लेकर सामान्य नहीं होते। जिन्हें सीलिएक बीमारी होती है, उनमें ग्लूटन प्रोटीन पूरी तरह से पच नहीं पाता और इससे छोटी आंत की म्यूकोसा लेयर को नुकसान पहुंचता है। इससे उसमें छोटे-छोटे सुराख हो जाते हैं। इस वजह से खाना पचता नहीं है और कई दूसरी तरह की समस्याएं भी हो जाती हैं। यह जन्मजात होती है।

लक्षण (Gluten)

इसके पेशंट की लंबाई कम होती है, वजन नहीं बढ़ पाता। उनमें डायरिया, एनीमिया और हड्डियों की कमजोरी जैसे लक्षण हो सकते हैं। नॉन-सीलिएक ग्लूटन सेंसिटिव या वीट इंटॉलरंस एक ऐसी समस्या है जिसके लक्षण तो सीलिएक जैसे होते हैं, लेकिन यह उससे अलग है। यह जेनेटिकल (खानदानी) नहीं है और न ही उतनी गंभीर बीमारी है। फूड हैबिट्स की वजह से इसका जन्म होता है। गेहूं, जौ आदि के ज्यादा सेवन और दूसरे अनाजों को नजरअंदाज करने से कुछ लोगों को पेट में अक्सर दर्द, पेट फूलने जैसी समस्याएं होती रहती हैं। डॉक्टर की सलाह से जब कोई शख्स ग्लूटन वाली चीजें खाना बंद करता है तो अमूमन धीरे-धीरे यह समस्या दूर हो जाती है।

ग्लूटन से हो सकती हैं ये समस्याएं (Gluten)

  • मुंह: अल्सर, गले में खराश
    दिमाग: माइग्रेन, थकान, सिर में दर्द, डिप्रेशन, भूलने की आदत
  • पेट: अपच, गैस, कब्ज, पेट दर्द
    छोटी आंत: सीलिएक बीमारी, डायरिया
  • बड़ी आंत: डायरिया, कब्ज, मलद्वार का फूल जाना
    स्किन: एग्जीमा, डर्मटाइटिस
  • ग्रोथ: लंबाई और वजन का कम रहना
    इम्यून: इम्यून सिस्टम कमजोर, बार-बार इंफेक्शन होना
  • चूंकि प्रभावित व्यक्ति का पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं करता है इसलिए उन्हें ये समस्याएं भी हो सकती हैं। हड्डी और जॉइंट का रोग ओस्टियोपोरोसिस, जॉइंट पेन, अनीमिया, शरीर में विटामिन और मिनरल्स की कमी व नपुंसकता।
  • सीलिएक बीमारी
    अभी तक की रिसर्च से यह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है कि सीलिएक बीमारी जेनेटिकल है यानी माता-पिता से मिले जींस से होती है।
  • ग्लूटन इंटॉलरेंस
    बिलकुल नहीं, ग्लूटन के प्रति इंटॉलरेंस जेनेटिकल नहीं है। यह किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकता है।
    विदेशों में सीलिएक और वीट इंटॉलरंस पर काफी रिसर्च हो रही हैं। कुछ वर्ष पहले तक यह माना जाता था कि लिकी गट की समस्या सिर्फ सीलिएक रोगियों को ही हो सकती है जबकि विदेशों में कुछ मामले ऐसे आए हैं जहां नॉन-सीलिएक मरीजों को भी यह समस्या हुई है।

वीट बेली क्या है (Gluten)

तमाम एहतियात बरतने के बावजूद कुछ लोगों को तोंद निकल आती है। उन्हें समझ नहीं आता कि ज्यादा न खाने के बावजूद उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। हो सकता है कि उन्हें वीट बेली हो। वीट बेली की समस्या ऐसे लोगों को होती है जिन्हें गेहूं से एलर्जी हो। इसकी वजह से उन्हें अपच, दस्त, पेट फूलना, स्किन से जुड़ी समस्या हो सकती है। इसके अलावा उन्हें खाने के बाद कमजोरी लगती है और बहुत ज्यादा सुस्ती आती है।

अनाज का रोटेशन करना जरूरी है? (Gluten)

89 फीसदी लोग जिन्हें ग्लूटन से जुड़ी कोई समस्या नहीं है, उन्हें गेहूं नहीं छोड़ना चाहिए, लेकिन यह जरूरी है कि वे गेहूं का आटा लगातार नहीं बल्कि एक अंतराल में खाएं। सीधे कहें तो सिर्फ गेहूं की रोटी ही नहीं बल्कि ज्वार, बाजरा, चावल, मकई आदि के आटे से बनी रोटी भी इन्हें खाना चाहिए। इससे ग्लूटन संबंधी अगर कोई समस्या भविष्य में होनी है तो उससे भी निजात मिल जाएगी। वैसे, शास्त्रों में कहा गया है कि एक साल यानी 365 दिन में 80 दिन गेहूं नहीं खाना चाहिए।

सीलिएक का पता कैसे चलता है

किसी को सीलिएक बीमारी है कि नहीं, इसका पता लगाने के लिए एंडोस्कोपी का सहारा लिया जाता है। इसमें यह देखा जाता है कि आंत का टिशू खराब तो नहीं हुआ है। दरअसल, टिशू खराब होने के बाद इंसान की आंत के निचले हिस्से में छोटे-छोटे छेद हो जाते है, इसलिए इसे लिकी गट भी कहा जाता है। ये छेद इतने छोटे होते हैं कि आसानी से इनका पता भी नहीं चलता। इसके अलावा इसके मरीजों का फूड या वीट इंटॉलरेंस टेस्ट भी होता है।

पुराने जमाने में यह बीमारी क्यों नहीं होती थी

वे गेहूं कम नहीं खाते थे, लेकिन जरूरत से ज्यादा भी नहीं खाते थे। वे फूड रोटेशन को फॉलो करते थे। गेहूं के अलावा बाजरा, ज्वार, चना आदि भी वे खूब खाते थे। वे शारीरिक मेहनत भी भरपूर करते थे। वहीं एक बड़ा अंतर यह भी था कि आज जितने तरह के रसायनिक खाद और पेस्टिसाइड का उपयोग होता है, वैसा पहले नहीं होता था।

क्या ग्लूटन-फ्री फूड आसानी से उपलब्ध हैं

पश्चिमी देशों में ग्लूटन सेंसिटिविटी को डायबीटीज जितना खतरनाक माना जाने लगा है। अमेरिका और यूरोप के कई देशों के रेस्तरां ग्लूटन-फ्री फूड को अपने मेन्यू में शामिल कर रहे हैं। भारत में ऐसे फूड के लिए खुद ही ज्यादा सजग रहने की जरूरत है। अभी देश में ऐसे रेस्तरां बहुत कम हैं।

मेडिकल फील्ड में इसकी चर्चा कम क्यों है

यह मुमकिन है कि एक-तिहाई क्रोनिक बीमारी का कारण ग्लूटन हो, लेकिन अभी इस पर रिसर्च चल रही है। ग्लूटन और उससे जुड़ी समस्या के सभी लिंक जुड़ नहीं पाए हैं। इसलिए हम ग्लूटन को पूरी तरह जिम्मेदार भी नहीं मान सकते। यही कारण है कि मेडिकल फील्ड में इसकी चर्चा कम है।

ग्लूटन रहित खाना

  • ब्रेकफस्ट
    (तीनों में से कोई एक)
    धनिये की चटनी के साथ बेसन/ कुट्टू/ मूंग दाल का चीला
    टमाटर की चटनी के साथ मूंग दाल वेजिटेबल इडली
    राइस पोहा के साथ हरी सब्जी (लौकी, बिन्स आदि) और दही।
  • लंच से पहले
    (दोनों में से कोई एक)
    फल (सेब, संतरा, अमरूद आदि) और नारियल पानी
    चना सत्तू (रोस्टेड चने का सत्तू), यह ध्यान रहे कि जौ का सत्तू नहीं क्योंकि इसमें ग्लूटन है।
  • लंच
    रेड राइस/ सेला चावल/ ब्राउन राइस के साथ मूंग की दाल और हरी सब्जी (1 कटोरी)
    बाजरा या ज्वार-मेथी रोटी- 1 से 2
    मूंग दाल छिलका: 1 कटोरी (200 एमएल)
    अपनी पसंद की सब्जी: 1 से 2 कटोरी (150 से 200 ग्राम)
    सलाद (गाजर, मूली, टमाटर, खीरा आदि): 1 कटोरी (200 से 250 ग्राम)
  • शाम में
    नट्स, चना भुना हुआ (50 से 75 ग्राम)
    चना सत्तू (रोस्टेड चना का सत्तू)
  • डिनर
    ज्वार या बाजरे का डोसा जिसमें हरी सब्जी, मूंगफली आदि हो।
    मिक्स्ड मिलेट डोसा भी खा सकते हैं।

ग्लूटन के लिए हो जाएं सचेत (Gluten)

जिन्हें ग्लूटन सेंसिटिविटी की समस्या है, वे इसके लिए जरूर सचेत हों। ध्यान रहे कि यह स्थिति सभी के लिए नहीं है। गेहूं हमारी फूड हैबिट का अहम हिस्सा है। ऐसे में कोई भी कदम डॉक्टर की सलाह से ही लें। अगर सलाह यह मिलती है कि ग्लूटनयुक्त फूड नहीं खाना है तो इन्हें लिस्ट से बाहर कर सकते हैं। ग्लूटन आमतौर पर गेहूं, जौ, सूजी, माल्ट और बार्ली में मिलते हैं, लेकिन मिलावट की वजह से यह दूसरे भोज्य पदार्थों में भी मौजूद हो सकता है। ऐसे में खरीदारी करते समय प्रॉडक्ट के लेबल को देख लें कि उस पर ग्लूटन-फ्री लिखा हो। ग्लूटन युक्त पैक्ड फूड बहुतायत में मार्केट में उपलब्ध हैं। मसलन: पैक्ड सूप, मसाले, कैंडी, पास्ता आदि। इतना ही नहीं, लिपस्टिक में भी ग्लूटन मौजूद हो सकता है। इंडिया में अभी ऐसे प्रोडक्ट ज्यादा नहीं बन रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसी कंपनियां हैं जो अब ऐसे प्रोडक्ट भी बना रही हैं और लेबल पर लिख भी रही हैं।

क्या ओट्स भी नहीं खा सकते (Gluten)

ओट्स में ग्लूटन नहीं होता, लेकिन ऐसी आशंका रहती है कि जिस तरह के वातावरण में इसे तैयार किया जाता है उससे ग्लूटन इसमें मिल सकता है। अगर आप ओट्स खाना ही चाहते हैं तो ऐसे प्रॉडक्ट लें, जिन पर ग्लूटन-फ्री लिखा हो।
गेहूं न खाए तो गेहूं में मिलने वाले पोषक तत्व कहां से मिलेंगे
इसके लिए सबसे बेहतरीन विकल्प है रूटेड वेजिटेबल्स यानी ऐसी सब्जियां जो जमीन के अंदर होती हैं, मसलन गाजर, प्याज, मूली, शकरकंद आदि। इन्हें सलाद के रूप में खा सकते हैं। अगर किसी को महसूस होता है कि उसे ग्लूटन से एलर्जी है तो वह गेहूं की जगह कई दूसरे अनाज ले सकता है।

Disclaimer: लेख में उल्लिखित सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी फिटनेस व्यवस्था या चिकित्सकीय सलाह शुरू करने से पहले कृपया डॉक्टर से सलाह लें।

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