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जानिए क्यों चर्चाओं में आया औरंगजेब का मकबरा

India News Desk • LAST UPDATED : May 25, 2022, 5:28 pm IST
इंडिया न्यूज: Mughal Emperor Aurangzeb Tomb: इस समय देश की मस्जिदों का विवाद सुर्खियां में है, कब ये थमेंगा कुछ भी कहना मुश्किल है। अब औरंगाबाद के खुल्दाबाद में मुगल शासक औरंगजेब का मकबरा विवादों में आ गया है।
आपको बता दें काशी में विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्ण जन्म स्थान पर बने केशव राय मंदिर को गिराकर ईदगाह मस्जिद बनवाने का आरोप औरंगजेब पर है। हालांकि ज्ञानवापी और ईदगाह मस्जिद की तरह खुल्दाबाद में जमीन को लेकर कोई विवाद नहीं है।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बीच एमएनएस नेता अकबरुद्दीन ओवैसी का अचानक औरंगजेब की कब्र पर पहुंचने पर ये विवाद खड़ हो गया है। तो चलिए जानते हैं कौन था औरंगजेब। विश्वनाथ मंदिर और कृष्ण मंदिर गिराने का क्या मामला क्या है। औरंगाबाद का खुल्दाबाद एक बार फिर से क्यों धधक रहा है।

कौन था औरंगजेब ?

औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को दोहाद में अपने दादा जहांगीर के शासनकाल में हुआ था। औरंगजेब शाहजहां का तीसरा बेटा था। शाहजहां के चार बेटे थे और इन सभी की मां मुमताज महल थीं। बाकी मुगल बादशाहों की तरह औरंगजेब भी बचपन से ही धाराप्रवाह हिंदी बोलता था।
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इतिहास कहता है कि आलमगीर औरंगजेब ऐसा मुगल शासक था जो भारतीयों के बीच जगह बनाने में सफल नहीं हो पाया था। जनता के बीच औरंगजेब की छवि हिंदुओं से नफरत करने वाले धार्मिक उन्माद से भरे कट्टरपंथी बादशाह की रही है। बताया जाता है कि आलमगीर औरंगजेब ने बड़े भाई दारा शिकोह की हत्या की थी। बुर्जुग पिता शाहजहां तक को उनके जीवन के आखिरी साढ़े सात सालों तक आगरा के किले में कैदी बना कर रखा।
औरंगजेब पर भारत की कई प्रमुख मंदिरों को ढहाने का आरोप है। इनमें मथुरा में कृष्ण जन्मस्थल पर बना केशव राय मंदिर और काशी का विश्वनाथ मंदिर प्रमुख है। इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब ने ही 1669 में काशी का विश्वनाथ मंदिर ढहा कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। वहीं 1670 में मथुरा का केशव राय मंदिर ढहा कर वहां पर ईदगाह मस्जिद बनवाई थी।
बता दें औरंगजेब ने करीब 49 साल तक राज किया। उनके शासन के दौरान मुगल साम्राज्य इतना फैला कि पहली बार करीब-करीब पूरे उपमहाद्वीप को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया। औरंगजेब ने अपने 87 साल के जीवन में 36 साल औरंगाबाद में बिताए और यहीं वो दफन भी हो गया।

औरंगजेब के कब्र को लेकर क्यों हो रहा विवाद?

बताया जाता है कि बीती 13 मई को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता अकबरुद्दीन ओवैसी अचानक औरंगाबाद पहुंच गए। इस दौरान ओवैसी औरंगाबाद से 30 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद में स्थित मुगल शासक औरंगजेब की कब्र पर चादर और फूल चढ़ाए। एमएनएस ने इसे एआईएमआईएम की भड़काने वाली साजिश बताया। साथ ही एमएनएस और भाजपा औरंगजेब को लेकर हमलावर रुख अपना लिया है।
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अब औरंगजेब की कब्र की तुलना ज्ञानवापी मस्जिद से की जाने लगी है। इसके बाद 17 मई को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, यानी एमएनएस के प्रवक्ता गजानन काले ने ट्वीट कर कहा कि शिवाजी की भूमि पर औरंगजेब के कब्र की क्या जरूरत है? इसे नष्ट किया जाए। ताकि इनकी औलादें यहां माथा टेकने नहीं आएं। एमएनएस नेता ने शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे का जिक्र करते हुए कहा कि बाल ठाकरे ने भी यही बात कही थी। आप बाला साहेब की बातों को सुनेंगे कि नहीं।

औरंगजेब की कब्र कच्ची होने का कारण क्या?

औरंगजेब ने 1670 में लाहौर में दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनवाई थी। इस बादशाही मस्जिद में 60,000 लोग बैठ सकते थे। औरंगजेब ने अपनी पहली पत्नी दिलरस बानो बेगम के लिए औरंगाबाद में बड़ा मकबरा बनवाया था। इसे बीबी का मकबरा या दक्कन का ताज भी कहा जाता है।
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हालांकि, औरंगजेब की 1707 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में मौत हुई थी। इसके बाद उसके पार्थिव शरीर को खुल्दाबाद में उनके गुरु सूफी संत सैयद जैनुद्दीन के पास एक कोने मेंं साधारण या कच्ची कब्र में दफनाया गया था।
औरंगजेब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि मौत के बाद उसे उसके गुरु सूफी संत सैयद जेनुद्दीन के पास दफनाया जाए। और जितना पैसा उसने अपनी मेहनत से कमाया है, उससे ही उसका मकबरा बनवाया जाए। औरंगजेब अपने निजी खर्च के लिए टोपियां सिला करता था और हाथ से कुरान शरीफ लिखा करता था। औरंगजेब की मौत के समय उसके द्वारा कमाए गए 14 रुपए और 12 आने थे। इसी पैसे से औरंगजेब का मकबरा बनवाया गया था।
हालांकि, औरंगजेब का मकबरा सिर्फ लकड़ी से बना था। 1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन यहां आए तो उन्होंने मकबरे के इर्द-गिर्द संगमरमर की ग्रिल बनवाई और इसकी सजावट कराई। औरंगजेब का मकबरा इस समय एएसआई के संरक्षण में है और एक राष्ट्रीय स्मारक है।

क्या औरंगाबाद कम्युनल हॉटस्पॉट का केंद्र रहा?

औरंगाबाद में 32 फीसदी मुस्लिम, 68 फीसदी हिंदू आबादी हैं। औरंगाबाद हमेशा से कम्युनल हॉटस्पॉट का केंद्र रहा है। ब्रिटिश शासन से आजादी के समय औरंगाबाद रजाकारों की रियासत का हिस्सा था। 1947 और सितंबर 1948 के बीच रजाकारों ने कई बार हिंदुओं पर हमले किए। शहर अभी भी हिंदू और मुस्लिम क्षेत्रों में बंटा है। हिंदू और मुस्लिमों के बीच गुलमंडी डिवाइडिंग लाइन है। इसके एक ओर हिंदू और दूसरी ओर मुस्लिम रहते हैं।
बाल ठाकरे ने 80 के दशक में पार्टी की मजबूती के लिए मुस्लिम विरोधी दुष्प्रचार के जरिए औरंगाबाद में जमकर ध्रुवीकरण किया। इसके चलते यहां पर 1984, 1985, 1987 और 1988 में लगतार दंगे हुए। वहीं म्युनिसिपल कारपोरेशन चुनावों में एआईएमआईएम के उदय के साथ ही विभाजन और गहरा गया है।

क्यों एमएनएस शिवसेना पर साध रही निशाना?

राज ठाकरे की एमएनएस की ओर से औरंगजेब की कब्र को नष्ट करने की धमकी देने के बाद 19 मई को एएसआई ने इसे अगले 5 दिनों के लिए बंद कर दिया। इसके साथ ही औरंगाबाद की पुलिस ने परिसर के आसपास सुरक्षा  बढ़ा दी है। एमएनएस के प्रवक्ता गजानन काले ने सुरक्षा बढ़ाने पर उद्धव सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह फैसला शिवाजी के भक्तों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
इस मौके पर गजानन काले ने कहा कि जिस व्यक्ति ने छत्रपति संभाजी की बेरहमी से हत्या कर दी, उसकी कब्र के चारों ओर सुरक्षा बढ़ाना शर्मनाक है। उद्धव पर एमएनएस का हमला अकबरुद्दीन के मकबरे की यात्रा के तुरंत बाद हुआ और यह मस्जिदों से लाउडस्पीकरों को हटाने का आदेश नहीं देने के लिए सरकार की आलोचना के साथ सहज रूप से जुड़ा हुआ था।
शिवसेना भी खुल्दाबाद में औरंगजेब के मकबरे पर अकबरुद्दीन के जाने से नाखुश थी और इसी आलोचना भी की थी। मराठा इतिहास में औरंगजेब से बड़ा खलनायक कोई नहीं है और छत्रपति शिवाजी महाराज से बड़ा कोई नायक नहीं है। ऐसे में किसी भी राजनीतिक दल के लिए अकबरुद्दीन के मकबरे पर जाने का बचाव करना मतलब अपनी राजनीति को खत्म करने जैसा होगा।

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