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Electoral History Of Congress Since 1952 : जानिए, कैसे 1952 के बाद से कांग्रेस के हाथ से निकलती गई सत्ता?

Suman Tiwari • LAST UPDATED : March 12, 2022, 2:27 pm IST

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Electoral History Of Congress Since 1952:

कांग्रेस से पहले आम आदमी पार्टी ने दिल्ली छीना अब पंजाब (Punjab Congress) छीन लिया। आपको बता दें कि पहली बार नहीं है ऐसा, जब कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी हो। इतिहास बताता है कि आजादी के बाद से कई ऐसे राज्य हैं, जहां कांग्रेस ने एक बार अपनी सत्ता गंवाई तो दोबारा वापसी नहीं की। तो चलिए जानते हैं कांग्रेस की सत्ता सिमट कर कैसे आजादी के बाद से अब केवल दो राज्यों में रह गई है।

हाल में हुए चुनावों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टी सपा और रालोद की जोड़ी को 125 और कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिलीं। (Punjab election 2022 result) वहीं, पंजाब में आम आदमी पार्टी को 92 और कांग्रेस को सिर्फ 18 सीटें मिलीं। इसी तरह मणिपुर में एनपीएफ को 5, एनपीपी को 7 और कांग्रेस को 5 सीटें मिलीं। गोवा में भी आम आदमी पार्टी और टीएमसी दो-दो सीट चुराने में कामयाब रहीं और कांग्रेस-गोवा फॉरवर्ड पार्टी की जोड़ी को 12 सीटें मिलीं।

कब देश के 21 राज्यों में काबिज हुई थी कांग्रेस? (Electoral History Of Congress Since 1952)

सन् 1952 में ऐसा पहली बार हुआ था विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 21 राज्यों में अपनी सरकार बनाई थी, जो अब घटकर मात्र दो राज्य रह गए हैं। कांग्रेस को पहली बड़ी चुनौती दक्षिण भारत में केरल से मिली थी। 1956 में भाषा के आधार पर कई इलाकों को एकत्र कर केरल बनाया गया था। उसके बाद 1957 के विधानसभा चुनाव में ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व में वामपंथियों ने सरकार बनाई, जिससे हर कोई हैरान रह गया था। कांग्रेस की इस जीत को भारत में वामपंथ की शुरूआत के तौर पर देखा जाने लगा था।

  • हालांकि, तीन सालों में ही सरकार गिर गई और 1960 में हुए चुनाव में फिर से कांग्रेस ने वापसी की, लेकिन एक बार के सत्ता परिवर्तन ने कम्युनिस्ट पार्टी को नई उम्मीद दी। इसी का नतीजा 1967 में केरल में फिर से सात पार्टियों ने गठबंधन कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर निकाल दिया। इसके बाद सरकार कभी कांग्रेस तो कभी वामपंथियों की बनती रही। हालांकि, 2021 के चुनाव के नतीजों में कम्युनिस्ट पार्टी को दोबारा सत्ता मिली तो केरल में कांग्रेस की हालत दिल्ली जैसी होने के कयास लगाए जा रहे हैं।

क्षेत्रीय दलों से कांगेस को कब मिली टक्कर?

  • 1967 में देश के दो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद चुनाव हुए थे। इस साल हुए चुनाव में कांग्रेस को महज 11 राज्यों में सरकार बनाने में सफलता मिली थी। इसकी मुख्य वजह अनाज की कमी थी। देश की कमजोर अर्थव्यवस्था की वजह से महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। आम लोग कांग्रेस से परेशान थे।
  • ऐसे में 20 साल से कांग्रेस की सरकार से लोगों का मन भर चुका था और अब वह नए दलों को आजमाना चाहते थे। 1965 की लड़ाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया था और भारत के लिए रूस की बेरुखी भी सामने आई थी। ऐसे में कांग्रेस सरकार की विदेश नीति को लेकर भी लोगों में नाराजगी थी।
  • कांग्रेस की सबसे बड़ी हार उसके गढ़ माने जाने वाले तमिलनाडु यानी मद्रास में हुई थी। यहां द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने 234 विधानसभा सीटों में से 138 पर जीत दर्ज की थी। यहां कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मद्रास के भूतपूर्व मुख्यमंत्री के कामराज भी हार गए थे। इसी तरह बंगाल और उड़ीसा में भी कांग्रेस की हार हुई थी। यूपी में पहली बार चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। उनकी नई पार्टी भारतीय क्रांति दल ने दूसरे छोटे-छोटे दलों के विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई।

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1971 में 17 राज्यों में सत्ता पर थी कांग्रेस  (Electoral History Of Congress Since 1952)

Electoral History Of Congress Since 1952

Indira Gandhi

  • 1971 में इंदिरा की नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की देश के 17 राज्यों में सरकार थी। यह वह समय था, जब पाक में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था। बांग्लादेश को आजाद कराने में इंदिरा गांधी ने काफी अच्छी भूमिका निभाई थी। अभी कांग्रेस देश में मजबूती से उभर रही थी। कि तभी 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी। इसके बाद लोगों के मन में इंदिरा के खिलाफ गुस्सा भर गया।
  • 1977 में भले ही जनता पार्टी के हाथों कांग्रेस की हार हुई हो, लेकिन तीन साल बाद ही फिर से 529 में से 353 सीट जीतकर केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई। हालांकि, 1980 में जब 15 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए तो इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस को केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों में करारा झटका लगा।
  • वहीं, इस चुनाव में केरल में सीपीआई और सीपीएम के अलावा मुस्लिम लीग, केरला कांग्रेस जैकब पार्टी ने कांग्रेस को टक्कर दी। इसी तरह तमिलनाडु और पुडुचेरी में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम, पंजाब में अकाली दल और अरुणाचल में पीपुल्स पार्टी आॅफ अरुणाचल ने कांग्रेस को अपनी ताकत दिखा दी। वहीं सन् 1985 में कांग्रेस सिर्फ 12 राज्यों में रह गई थी

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1990 के बाद किन राज्यों में कांग्रेस ने नहीं की वापसी?

1990 के बाद बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में कांग्रेस अपने दम पर वापस नहीं हो पाई। कभी इन राज्यों में अकेले 80 फीसदी से ज्यादा सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी अब इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मदद के बिना अपने भविष्य के बारे में सोच तक नहीं पा रही है। बता दकें कि तमिलनाडु में बीते 50 सालों से कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। यहां सरकार बनाने में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से भी छोटी भूमिका में रहती है।

हालांकि, 1990 में कांग्रेस को बिहार में लालू यादव की जिस जनता दल पार्टी ने हराया, बाद में कांग्रेस को अपनी जमीन बचाने के लिए उसी जनता दल से हाथ मिलाना पड़ा। बिहार में कांग्रेस की ताकत सिर्फ इतनी रह गई है कि आरजेडी गठबंधन बात-बात में कांग्रेस को 2020 के चुनाव में क्षमता से ज्यादा 70 सीट देने की बात कह कर ताना मारता है।

कांग्रेस के लिए कौन सा दल व कौन सा राज्य मुसीबत बना?

2021 में पांच राज्यों बंगाल, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और असम में विधानसभा चुनाव हुए थे। इसी तरह 2022 में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, मणिपुर, उत्तराखंड और गोवा में चुनाव हुए हैं। इन 10 राज्यों में देखा जाए तो सिर्फ एक उत्तराखंड राज्य ऐसा है, जहां भाजपा से कांग्रेस की सीधी लड़ाई है। क्योंकि यहां पर कोई भी क्षेत्रीय दल मजबूत नहीं है। 9 राज्यों में कांग्रेस की लड़ाई सिर्फ भाजपा के खिलाफ नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दलों के खिलाफ भी है। ऐसे में स्पष्ट है है कि क्षेत्रीय पार्टियां अब कांग्रेस के लिए भाजपा से बड़ी मुसीबत बन गई हैं।

राज्य व दल: उत्तर प्रदेश में सपा और एआईएमआईएम, पंजाब में आम आदमी पार्टी, मणिपुर में नागा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पीपुल्स पार्टी, गोवा में तृणमूल कांग्रेस और आप, बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, केरल में इंडियन मुस्लिम लीग, तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़नम, एआईडीएमके, असम में असमगण परिषद, एआईयूडीई, लिबरल पार्टी और पुडुचेरी में द्रविड़ मुनेत्र कड़नम, आॅल इंडिया एनआर कांगे्रस यह सभी कांग्रेस के लिए मुसीबत बने हुए हैं।

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