Plastic Particles In Children’s Bodies: प्लास्टिक के खतरे को लेकर वैसे तो दुनियाभर की सरकारें अपने नागरिकों को सतर्क करने में जुटी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये प्लास्टिक केवल हमारे पर्यावरण को ही दूषित नहीं कर रहा है। अब ये हमारे शरीर में भी घुस चुका है।
एक नए शोध के मुताबिक तो बड़ों की तुलना में बच्चों के शरीर में इसकी मात्रा कहीं ज्यादा पाई गई है। अमेरिका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के साइंटिस्टों ने खुलासा किया है कि वयस्कों (18 साल से अधिक) की तुलना में छोटे बच्चों के शरीर में प्लास्टिक के कणों की मात्रा 15 गुना अधिक होती है। रिसर्चर्स का मानना है कि बच्चों के शरीर में प्लास्टिक की इतनी अधिक मात्रा उनकी हेल्थ के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है।
अमेरिकन केमिकल सोसायटी (एसीएस) पब्लिकेशन में छपी इस स्टडी के प्रमुख रिसर्चर प्रो. कुरुंथाचालाम कन्नान का कहना है कि एनवायरमेंट में 5 मिमी से कम साइज के प्लास्टिक के सूक्ष्म कण तेजी से बढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे घरों में भी प्लास्टिक से बनी चीजों का यूज ज्यादा हो रहा है, जिससे प्लास्टिक के बारीक कण वयस्कों की तुलना में बच्चों के शरीर में तेजी से बढ़ रहे हैं।
साइंटिस्टों ने इस रिसर्च के दौरान बच्चों के शरीर में माइक्रो प्लास्टिक फाइबर की पुष्टि की है। शोध में पीसी यानी पॉलीकार्बोनेट का लेवल बच्चों और वयस्कों में बराबर पाया गया जबकि पीईटी यानी पॉलीथीन टेरीपथलेट का लेवल वयस्कों की तुलना में बच्चों की बॉडी में 15 गुना अधिक पाया गया है।
रिपोर्ट में प्रो. कन्नान ने बताया है कि बच्चों के यूज वाली आइटम्स को किसी और मैटेरियल से बनाना होगा, ताकि उन्हें प्लास्टिक के बारिक कणों के कॉन्टैक्ट में आने से बचाया जा सके। साइंटिस्टों का ये भी कहना है कि बच्चे के शरीर में पीईटी (पॉलीथीन टेरीपथलेट) लेवल के बढ़ने का कारण खिलौने के साथ साथ कारपेट या कालीन पर घुटने के बल चलने के दौरान शरीर में दूषित केमिकल का जाना भी होता है।
स्टडी करने वाले वैज्ञानिकों ने यह खुलासा 6 न्यू बोर्न बेबी और 10 एडल्ट (18 साल से अधिक) के स्टूल (मल) के टेस्ट के बाद किया है। स्टूल टेस्ट से बच्चों और वयस्कों के शरीर में पोलीथीलिन टेरीपथलेट और पॉलीकार्बोनेट के लेवल का पता लगाया। इस दौरान 3 ऐसे बच्चों के स्टूल की जांच की गई है, जिन्होंने जन्म के बाद पहली बार स्टूल पास किया था। साइंटिस्टों के अनुसार बच्चों में प्लास्टिक कण भविष्य के लिए खतरा है।
दरअसल बच्चे अब पहले की तरह, मिट्टी या लकड़ी से बने खिलौनों से तो खेलते नहीं है। शायद ऐसे खिलौने अब मिलते भी मुश्किल से हैं। इसलिए ज्यादातर बच्चों के लिए हम लोग प्लास्टिक से बने खिलौने, दूध की बोतल, प्लास्टिक के चम्मच, बेड पर प्लास्टिक शीट, मुंह पर लगने वाला सीपर या फीडर का यूज करते हैं। यही उनके शरीर में प्लास्टिक की मात्रा बढ़ाने का प्रमुख कारण है। बच्चों के कपड़ों को सुंदर बनाने के लिए प्लास्टिक के डिजाइन किए जाते है, जिसे वे छूने के बाद हाथ मुंह में डालते हैं, जिससे प्लास्टिक तत्त्व शरीर में जाता है।