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33Rd Day Of Attack On Ukraine : जानें, क्यों रूस एक माह बाद भी यूक्रेन को जीतने में दिख रहा असमर्थ?

Suman Tiwari • LAST UPDATED : March 28, 2022, 12:09 pm IST

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
33Rd Day Of Attack On Ukraine :
24 फरवरी को जिस तरह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। इससे लग रहा था कि यूक्रेन रूस के आगे अपने घुटने टेक देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बता दें कि दोनों देशों के बीच शुरू हुए युद्ध को एक माह से ज्यादा होने को है और रूस के जीतने की स्थिति नहीं दिख रही है। यह युद्ध जितना लंबा खिंचता जा रहा है, उतना ही रूसी सेना की क्षमता में सवाल भी उठ रहे हैं। तो आइए जानते हैं ऐसी क्या वजह है जो यूक्रेन नहीं घुटने टेक रहा रूस के आगे। (Russia Unable to Win Ukraine)

Russia Has Not Yet Captured Ukraine Due To These Reasons ( 33Rd Day Of Attack On Ukraine )

रूस की योजना में कमी

  • युद्ध शुरू होने के बाद से रूसी सेना के लिए एक सबसे बड़ा मुद्दा उसकी योजनाओं में कमी के रूप में सामने आया है। कहा जा रहा है कि रूसी सेनाओं को युद्ध शुरू होने के बाद भी ये बताया ही नहीं गया था कि उन्हें जाना कहां है और इसीलिए पहला मौका मिलते ही वे सरेंडर कर रहे हैं। वॉशिंगटन रिपोर्ट अनुसार, यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई के पहले दो हफ्तों में रूस के 5-6 हजार सैनिक मारे गए-यानी करीब 400 सैनिक हर दिन। 1945 के बाद से दुनिया में कहीं भी रूसी सेना को इतना नुकसान नहीं हुआ है। (Russia Not Winning Reasons)
  • वहीं एक मीडिया रिपोर्ट अनुसार, यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के एक माह के अंदर रूस के 7000 से अधिक सैनिक मारे गए हैं। ये संख्या अमेरिका के इराक और अफगानिस्तान के साथ करीब दो दशक के दौरान लड़ाई में मारे गए उसके सैनिकों की कुल संख्या से भी ज्यादा है। रूसी सेना के पास बटालियन टैक्टिकल ग्रुप (बीटीजी) के नाम से फेमस एक खास सैनिक ग्रुप है। हर बीटीजी में 600-800 सैनिक होते हैं, जो एयर डिफेंस, तोपखाने, इंजीनियरों और लॉजिस्टिक्स से लैस होते हैं।
  • बीटीजी ऐसा ग्रुप है, जो दुश्मन से किसी भी इलाके में लोहा ले सकता है। रूसी सेना लंबी जंग के लिए पूरी तरह तैयार ही नहीं थी और लंबे युद्ध के लिए सप्लाई लाइन की समुचित व्यवस्था के बिना ही रूसी सैनिक एक साथ कई मोर्चों पर फंस गए। रिपोर्ट्स मुताबिक, रूसी सेना में 170 बीटीजी हैं, जिनमें से 87 यूक्रेन युद्ध में उतारे गए हैं। लेकिन बीटीजी की आक्रामकता का फायदा रूसी सेना नहीं उठा पाई है। युद्ध के शुरूआती दिनों में बीटीजी के सैनिकों को यूक्रेन में प्रवेश के रास्ते, सामरिक उद्देश्य, मिशन के लक्ष्य और सैनिकों की जिम्मेदारियों जैसी योजनाओं के बारे में नहीं बताया गया था।

रूस का आंकलन यूक्रेन को लेकर गलत निकला

  • सूत्रों मुताबिक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन का आकलन अपने से 30 गुना छोटे देश यूक्रेन को लेकर गलत साबित हुआ। क्योंकि पुतिन को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उनके सैनिकों को यूक्रेनी सेना से इतनी जबर्दस्त टक्कर मिलेगी। रूस का मानना था कि उनकी सेना कुछ ही घंटों या दिनों में यूक्रेन पर कब्जा कर लेगी, लेकिन एक माह बाद भी ऐसा होने के आसार नहीं दिख रहे हैं।
  • रूस को उम्मीद थी कि युद्ध शुरू होने पर यूक्रेन में 80 लाख की रूसी मूल के लोगों की आबादी की वजह से रूसी सैनिकों का यूक्रेन में स्वागत होगा और इसी वजह से खारकीव और ओडेशा जैसे शहर सबसे पहले समर्पण कर देंगे। लेकिन उल्टे यूक्रेन के लोगों ने रूसी हमले का पुरजोर विरोध किया।

यूक्रेनवासियों का मनोबल रूस पर पड़ रहा भारी  (33Rd Day Of Attack On Ukraine)

  • रूसी हमले के बाद से यूक्रेन में सैनिकों के साथ ही जनता भी रूस का विरोध कर रहे हैं। हजारों की संख्या में यूक्रेनवासियों ने लड़ाई के लिए हथियार तक उठा लिए हैं। रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से यूक्रेन सेना की वॉलंटियर ब्रांच से करीब एक लाख से ज्यादा यूक्रेनी नागरिक जुड़े हैं। युद्ध शुरू होने के बाद एक रूसी टैंक के सामने खड़े एक अकेले यूक्रेनी शख्स की तस्वीर पूरी दुनिया में वायरल हुई थी। ये तस्वीर ताकवर रूस के सामने यूक्रेन के लोगों के मनोबल की परिचायक है।
  • इस लड़ाई में यूक्रेन की सेना की रणनीति के साथ ही उसके मनोबल ने भी अहम भूमिका निभाई है, जिसका उसे फायदा भी मिला। युद्ध में रूस की तुलना में यूक्रेन के 50 फीसदी सैनिक ही मारे गए हैं। यूक्रेन के सैनिकों ने हवा से लेकर जमीनी लड़ाई तक में अपने संसाधनों का रूस की तुलना में बेहतर इस्तेमाल किया है। लड़ाई शुरू होने से पहले और शुरू होने के बाद तक, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की चट्टान की तरह डटे नजर आए हैं। साथ ही जेलेंस्की ने बहुत ही समझदारी से पश्चिमी से मदद मांगने से लेकर, दुनिया को रूस की निर्दयता दिखाने में कामयाब रहे हैं।

कौन से देश कर रहे यूक्रेन की सहायता

  • अमेरिका, नाटो और यूरोपीय देश भले ही लड़ाई में सीधे यूक्रेन की मदद न कर रहे हों लेकिन हथियारों और आर्थिक सहायता से पर्दे के पीछे से यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। अमेरिका यूक्रेन को 600 स्टिंगर मिसाइलें और 2600 जेवेलिन मिसाइलें दे चुका है। 17 मार्च को अमेरिका ने यूक्रेन के लिए 800 मिलियन डॉलर की ज्यादा सैन्य सहायता को मंजूरी दी है। साथ ही अमेरिका ने हाल ही में यूक्रेन को उड़ने के बाद मिसाइल बन जाने में सक्षम कामाकेज ड्रोंस सप्लाई किए हैं। (Russia Ukraine Army Comparison)
  • अमेरिका ने यूक्रेन को युद्ध शुरू होने से पहले जनवरी में ही नाटो देशों-एस्तोनिया, लिथुआनिया और लातविया के जरिए हथियारों की सप्लाई करवाई थी। स्वीडन और फिनलैंड जैसे तटस्थ माने जाने वाले देश भी यूक्रेन को हथियार भेज रहे हैं। जर्मनी भी यूक्रेन को स्टिंगर और कंधे से दागे जाने वाले राकेट भेज रहा है।
  • तुर्की जैसे नाटो देश ने यूक्रेन को टीबी-2 ड्रोन दिए हैं, जिनकी मदद से यूक्रेन ने रूस के कई टैंकों और एयर-डिफेंस सिस्टम को तबाह किया है। अमेरिका समेत नाटो और यूरोपियन यूनियन के करीब 20 देश यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई कर रहे हैं।

रूस की सेना के आधुनिकीकरण में कमी

  • रूस भले ही दुनिया के सुपरपावर में शामिल है, लेकिन रक्षा पर खर्च के मामले में वह अमेरिका, चीन और भारत से भी पीछे है। रक्षा पर कम खर्च का मतलब है कि सेना के आधुनिकीकरण में कमी। (Russian Army Weakness)
  • एसआईपीआरआई रिपोर्ट अनुसार, 2021 में दुनिया में सबसे ज्यादा रक्षा बजट अमेरिका का था, जिसने 2021 में सेना पर 778 बिलियन डॉलर खर्च किए। दूसरे नंबर पर चीन रहा, जिसने सेना पर 253 अरब डॉलर खर्च किए। तीसरे नंबर पर भारत रहा, जिसने सेना पर 72.9 अरब डॉलर खर्च किए।
  • वहीं सेना पर खर्च के मामले में रूस चौथे नंबर पर रहा और इस दौरान उसने अपनी सेना पर 61.7 अरब डॉलर खर्च किए। रूस की सुपरपावर की इमेज को देखते हुए उसके लिए अपनी सेना पर खर्च और बढ़ाने की जरूरत है, जिससे वह यूक्रेन जैसे युद्ध के हालात में कमजोर न पड़े।

लॉजिस्टिक्स और सप्लाई लाइन  (33Rd Day Of Attack On Ukraine)

  • यूक्रेन की सेना ने इस युद्ध में सबसे ज्यादा निशाना रूस के लॉजिस्टिक्स और सप्लाई लाइन को बनाया है। इस वजह से भी युद्ध में बढ़त हासिल करने में रूस को खासी दिक्कतें सामने आई हैं। यूक्रेन 60 रूसी फ्यूट टैंकों को नष्ट कर चुका है और उसने बहुत ही रणनीतिक तरीके से रूस के लॉजिस्टिक्स सप्लाई चेन पर हमला किया है। इससे रूस अपने सैनिकों को उस रफ्तार से मदद नहीं पहुंचा पा रहा है, जितना युद्ध में बढ़त के लिए जरूरी है। यही वजह है कि कीव में रूसी टैंकों का लंबा काफिला होने के बावजूद रूस राजधानी पर कब्जा नहीं कर पाया क्योंकि उसके ज्यादातर टैंकों में तेल ही नहीं था।
  • लॉजिस्टिक्स या रसद का सेना के मामले में मतलब सेनाओं के लिए फ्यूल और हथियार आदि पहुंचाने और ट्रांसपोर्ट आदि का इंतजाम करना है। सप्लाई लाइन मिलिट्री सप्लाई वाहनों की एक बड़ी लाइन होती है, जो आमतौर पर काफिले के रूप में चलती है। सप्लाई लाइन के जरिए सैनिकों के लिए खाना, मेडिकल सप्लाई और बारूद ले जाया जाता है। देश के बाहर युद्ध कर रहे सैनिकों के लिए सप्लाई लाइन अहम होती है और इसके खत्म होने पर सेना युद्ध में टिक नहीं पाती। इसीलिए दुश्मन सेना सबसे पहले सप्लाई लाइन को निशाना बनाती है।

यूक्रेन से रूसी एयरफोर्स आसमानी युद्ध भी नहीं जीत पाई?

  • रूस और यूक्रेन युद्ध शुरू होने के एक माह बाद भी रशियन एयरोस्पेस फोर्सेज, जिसे वीकेएस कहते हैं। यूक्रेन के आसमानों पर एयर सुपरियॉरिटी यानी अपनी श्रेष्ठता साबित नहीं कर पाई है। एयर सुपरियॉरिटी का मतलब होता है-किसी देश के हवाई इलाके पर इस तरह अपना प्रभुत्व कायम करना, जिसमें विरोधी सेना के प्रतिरोध की संभावना न के बराबर हो।
  • वैसे तो रूस ने पिछले दशक में अपनी हवाई क्षमता को बढ़ाने के लिए दुनिया के सबसे बेहतरीन फाइटर प्लेन में शुमार सुखोई-30, सुखोई-35 और सुखोई-34 जैसे फाइटर प्लेन के लिए अरबों डॉलर लगाए हैं। वहीं एक्सपट का मानना है कि पुतिन को लगा था कि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध जीतने के लिए रूसी एयरफोर्स की जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही रूस नहीं चाहता है कि उसके विमानों और पायलटों को ज्यादा नुकसान पहुंचे।
  • रूसी वायुसेना के अपर्याप्त इस्तेमाल ने यूक्रेन एयर फोर्स और एयर डिफेंस को तुर्की में बने टीबी-2 जैसे ड्रोन की मदद से जोरदार जवाबी कार्रवाई का मौका दिया। इससे यूक्रेन ने कई रूसी मिसाइल लॉन्चर और टैंकों को मार गिराया। ना जा रहा है कि रूसी एयरफोर्स के पास प्रिसिशन गाइडेड म्यूनिशन यानी हवा से छोड़े जाने वाले बम या ग्रेनेड्स की कमी है।
  • रूस ने इन हथियारों को बड़ी मात्रा में सीरिया के गृह युद्ध में बशर अल-असद की मदद के लिए दिया, जिससे उसके पास इनकी कमी पड़ गई। कुछ जानकारों कहना है कि रूसी पायलटों को अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में हर साल उड़ान के लिए कम घंटे मिलते हैं, यही वजह है कि रूसी एयरफोर्स कागजों पर जितनी मजबूत है, युद्ध के मैदान में उतनी मजबूत लड़ाई नहीं कर पा रही है।

33Rd Day Of Attack On Ukraine

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