इंडिया न्यूज, Delhi News (12 kg Gold Coin): सोने के सिक्के आजकल अधिकतर 10 ग्राम, 20 ग्राम और 50 ग्राम में आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी 12 किलोग्राम वजन के सोने के सिक्के के बारे में सुना है। जी हां, ये 12 किलोग्राम का सोने का सिक्का कहीं और नहीं बल्कि भारत में ही है। इतना ही नहीं, ये दुनिया का सबसे बड़ा सोने के सिक्का है। लेकिन अभी ये 12 किलो वजनी सोने का सिक्का भारत में कहां है, इसके बारे में किसी को कुछ मालूम नहीं है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने इस सोने के सिक्के को खोजने के लिए टीम गठित की है। सोने के इस सिक्के की तलाश लगभग 35 साल पहले भी सीबीआई ने शुरू की थी। हालांकि उस दौरान असफलता ही हाथ लगी थी। अब एक बार फिर से 12 किलो सोने के इस सिक्के की खोजबीन शुरू की गई है।
बताया गया है कि इस सिक्के को अंतिम बार हैदराबाद के शाही परिवार के टाइटलर निजाम श्ककक मुकर्रम जाह के पास देखा गया था। मुकर्रम जाह को यह सिक्का अंतिम निजाम और अपने दादा मीर उस्मान अली खान से विरासत में मिला था। जाह ने इसे एक स्विस बैंक में नीलाम करने की कोशिश की थी। सीबीआई ने उस कथित नीलामी के समय इसे हासिल करने का प्रयास किया था पर सफलता नहीं मिली थी।
बताया गया है कि दुनिया के सबसे बड़े इस सोने के सिक्के की ढलाई बादशाह जहांगीर ने कराई थी। इतिहासकार एवं एचके शेरवानी सेंटर फॉर डेक्कन स्टडीज की प्रोफेसर सलमा अहमद फारूकी के मुताबिक इसे 1987 में जेनेवा में नीलाम करने का प्रयास किया गया था। लेकिन यूरोप में मौजूद भारतीय अधिकारियों ने इस नीलामी की सूचना सरकार को दी। इसे साल 1987 में जेनेवा के होटल मोगा में 09 नवंबर को नीलाम किए जाने की सूचना थी।
हैब्सबर्ग फेल्डमैन एसए इस सिक्के को पेरिस स्थित इंडोस्वेज बैंक की जेनेवा शाखा की मदद से नीलाम करने का प्रयास कर रहा था। इसके बाद इस मामले को सीबीआई ने देखना शुरू कर दिया। सीबीआई को काफी जानकारियां भी मिली। सीबीआई के अधिकारियों ने इतिहासकारों का काम किया था। लेकिन अंतत: सोने का यह सिक्का हाथ न लग पाया।
1987 में इस जांच में शामिल रहे सीबीआई अधिकारी अब रिटायर हो चुके हैं। इस कारण यह जांच अधर में लटक गई। सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर शांतनु सेन ने अपनी किताब में इस सिक्के के बारे में बताया कि बादशाह जहांगीर ने ऐसे दो सिक्के ढलवाए थे। एक सिक्का हैदराबाद के निजाम के पास आया था जबकि दूसरा ईरान के शाह के राजदूत यादगार अली को सौंपा गया था।
जानकारी के मुताबिक इस सिक्के की वैल्यू 1987 में 16 मिलियन डॉलर आंकी गई थी। इसका खुलासा सीबीआई के द्वारा किए गए केस दर्ज में हुआ था। दरअसल, सीबीआई की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन यूनिट क ने 1987 में एंटीक एंड आर्ट ड्रेजर्स एक्ट के तहत केस दर्ज किया था।
इस जांच में पता चला कि मुकर्रम जाह ने 1987 में स्विस नीलामी में सोने की 2 मुहरें बेचने का प्रयास किया था। इनमें से एक मुहर का वजन लगभग 1000 तोला था। इस सिक्के की वैल्यू 1987 में 16 मिलियन डॉलर लगाई गई थी। इस जांच में ये भी मालूम हुआ कि 1988 में जाह 09 मिलियन स्विस फ्रैंक का लोन लेना चाहता था, इससे पहले ही यह नीलामी की जा रही थी।
अपनी किताब में शांतनु सेन ने लिखा है कि बैंक और मुकर्रम जाह के बीच हुए समझौते के तहत लोन के बदले 2 सिक्के गिरवी रखे जाने थे। ये दोनों सिक्के कैरेबिया में भेड़ पालन के लिए 2 कंपनियों क्रिस्टलर सर्विसेज और टेमारिंड कॉरपोरेशन की फाइनेंसिंग के लिए गिरवी रखे जाने की बात चल रही थी। शांतनु सेन ने कहा कि अब इस घटना को कई साल बीत चुके हैं। अब तो इन ऐतिहासिक सिक्के के बारे में कुछ मालूम नहीं है। उम्मीद है कि शायद इस बार केंद्र सरकार के प्रयास को सफलता मिल जाएं।
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