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Paediatric Cancer: बच्चों के लिए खतरनाक है पीडियाट्रिक कैंसर, इस तरह लगाएं पता

India News (इंडिया न्यूज़), Paediatric Cancer, दिल्ली: कैंसर के कई प्रकार होते हैं और आज के समय में कैंसर काफी ज्यादा तेजी से बढ़ता जा रहा है। ऐसे में बच्चों के लिए पीडियाट्रिक कैंसर काफी ज्यादा खतरनाक है। अगर वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के आंकड़ों की तरफ गौर किया जाए तो दुनिया भर में हर साल चार लाख नए मामले सामने आते हैं।

पीडियाट्रिक कैंसर से बच्चों को खतरा

पीडियाट्रिक कैंसर वैसे तो काफी खतरनाक है, लेकिन 80 फ़ीसदी पीडियाट्रिक कैंसर का इलाज मुमकिन है। लेकिन अर्ली डायग्नोसिस की कमी और गलत डायग्नोसिस की वजह से यह बीमारी काफी दिक्कत कर रही है। इसके अलावा ट्रीटमेंट को बीच में ही छोड़ देना टाक्सीसिटी और रिलैप्स के कारण मौत के मामले भी बढ़ती जा रहे हैं।

इसके साथ ही बता दे कि बच्चों और किशोरियों में मोस्ट कॉमन कैंसर ल्यूकेमिया 24.7%, टयूमर्स और नर्वस सिस्टम 17.02%, नॉन हैकिंग लिंफोमा 7.5%, हैकिंग लिंफोमा 6.5%, सॉफ्ट टिशु साकोमा 5.9% शामिल है।

Paediatric Cancer

कैसे होता है डायग्नोसिस

पीडियाट्रिक कैंसर का पता लगाने के लिए कई तरह की सैंपल्स की जरूरत होती है। जिसमें ब्लड, सीरम, बॉडी फ्लूड और टिशु शामिल होते हैं। इस तरह की जांच का मकसद यही होता है कि कैंसर के टाइप का पता लगाया जा सके। साथ ही बीमारी कितनी गहरी है। इसकी जानकारी का भी जल्द से जल्द पता लगाया जा सके, ताकि थेरेपी आसान हो जाए।

ल्यूकेमिया (Leukaemia) की बात करें तो, पेरिफेरल स्मीयर या बोन मौरो एस्पिरेशन की स्टडी की जाती है। जिसके बाद फ़्लो साइटॉमेट्री (Flow cytometry) होती है, जिसमें फ्लोरेसेंस लेबल्ड एंटबॉडीज का यूज किया जाता है। जिससे ट्यूमर सेल्स में एंटीजन का पता लगाया जा सके और ट्यूमर के टाइट की जानकारी मिल सके।

पीडियाट्रिक ट्यूमर्स का पैथोजेनेसिस एडल्ट्स से अलग और यूनिक होता है, जो आमतौर पर सिंगल जेनेटिक ड्राइवर इवेंट से ऑरिजिनेट करता है। मौजूदा दौर में मॉलिक्यूलर क्लासिफिकेशन पर ज्यादा जोर दिया जाता है।

असल बात ये है कि जेनेटिक अल्ट्रेशन की स्टडी किए बिना ट्यूमर्स का डायग्नोसिस इनकंप्लीट है। डॉक्टर्स इस प्लेटफॉर्म का यूज करते ताकि जिसमें कई तरह की चीजें शामिल होती हैं, जैसे-

-FISH: जिसमें ट्रांसलोकेशन का पता लगाया जा सके
-RT PCR: जिसमें फ्यूजन जीन्स और प्वॉइंट म्यूटेशन का पता लग सके
-Next Generation Sequencing: जिसमें जेनेटिक अल्ट्रेशन की स्टडी की जा सके
-इसके अलावा कई सीरम ट्यूमर मेकर्स का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें AFP, Beta HCG और Urine VMA शामिल हैं।

 

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Simran Singh

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