Skin Problems in Winter : सर्दियों का मौसम शुरू हो चुका है। पूरे साल के मुकाबले इस मौसम में लोगों को सबसे ज्यादा छींके आना, नाक बंद होना, सर्दी लगना, खुजली होना, त्वचा का रूखा हो जाना, आंखों से पानी आने की शिकायतें आती हैं। ये वे शिकायतें हैं जिन्हें लोग सर्दी के मौसम का असर समझकर छोड़ देते हैं और कोई इलाज नहीं कराते या फिर कुछ घरेलू उपचार करते हैं लेकिन असल में इसके पीछे की वजह एलर्जी होती है। यही एलर्जी कभी-कभी इतनी बढ़ जाती है कि अस्थमा, लंबे समय तक सर्दी-खांसी, सांस लेने में तकलीफ, गले में सूजन, त्वचा का खराब होना आदि समस्याएं पैदा हो जाती हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि एलर्जी को लेकर सावधान हुआ जाए। (Skin Problems in Winter)
एक्सपर्ट का कहना है कि सर्दियों में प्रदूषण के साथ एक फिनोमिना होता है जिसे इन्वर्जन ऑफ पॉल्यूशन कहते हैं, इसी वजह से एलर्जी सबसे ज्यादा ठंड के मौसम में होती है। जब ठंड का मौसम आता है तो फॉग होता है और हवा होती है। हवा ठंडी होने के कारण सतह पर ही रहती है और जमी रहती है। जबकि गर्मियों में यह गर्म जमीन से छूकर ऊपर चली जाती है और ताजा हवा आती रहती है लेकिन ठंड में ऐसा नहीं होता।
हवा के जमने के कारण प्रदूषक तत्व और धूल के कण हवा में बैठ जाते हैं और यही हवा ज्यादा प्रदूषित होती रहती है। फिर जैसे ही प्रदूषण बढ़ता है तो धूल के कणों में जो एलर्जी के तत्व होते हैं जैसे फूलों या घास के पराग कण आदि इन पर चिपक जाते हैं और सांस के माध्यम से लोगों के अंदर पहुंचकर एलर्जी पैदा करते हैं। कभी-कभी शरीर का रिएक्शन बहुत घातक भी हो जाता है। (Skin Problems in Winter)
प्रदूषण से एलर्जी का सीधा संबंध है। प्रदूषक तत्व एलर्जी को बढ़ा देते हैं लेकिन जिन शहरों में दिल्ली-एनसीआर जैसी स्थिति नहीं है वहां भी एलर्जी की समस्या हो सकती है। इसकी वजह है ठंड का मौसम। ठंड में हवा के सतह पर रहने से वहां मौजूद धूल के कण उसमें जमते ही हैं, हालांकि उनकी मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है। ऐसे में ये भी असर डालते हैं। ऐसे में जब भी ठंड का मौसम आएगा तो हवा में कहीं भी ज्यादा प्रदूषण होगा। सर्दी में दो प्रकार की एलर्जी सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। इनमें एक नाक की एलर्जी और दूसरी फेफड़ों की एलर्जी।
नाक से पानी आना, लगातार छींक आना, नाक बंद होना, सांस लेने में दिक्कत होना, सूखी खांसी या कफ आना, फेफड़ों में खिंचाव होना, सांस फूलना, फेफड़ों की बीमारियों के मरीजों को लक्षणों का बढ़ना। इसके बाद आती है आंख की एलर्जी. इसमें आंखों से पानी आना, लाल होना, सूज जाना, आंख से सफेद पदार्थ आना, चिपकना आदि। चौथे नंबर पर त्वचा की एलर्जी होती है। जिसमें खुजली, खुश्की, फुंसी होना, खुजलाने के बाद त्वचा का लाल पड़ना, स्किन का उतरना आदि। ((Skin Problems in Winter))
एलर्जी को लेकर लोग खान-पान के अलावा जिन चीजों का ध्यान रखते हैं वे हैं धूल के कण या प्रदूषण आदि। लोगों को लगता है कि उन्हें इन्हीं चीजों से एलर्जी हो सकती है। जबकि हकीकत यह है कि सर्दी के मौसम में मुंह पर लगने वाली खुश्क ठंडी हवा भी एलर्जी पैदा कर देती है। यह नाक में एलर्जी पैदा करने के साथ ही फेफड़ों तक में एलर्जी बना देती है जिस पर शरीर अपना रिएक्शन देता है। लिहाजा जरूरी है कि जब भी कोई मरीज या सामान्य व्यक्ति भी ठंड के मौसम में बाहर निकले तो सीधी ठंडी हवा के संपर्क में आने से बचे। जब भी आप अचानक हवा में आएं तो पहले मुंह को ढकें।
एलर्जी को लेकर बरती गई लापरवाही बीमारी को बढ़ा देती है। मान लीजिए किसी को नाक की एलर्जी है और वह इसे सर्दी का असर मानकर बिना इलाज कराए छोड़ देता है तो इससे बीमारी बढ़ेगी। उसके लिए जरूरी है कि इलाज कराया जाए। आज एलर्जी की बेहतर दवाएं आ चुकी हैं। ये दवाएं शरीर के रिएक्शन की टोन को एलर्जिक पदार्थ के लिए बदलने का काम करती हैं। नाक से होकर एलर्जी सीधे फेफड़ों में जाती है और अस्थमा बनाती है।
इसके अलावा आंखों की एलर्जी आंखों में रोग पैदा करने के साथ ही क्वालिटी ऑफ लाइफ को खराब कर देती है। एकाग्रता भंग हो जाती है। बच्चों और बड़ों में चिड़चिड़ाहट और तनाव बढ़ता है और कई अन्य बीमारियां लग जाती हैं। त्वचा की एलर्जी और भी ज्यादा खराब रहती है। सामजिक रूप से भी त्वचा की एलर्जी वाले मरीज से लोग दूरी बरतते हैं जबकि यह छूआछूत की बीमारी नहीं होती, यह सिर्फ एलर्जी होती है।
आजकल एलर्जी जांच बहुत आम हो गई है लेकिन यह बहुत ज्यादा कारगर नहीं है। इससे ज्यादा अंदाजा व्यक्ति को खुद होता है कि उसे क्या खाने से परेशानी हुई। खान-पान के अलावा भी एलर्जी होती है। इनमें हवा, प्रदूषण सभी शामिल हैं। लिहाजा एलर्जी जांच एक संतोष है लेकिन कारगर उपाय नहीं है। बहुत सारे ऐसे मामले भी आते हैं जब जांच के बाद लोगों ने उन चीजों का परहेज किया लेकिन फिर भी उन्हें एलर्जी होती है।
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