होम / Autism के शुरुआती लक्षण वाले बच्चों को पहले ही साल में थैरेपी देने से मिले कई लाभ

Autism के शुरुआती लक्षण वाले बच्चों को पहले ही साल में थैरेपी देने से मिले कई लाभ

Sameer Saini • LAST UPDATED : September 22, 2021, 5:11 am IST

Autism: ऐसे बच्चे जिनमें ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण हों, उनकी पहले ही साल में थैरेपी शुरू कर देने के बहुत लाभ होते हैं क्योंकि इस आयु में मस्तिष्क तेजी से विकसित हो रहा होता है। यह जानकारी जेएएमए पीडियाट्रिक्स नाम की पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में मिला है। जिन बच्चों को 12 माह की आयु में थेरेपी दी गई उनका तीन साल की उम्र में पुन: आकलन किया गया। पता चला कि उनके व्यवहार में उन बच्चों की तुलना में ऑटिज्म संबंधी बर्ताव मसलन सामाजिक संवाद में मुश्किल आना या बातों का दोहराव करना आदि कम देखे गए, जिन्हें थेरेपी नहीं दी गई थी।

तंत्रिका तंत्र के विकास (न्यूरोडेवलपमेंटल कंडिशन) संबंधी सभी स्थितियों की तरह ही ऑटिज्म में भी यह देखा जाता है कि बच्चा क्या नहीं कर पा रहा है। ‘द डाइनोस्टिक्स ऐंड स्टेटिस्टिकल मैन्युअल’ एक मार्गदर्शिका है जिसमें व्यवहार के बारे में जानकारी दी गई है जिनसे तंत्रिका तंत्र और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति का पता लगाया जा सकता है। पहले की तुलना में सामाजिक संवाद कौशल सीखने में अब अधिक बच्चों को मुश्किलें आने लगी हैं जिससे ऑटिज्म विकार से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ गई है और अब यह एक अनुमान के मुताबिक यह आबादी का करीब दो फीसदी है। सामाजिक एवं संवाद कठिनाईयां ऐसे बच्चों के वयस्क होने पर उनकी शिक्षा, रोजगार और संबंधों के लिए रूकावट पैदा कर सकती हैं।

Also Read : क्या वाकई सोते-सोते Weight कम किया जा सकता है

इस अध्ययन में जिस थेरेपी का जिक्र आया है उसका उद्देश्य कम उम्र में ही सामाजिक संवाद कौशल बढ़ाने में मदद देना है ताकि आगे जाकर, जब बच्चे बड़े हों तो उन्हें उपरोक्त बताई समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े। थैरेपी का नाम है ‘आईबेसिस-वीआईपीपी’ जिसमें वीआईपीपी का मतलब है ‘वीडियो इंटरेक्शन फॉर पॉजीटिव पेरेंटिंग’। इसका इस्तेमाल ब्रिटेन में सामाजिक संवाद विकास में मदद देने के लिए किया गया। इसमें अभिभावक या बच्चों की देखभाल करने वाले लोग जो बच्चों के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं उन्हें इस बारे में सिखाया जाता है। थैरेपी में अभिभावकों को बच्चे के संवाद को पहचानना सिखाया जाता है ताकि वे उस पर इस तरह से प्रतिक्रिया दे सकें कि बच्चे का सामाजिक संवाद विकास हो। बच्चे से बात करते अभिभावकों का वीडियो बनाया जाता है और फिर उसके आधार पर प्रशिक्षित थैरापिस्ट उन्हें मार्गदर्शन देते हैं और बताते हैं कि बच्चे के साथ संवाद कैसे बनाए रखा जा सकता है।

Disclaimer: लेख में उल्लिखित सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी फिटनेस व्यवस्था या चिकित्सकीय सलाह शुरू करने से पहले कृपया डॉक्टर से सलाह लें।

Connect With Us: Twitter facebook

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

ADVERTISEMENT