देव ऋण में आपके कुल देवता या जिस भी भगवान को आप मानते हैं उनका ऋण चुकाना होता है सभी मांगलिक कार्यों में देवताओं का आवाहन किया जाता है देवताओं के आशीर्वाद से ही घर में सुख, समृद्धि और सम्पन्नता बनी रहती है।
ऐसे में देव ऋण को उतारना भी महत्वपूर्ण और आवश्यक बताया गया है देव ऋण उतारने के लिए नियमित रूप से पूजा-पाठ और पुण्य कर्म करने चाहिए इसके अलावा, देवताओं को स्मरण कर यज्ञ-अनुष्ठान आदि में उनका स्थान अवश्य रखना चाहिए।
पितृ ऋण में पिता पक्ष आता है यानी कि दादा-दादी, ताऊ, चाचा और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का कर्म इस परिवार के वर्तमान में स्थिति पुरुष और उसके पूरे परिवार को प्रभावित करता है एक व्यक्ति के भरण पोषण में उसके पिता का अत्यधिक महत्व होता है शास्त्रों में पितृ भक्ति को मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म माना गया है ग्रंथ-पुराणों के अनुसार, जो व्यक्ति पिता के इस अमूल्य ऋण को उनकी अहर्निश सेवा और मृत्यु के पश्चात नियमानुसार श्राद्ध कर्म करके नहीं चुकाता है उसकी आने वाली पीढ़ी पितृ दोष से परेशान रहती है।
हर व्यक्ति किसी न किसी ऋषि का वंशज है मुख्य रूप से जिन सप्त ऋषियों का उल्लेख मिलता है उन्हीं के गोत्र में हर एक मनुष्य का जन्म होता है ज्यादातर लोग उस गोत्र को नाम के साथ नहीं जोड़ते हैं जिससे उनके ऊपर ऋषि ऋण चढ़ जाता है इसलिए अपने गोत्र को अपने नाम के साथ जोड़ना और हर शुभ कार्य में उस गोत्र से जुड़े ऋषि को स्मरण करना ही ऋषि ऋण से मनुष्य को बचाए रख सकता है।
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