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कार्तिकेय की जीत के बाद हरियाणा कांग्रेस में टूट का खतरा

Amit Gupta • LAST UPDATED : June 18, 2022, 5:10 pm IST

Delhi News: अजीत मैंदोला: राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी कार्तिकेय शर्मा (Kartikeya Sharma) की जीत के बाद कांग्रेस आलाकमान के सामने हरियाणा में सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को टूट से बचाने की हो गई है। हार ने पार्टी  नेताओं के अंदर असुरक्षा का डर पैदा कर दिया है। कई नेता संदेह के घेरे में भी हैं।

यही वजह है कि कांग्रेस वोट रद्द करवाने वाले विधायक को न निगल पा रही है और ना ही उगल पा रही है। पार्टी के खिलाफ वोट करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई  तो पार्टी से अलग हो ही चुके हैं। कभी भी बीजेपी के हो जाएंगे। एक और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल का परिवार भी शक के दायरे में है। उनको लेकर भी बाजार में यही चर्चा है कि उनका भी पार्टी से मोह भंग हो गया है।

अब रहे प्रभारी विवेक बंसल। इन पर पूरे चुनाव की जिम्मेदारी थी। वो ही सब कुछ जानते हैं कि मतदान के दिन क्या हुआ और पार्टी कैसे हारी। किसने कहां वोट डाला। सवालों के घेरे में आने के बाद उन्होंने भी चुपी साधी हुई है। पार्टी की दुविधा है यह है कि किस किस पर एक्शन लें।

हुड्डा हार के सदमे से उभर ही नहीं पा रहे

Hooda Statement On Kangana Ranaut

अब यही देखना होगा कि बंसल कब तक हरियाणा के प्रभारी बने रहते हैं। इन सब नेताओं के साथ साथ हरियाणा कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेता और कांग्रेस की एक मात्र उम्मीद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा तो हार के सदमे से उभर ही नहीं पा रहे हैं। क्योंकि उनका खुद का राजनीतिक करियर ही सवालों के घेरे में आ गया। अभी से तमाम तरह की बातें होने लगी हैं। इस हार से आने वाले दिन कांग्रेस के लिए शुभ नहीं है।

अजय माकन की राजनीति पर भी सवाल

Ajay Makan
Ajay Makan

हरियाणा से प्रत्याशी बनाए गए पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय माकन को भी हार का गम खाए जा रहा है। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी हार से उनकी राजनीति पर भी सवाल उठने लगे हैं। वे नाराजगी जताए भी तो किस पर जताए। उनके नेता राहुल गांधी कुलदीप बिश्नोई को मिलने का समय दे देते तो शायद जीत जाते थे। लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था।

हुड्डा पर अति भरोसा मंहगा पड़ा

पार्टी अब जो भी सफाई दे, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर अति भरोसा मंहगा पड़ गया। खुद हुड्डा के लिए भी आगे राजनीति बड़ी चुनौती पूर्ण हो गई। हार का पहला असर राहुल गांधी के समर्थन में ईडी के खिलाफ चलाए गए पहले चरण के आंदोलन में साफ देखा गया।

जोश के हिसाब से आंदोलन सफल रहा, लेकिन भीड़ के हिसाब से कम सफल रहा। दिल्ली में लगातार दो हार के बाद पार्टी बुरी तरह से बिखर गई है। टीवी में दिखने वाले ही नेता भर रह गए हैं। दिल्ली के अजय माकन अब राष्ट्रीय नेता हो गए हैं।

आंदोलन के शुरू के दो  दिन वह नजर नहीं आए तो नाराजगी की चर्चा शुरू हो गई थी, लेकिन बाद में वह सक्रिय दिखे। एक तरह से दिल्ली में भीड़ जुटाने वाले नेता अब नहीं रहे। शीला दीक्षित का निधन, सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर सिख दंगों के चलते कम सक्रिय हैं। पूर्व प्रदेश अध्य्क्ष जेपी अग्रवाल भी साइड ही किए गए हैं।

ऐसे में ले देकर हरियाणा और पंजाब पर पार्टी की निर्भरता थी। पंजाब हार गए। हरियाणा में पार्टी गुटों में बंटी है। भीड़ जुटाने के विशेषज्ञ माने जाने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा राज्यसभा की हार से सकते में है, सो अभी सक्रिय नहीं है। उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा जरूर सक्रिय रहे, लेकिन अभी उनमें अपने पिता वाली बात नहीं है।

हार का असर दिल्ली प्रदर्शन पर पड़ा

राज्यसभा की हार का असर दिल्ली प्रदर्शन पर पड़ा। वहां से उम्मीद के हिसाब से भीड़ नहीं जुटी। इसी घटनाक्रम के बीच मीडिया विभाग के प्रमुख पद से रणदीप सिह सुरजेवाला को अचानक हटाया जाना भी चौकाने वाला फैसला रहा। अब जितने मुह उतनी बातें हो रही हैं। कुछ हरियाणा की हार से जोड़ रहे हैं।

वजह कुलदीप बिश्नोई से दोस्ती को बताया जा रहा है। दोनों एक दूसरे के गुणगान करते थे, यह जग जाहिर है। बिश्नोई अब कांग्रेसी हैं नहीं है। बंसीलाल परिवार की बहू किरण चौधरी और उनकी बेटी की कम सक्रियता भी सवाल खड़े कर रही है। कुमारी शैलजा मौन हैं। उन्होंने आलाकमान को पहले ही आगाह कर दिया था चुनाव तक प्रदेश अध्य्क्ष का फैसला टाल दो।

लेकिन उन्हें अनसुना कर दिया गया। कैप्टन अजय यादव भी नाराजगी जता चुके थे।अब ऐसे में कोई बता नहीं रहा है कि रद्द कराने का काम किस विधायक ने किया। जिसने भी किया उसने सोच समझ और बड़ी समझदारी से किया। बातें बहुत हो रही हैं, इसलिए एक और नाम हुड्डा के करीबी विधायक का भी बताया जा रहा है।

कहा जा रहा है वह विधायक अपने बिजनेस के चलते सरकार के दबाव में था। सच तो कांग्रेस आलाकमान अच्छी तरह जानता है। लेकिन हालत यह है कि किसे खुश करे किसे नाराज। चुनाव से पहले हुड्डा को खुश किया था तो उसका परिणाम यह निकला। अब संकट यह है कि लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में क्या होगा? स्थिति चिंता जनक है।

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