बातों बातों में – लाल किले से 24 की बिसात

India News (इंडिया न्यूज़), Rana Yashwant, दिल्ली: लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वाधीनता दिवस पर संबोधन अगले चुनावों की प्रस्तावना की तरह रहा. इस बार उन्होंने भाइयों और बहनों की जगह मेरे परिवारजन से देशवासियों को संबोधित किया. अपने 90 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री ने 48 बार मेरे परिवारजन कहा. जब देशवासियों से आप परिवारजन पर आते हैं तो आत्मीयता और साहचर्य का बोध बढता है. 140 करोड़ लोग परिवारजन में हर समय साथ खड़े रहने और सहयोग करने की ध्वनि निहित है. इसके निहितार्थ को समझें तो यह संबोधन बहुत सोच विचार कर ही रखा गया होगा. नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के दो चरणों में देश की प्रगति और परिवर्तन के लिए इसको विस्तार से रखा. इसके साथ उन्होंने यह यह विश्वास भी जताया कि अगली सरकार के लिए जनादेश उन्हें ही मिलेगा. “मैं लालकिले से आपकी मदद मांगने आया हूं, मैं आपका आशीर्वाद मांगने आया हूं. आजादी के अमृतकाल में 2047 में, जब देश आजादी के 100 साल मनाएगा, उस समय दुनिया में भारत का तिरंगा झंडा विकसित भारत का तिरंगा झंडा होना चाहिए.”

अपने भाषण के इस टुकड़े के माध्यम से प्रधानमंत्री देश को यह बताना चाहते थे कि विकसित भारत का सपना उनकी सरकार के माध्यम से ही संभव है. जनता की मदद और आशीर्वाद मांगने का आशय यह है कि अगला चुनाव देश के लिए काफी महत्वपूर्ण है और यह बात जनता को भी समझना होगा. वे बताना चाह रहे थे कि यह जनता की भी जिम्मेदारी है कि देश के भविष्य को संवारने में वह अपने दायित्व को समझे. प्रधानमंत्री का यह कहना कि “2047 के सपने को साकार करने के सबसे बड़े स्वर्णिम पल आने वाले 5 साल हैं” इसी बात की तरफ इशारा है.

नरेंद्र मोदी ने देश को बताया कि जब आपने पहली बार मुझे दायित्व सौंपा तो हमने जो वादा किया था उसको पूरा कर जनता का विश्वास जीता. जब दूसरी बार मुझे उस विश्वास का पुरस्कार मिला तो हमने रीफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म की नीति पर काम किया. वे यह जता रहे थे कि पुरानी सरकारों की कार्यशैली, विकास को लेकर सोच और जनहित के प्रति उदासीनता के ढांचे को उन्होंने ध्वस्त किया. वे अपने नेतृत्व में एक नए भारत की तस्वीर दिखा रहे थे.

इस नए भारत के लिए उन्होंने कहा कि “ये भारत, न रुकता है, न थकता है, न हांफता है और न ही ये भारत हारता है. आज भारत पुरानी सोच, पुराने ढर्रे को छोड़ करके, लक्ष्यों को तय करके, लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चल रहा है. जिसका शिलान्यास हमारी सरकार करती है, उसका उद्घाटन भी हम अपने कालखंड में ही करते हैं. इन दिनों मैं जो शिलान्यास कर रहा हूं, उनका उद्घाटन भी मेरे नसीब में है.” मोदी के मुताबिक यह सोच उस बदलाव को बढ़ावा देने के लिए है, जो 1000 साल तक हमारे भविष्य की रूपरेखा तय करेगा.

अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी का लाल किले की प्राचीर से ये आखिरी संबोधन था. इसलिए उनके निशाने पर विपक्ष भी था. मोदी ने देश को यह बताने की कोशिश की कि परिवारवाद, भ्रष्टाचार औऱ तुष्टिकरण के नाम पर विपक्ष ने देश में विकास औऱ सामाजिक न्याय का बंटाधार ही किया है. उन्होंने इन तीनों के खिलाफ लड़ते रहने की बात भी कही. इसके पीछे ये मैसेज देने की मंशा थी कि देश का बुरा करनेवालों के आगे मोदी युद्दरत रहेगा. पूरा भाषण एक तरतीब में था, जिसमें अबतक की उपलब्धियां, आने वाले समय के संकल्प और विरोधियों पर चोट, तीनों शामिल थे. मोदी यह भी कहते गए कि मैं अपनी अगली सरकार की तरफ से तीन गारंटियां देकर जा रहा हूं. देश अगले पांच साल में दुनिया की तीसरी अर्थवस्था बन जाएगा. शहरों में रहनेवालों को घऱ के लोन में रियायत मिलेगी और देश में सस्ती दवाओं वाले 25 हजार जनऔषधि केंद्र खुलेंगे. कुल मिलाकर लाल किले से अपने मौजूदा कार्यकाल के आखिरी भाषण को मोदी ने 2024 के जयघोष की तरह रखा.

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Sailesh Chandra

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