इंडिया न्यूज़ ; महिलाएं ये वो दर्द सहती हैं जिसकी शायद कल्पना करना किसी गैर महिला के बस में नहीं है, पीरियड्स का दर्द। महीने के 3-5 दिन महिलाएं इस दर्द को अपने आंसुओं तले दबा कर रोज़मर्रा की सारी चीजें भी करती है. आज आपको वो ताजा रिपोर्ट बताएँगे जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी, पीरियड्स का दर्द असहनीय होता है लेकिन उन्हें ये भी पता है कि उनके पास कोई चारा भी नहीं है. काम भी करते जाना है और ये दर्द भी सहते जाना है.

ज़हन में डर पैदा करने वाली रिपोर्ट आई सामने

21 नवम्बर को महिलाओं के बारे में एक रिपोर्ट आई. ये रिपोर्ट आपके ज़हन में डर पैदा करेगी। जी हाँ। इसमें स्वीडिश एनजीओ इंटरनेशनल पॉल्युटेंट्स इलिमिनेशन नेटवर्क (IPEN) ने लोकल संस्था टॉक्सिक लिंक के साथ साथ मिलकर भारत में बनते सैनिटरी पैड्स की जांच की और इस जांच में जो सामने आया है वो डरावना है. पाया गया कि भारत में इतनी महिलाओं के इस्तेमाल में जो पैड आ रही है उस में जहर होता है. वो भी कोई ऐसा वैसा नहीं बल्कि कैंसर पैदा करने वाला जहर.

सैनिटरी पैड में अलग-अलग तरह के 12 थैलेट

टॉक्सिक्स लिंक की जो रिपोर्ट सामने आयी है उसमें ढेरों बातें सामने आई हैं, इस शोध में सैनिटरी पैड में अलग-अलग तरह के 12 थैलेट पाए.सबसे पहले थैलेट के बारे में जान लेते हैं। थैलेट दरअसल एक तरह का प्लास्टिक होता है इस प्लास्टिक से ही पैड्स को लचीलापन दिया जाता है साथ साथ ये प्लास्टिक ही पैड को लम्बे वक़्त के लिए टिकाऊ बनाता है.’

रैप्ड इन सीक्रेसी: टॉक्सिक केमिकल्स इन मैन्स्ट्रुअल प्रोडक्टस’ ये एक रिपोर्ट है इस रिपोर्ट में बताया गया है की इस रिसर्च के लिए जिन सैम्पल्स का इस्तेमाल किया गया है उन सैंपल में 24 तरह के वीओसी पाए गए जिसमें ज़ाइलीन, बेंजीन, क्लोरोफॉर्म आदि शामिल हैं. आपको पता भी नहीं होगा ना ही आप अनुमान लगा पाएंगे कि जिन पैड्स का इस्तेमाल हम पीरियड्स में कर रहे हैं ये किसी भी महिला के लिए कितने खतरनाक हैं. इनका इस्तेमाल पेंट, नेल पॉलिश रिमूवर, कीटनाशकों, क्लिन्ज़र्स, रूम डीओडिराइज़र में होता है.

टॉक्सिक्स लिंक में चीफ़ प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर प्रीति महेश ने भारतीय पैड्स की हुई इस रिसर्च को लेकर कहा कि भारतीय बाज़ार में मौजूद 10 अलग-अलग कंपनियों के जैविक और अजैविक दोनों तरह के सैनिटरी पैड्स लिए. हमने इन दोनों पैड्स में मौजूद केमिकल की जांच की और पाया गया कि इन सैनिटरी पैड्स में थैलेट और वीओसी था.”उनके अनुसार, “एक महिला कई वर्षों तक सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती है. ये केमिकल वजाइना के ज़रिए शरीर में एंटर कर जाता हैं, उसका असर सेहत पर पड़ता है.”वे बताती हैं कि यूरोपीय संघ के अनुसार, एक सैनिटरी पैड में कुल वज़न का 0 .1 प्रतिशत से ज्यादा थैलेट नहीं होना चाहिए ये बहुत खतरनाक हैं और इन सैंपल में भी थैलेट इसी दायरे में पाए गए हैं.आपको ये भी बता दें कि ये रिसर्च बड़े ब्रांड पर किए गए हैं, ऐसे में ये देखा जाना चाहिए कि जो छोटे ब्रैंड हैं, उनमें उपयुक्त मात्रा से ज़्यादा तो इन केमिकल का इस्तेमाल नहीं हो रहा है क्योंकि भारत में ऐसी कोई सीमा तय ही नहीं की गई है.

प्रचार के माध्यम से बड़े बड़े लब्बोलुआब

बड़े ब्रांड्स आये दिन टेलीविजन पर, प्रिंट मीडिया के माध्यम से इन पैड्स का प्रचार करते हैं जिनमे पैड्स इस्तेमाल किये जाने वाली महिलाओं को परी की तरह उड़ते हुए दिखाया जाता है, ऐसे ऐडवर्टाइजमेंट रहते हैं जिनमे उनका पैड लेते ही बच्ची या औरत फूल की तरह खिलकर दर्द वर्द जैसे भूल ही जाती है, इसके बाद वो या तो मैराथन विनर होगी या फिर ऑफिस की टॉप परफ़ॉर्मर या फिर क्लास में सबसे अव्वल आने वाली लड़की। लब्बोलुआब ऐसा है कि खून को मजबूती से सोखने के साथ साथ ये पैड्स पीरियड्स में होने वाले सारे दुःख दर्द को हर लेंगे। लेकिन यही पैड औरतों को कैंसर दे देंगी।

इन रिसर्च के बाद बहुत सी महिलाओं को ये जानकारी तो नहीं थी लेकिन हम कोशिश कर रहे हैं सभी तक हक़ीक़त पहुंचाने की. अब बड़ा सवाल ये उठता है कि आगे क्या? पैड को पहले के जमाने में इस्तेमाल किये जाने वाले कपडे से सुरक्षित माना जाता था, पर जब ऐसे रिपोर्ट्स आ जाएं तो महिलाएं क्या करेंगी? उनके आगे बड़ी समस्या खड़ी हो चुकी है, पीछे देखा तो वही कपडा जिन्हे पहले के ज़माने में धुलकर दोबारा इस्तेमाल भी किया जाता था और आगे बढ़ी हैं तो अपने साथ हर महीने कैंसर जैसी घातक बीमारियों को बढ़ावा देने जैसा होगा।। क्या करना है फिलहाल जवाब नहीं है, एक बेहतर जवाब की बस उम्मीद सभी औरतें सभी लड़कियां एक टक लगाए कर रही हैं.