नेचुरोपैथ कौशल
Simple And Safe Natural Kidney Treatment आज के समय में सभी व्यक्ति समझदार हैं सब जानते हैं कि अंग्रेजी दवाई से किडनी पर बुरा असर पड़ता है। फिर भी व्यक्ति थोड़ा सा भी दर्द होने पर फौरन अंग्रेजी दवाई का सेवन करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को समझाने पर उनसे जवाब मिलता है। हाँ हम जानते हैं कि दवाई किडनी को नुक्सान पहुंचाती है। दवाई ली तो है जिस तरह बूंद-बूद पानी से घड़ा भर जाता है। ठीक उसी तरह नुक्सान पहुंचाने वाली थोड़ी-थोड़ी दवाई धीरे-धीरे शरीर की क्षमता कम करते-करते बड़ी समस्या का करण बन जाती है।
सीधी सी बात है दवाई कम मात्रा में सेवन करेंगे तो अधिक समय में समस्या आयेगी और अधिक मात्रा में दवाई सेवन करेंगी तो कम समय में समस्या आयेगी। जब समस्या पैदा करने वाले पदार्थ लेंगे तो समस्या तो आना ही है। लेकिन अंग्रेजी दवाई से किसी बीमारी का 100% इलाज नहीं है। सच तो यही है कि अंग्रेजी दवाई ही, कुछ अपवादों को छोड़कर, बीमारी का मूल कारण है।
जब कोई दवाई शुरु होती है तो परहेज के नाम पर पौष्टिक पदार्थ जैसे- दूध, मक्खन, घी, फल आदि बन्द करवा दिये जाते हैं। इनके सेवन नहीं करने से इनमें मौजूद पौष्टिक तत्वों की शरीर में कमी होने लगती है। ऐसी स्थिति में पौष्टिक पदार्थों का सेवन न करवाकर आधुनिक चिकित्सक दवाई की मात्रा बढ़ा देते हैं फिर एक के बाद एक दवाई बढ़ती ही जाती है।
अब व्यक्ति आधुनिक चिकित्सक के दिमाग से चलने वाला रोवोट बन कर रह जाता है और पौष्टिक पदार्थ के नाम पर बेस्वाद उबला हुआ बिना मसाले का भोजन करता है। व्यक्ति भोजन समय बे समय करते हैं और दवाईयाँ निश्चित समय पर लेते हैं। फिर कहते हैं डाॅक्टर ने हमें खून की कमी बताई है। समय पर पर्याप्त भोजन नहीं करेंगे तो खून कैसे बनेगा ?
पौष्टिक पदार्थों का परहेज करने से शरीर की ताकत कम हो जाती है जिससे शरीर भीतरी सफाई करने में असमर्थ हो जाता है। दवाईयों के अधिक सेवन से किडनी कमजोर हो जाती है। फिर व्यक्ति घूट-घूट पानी के लिए भी तरसने लगता है।
चिकित्सकों का कहना होता है कि किडनी खराब हो चुकी है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। यदि किडनी खराब हो जाती है तो ट्रांसप्लांट में उसे निकालकर बहर कर देना चाहिए। जब खराब अंग किसी काम का ही नहीं तो उसे रखने क्या मतलव। खराब अंग से तो शरीर में संक्रमण और अधिक बढ़ सकता है।
लेकिन उस किडनी को निकाल नहीं सकते हैं। क्योंकि किडनी खराब नहीं होती है यदि किडनी खराब हो जाय व्यक्ति डायलिसिस के लिए भी जीवित नहीं रहेगा। वास्तव में ईश्वर की लगाई गयी किडनी ही काम करती है। इसलिए उसे निकाला नहीं जाता हैं।
सच तो यह है कि किडनी फैल नहीं होती है। किडनी एक छलनी का कार्य करती है। रक्त से अति सूक्ष्म घुलनशील पदार्थ किडनी से छनकर पेशाब के रास्ते शरीर के बाहर निकल जाते हैं। और गाढ़े विषाक्त पदार्थों को किडनी कफ, नज़ला/जुकाम के द्वारा शरीर के बाहर निकाल देती है।
अतः स्वस्थ्य रहने के लिए शरीर की प्राकृतिक उत्सर्जन क्रियायें- पसीना आना, दस्त होना, कफ निकलना, नज़ला-जुकाम होना और बर्ष में लगभग एक बार बुखार आना अति आवश्यक है। इन क्रियाओं में बिषाक्त पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। जिससे शरीर की भीतरी सफाई हो जाती है और शरीर स्वस्थ्य रहता है।
प्राकृतिक क्रियायें सिर्फ प्राकृतिक उपचार से ही संभव हैं।
अंग्रेजी दवाईयों से केवल प्राकृतिक क्रियाओं में रुकावट पैदा होती है।
प्राकृतिक उत्सर्जन क्रियायें नहीं हो पाने से चिकित्सक कृत्रिम क्रिया (डायलिसिस) करते रहते हैं।
नियमित डायलिसिस और दवाईयाँ चलते रहने से लीवर खराब हो जाता है जिससे रक्त बनने की प्रक्रिया बन्द हो जाती है। अतः व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। अंग्रेजी दवाओं से स्वस्थ हो पाना सिर्फ एक कल्पना है।
दुनियांभर में ऐसी कोई सी भी चिकित्सा पद्धति नहीं है जो प्राकृतिक उपचार की बराबरी कर सके। जो रोगी के अप्राकृति खाद्य पदार्थ पूरी तरह से बंद करवाकर फिर से प्राकृतिक खाद्य पदार्थ शुरु करवा सके।
ऐसा एक भी चिकित्सक नहीं है जिसने दवाईयां बन्द करवा कर स्वस्थ किया हो और वापस सभी तरह के खाद्य पदार्थों का सेवन शुरु कराया हो। किसी भी चिकित्सक ने यदि एक भी रोगी को स्वस्थ किया है तो बताये।
यह सिर्फ प्राकृतिक उपचार से ही संभव है। इसमें दवाईयाँ पूरी तरह से बंद हो जाती है और शरीर को मजबूती देने वाले सभी तरह के मौसमी फलों का सेवन शुरु हो जाता है।
प्राकृतिक उपचार में रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी होती है। ऐसे कई व्यक्ति है जो पूर्ण स्वस्थ्य हो चुके हैं। जो पूरी तरह से अंग्रेजी दवाईयाँ छोड़कर सभी तरह के फलों और सब्जियों का भरपूर मात्रा में सेवन कर रहे हैं।
(Simple And Safe Natural Kidney Treatment)
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