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अब मंकी पॉक्स बढ़ाने लगा टेंशन

इंडिया न्यूज:
बीते दिनों अमेरिका में मंकी पॉक्स (monkey pox) का पहला केस मिलने के बाद स्वीडन, इटली और ऑस्ट्रेलिया में इसके मामले सामने आए हैं। इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम एक्शन में आ गई है। आइए जानते हैं मंकी पॉक्स कौन सी बीमारी है, इसके फैलने की वजह क्या और भारत को इससे कितना खतरा है।

क्या चेचक की तरह है मंकी पॉक्स बीमारी

दरअसल मंकी पॉक्स एक वायरल इन्फेक्शन है जो पहली बार 1958 में कैद किए गए बंदर में पाया गया था। 1970 में पहली बार इंसान में इसके संक्रमण के पुष्टि हुई थी। यह ज्यादातर मध्य और पश्चिम अफ्रीकी देशों में पाया जाता है। 2017 में नाइजीरिया में मंकी पॉक्स का सबसे बड़ा आउटब्रेक हुआ था, जिसके 75 फीसदी मरीज पुरुष थे।

छुआछूत की बीमारी है मंकी पॉक्स

यह वायरस मरीज के घाव से निकलकर आंख, नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। इसके अलावा बंदर, चूहे, गिलहरी जैसे जानवरों के काटने से या उनके खून और बॉडी फ्लुइड्स को छूने से मंकी पॉक्स फैल सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है मांस को सही तरह से पका कर नहीं खाने या संक्रमित जानवर का मांस खाने से भी यह बीमारी हो सकती है। इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

अब तक मंकी पॉक्स की चपेट में कितने देश

ब्रिटेन में पहला मरीज 7 मई को मिला था। फिलहाल यहां मरीजों की कुल संख्या 9 है। वहीं स्पेन में 7 और पुर्तगाल में 5 मरीजों की पुष्टि हुई है। अमेरिका, इटली, स्वीडन और आॅस्ट्रेलिया में मंकी पॉक्स के 1-1 मामले सामने आए हैं। साथ ही फ्रांस में 1 और कनाडा में 13 संदिग्ध मरीजों की जांच की जा रही है।

इस बीमारी के फैलने की वजह क्या

लंदन स्कूल आॅफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर जिमी व्हिटवर्थ ने बातचीत में कहा कोरोना महामारी के कारण बहुत समय तक इंटरनेशनल ट्रैवलिंग बंद थी। अब एकदम से पाबंदियां हटने के बाद लोगों का अफ्रीकी देशों में आना-जाना हो रहा है। शायद इसलिए ही मंकी पॉक्स के मामले सामने आ रहे हैं।

फिलहाल भारत खतरे से बाहर

अब तक भारत में मंकी पॉक्स का एक भी संदिग्ध मरीज नहीं है। इसलिए हमें इसका ज्यादा खतरा नहीं है। हालांकि, फिर भी सावधानी बरतने की जरूरत है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यूरोप और नॉर्थ अमेरिका में मंकी पॉक्स के मामले तेजी से कैसे बढ़े, इसकी जानकारी मिलने के बाद ही वो कुछ कह पाएंगे।

मंकी पॉक्स कितना खतरनाक

हऌड की मानें तो मंकी पॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है, जिसका संक्रमण कुछ मामलों में गंभीर हो सकता है। इस वायरस की दो स्ट्रेंस हैं पहली कांगो स्ट्रेन और दूसरी पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन। दोनों ही 5 साल से छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाती हैं। कांगो स्ट्रेन की मृत्यु दर 10 फीसदी और पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन की मृत्यु दर 1 फीसदी है। ब्रिटेन में पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन की पुष्टि हुई है।

मंकी पॉक्स के लक्षण

डब्ल्यूएचओ अनुसार मंकी पॉक्स के लक्षण संक्रमण के 5वें दिन से 21वें दिन तक आ सकते हैं। शुरूआती लक्षण फ्लू जैसे होते हैं। इनमें बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमर दर्द, कंपकंपी छूटना, थकान और सूजी हुई लिम्फ नोड्स शामिल हैं। इसके बाद चेहरे पर दाने उभरने लगते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल जाते हैं। संक्रमण के दौरान यह दाने कई बदलावों से गुजरते हैं और आखिर में चेचक की तरह ही पपड़ी बनकर गिर जाते हैं।

मंकी पॉक्स का इलाज

कई शोधों में पाया गया है कि चेचक की वैक्सीन मंकी पॉक्स पर 85 फीसदी तक कारगर होती है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एसोसिएशन ने (एफडीए) 2019 में जिनियोस नाम की वैक्सीन को मंजूरी दी थी। यह चेचक और मंकी पॉक्स दोनों के लिए ही इस्तेमाल की जाती है। इसे यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने 2013 में ही अप्रूव कर दिया था। अमेरिका में पहला केस मिलते ही सरकार ने जिनियोस के 1.3 करोड़ डोज का आॅर्डर दे दिया है।

डब्ल्यूएचओ का क्या कहना

मंकी पॉक्स के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने भी अपनी वेबसाइट पर इससे जुड़ी सारी जानकारी को अपडेट किया है। इसके साथ ही एजेंसी प्रभावित देशों के साथ मिलकर संक्रमित लोगों की जांच भी कर रही है। ब्रिटेन में यह बीमारी समलैंगिक पुरुषों में सेक्शुअल कॉन्टैक्ट के जरिए फैली या नहीं, इसकी जांच भी जारी है। संभावित मरीजों की पहचान के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग भी की जा रही है।

Now the tension started increasing monkey pox

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India News Desk

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