India News HP(इंडिया न्यूज़),Himachal News: शक्तिपीठ ज्वालामुखी के प्रसिद्ध मुरली मनोहर मंदिर में कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी पर मंगलवार को पंच भीष्म का शुभारंभ हुआ। मान्यता के अनुसार पूरे पांच दिन तक मंदिर में 251 दीपक दिन-रात जलाए जाएंगे। स्थानीय निवासी, श्रद्धालु और मंदिर के पुजारी दिन-रात इन दीपों में तेल दान करते हैं। इस मंदिर में वर्षों से दीपदान होता आ रहा है।

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जानें क्या है मान्यता

ऐसी मान्यता है कि पंच भीष्म दिवस पर इस मंदिर में दर्शन करने से पुत्र की प्राप्ति होती है और दीपदान करने से पितृ दोष भी समाप्त होता है और मंदिर में लक्ष्मी का वास होता है। मुरली मनोहर मंदिर के पुजारी सुरेश कुमार शास्त्री ने बताया कि पंच भीष्म मनाने के दो कारण हैं, एक तो यह कि इसी दिन माता तुलसी का विवाह मुरली मनोहर से हुआ था और महाभारत काल में जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे थे, तब उन्होंने पांच दिनों तक पांडवों को ज्ञान दिया था। इसी उपलक्ष्य में पंच भीष्म मनाया जाता है।

पंच भीष्म का महत्व

पंच भीष्म का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में कार्तिक स्नान को बहुत महत्व दिया गया है। इसलिए कार्तिक में स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को रखते हैं। भीष्म पितामह ने इस व्रत को रखा था, इसलिए यह ‘भीष्म पंचक’ नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।

पंच भीष्म का इतिहास

जब पांडवों ने महाभारत युद्ध जीत लिया, तब श्री कृष्ण पांडवों को भीष्म पितामह के पास ले गए और उनसे पांडवों को ज्ञान देने का अनुरोध किया। भीष्म, जो अपनी शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे, ने कृष्ण के अनुरोध पर कृष्ण सहित पांडवों को राजधर्म, वर्णधर्म और मोक्षधर्म का ज्ञान दिया। भीष्म द्वारा ज्ञान देने का सिलसिला एकादशी से पूर्णिमा तिथि तक यानी पांच दिनों तक चलता रहा।

जब भीष्म ने संपूर्ण ज्ञान दे दिया, तो श्री कृष्ण ने कहा कि तुमने जो ज्ञान पांच दिनों में दिया है, ये पांच दिन आज से बहुत शुभ हो गए हैं। ये पांच दिन भविष्य में ‘भीष्म पंचक’ के नाम से जाने जाएंगे और इसी दिन माता तुलसी का विवाह भी मुरली मनोहर श्री कृष्ण वासुदेव से हुआ था, इसलिए इसका इतिहास भी तुलसी विवाह से जुड़ा है।

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