India News(इंडिया न्यूज), 55 years of Bank Nationalization: 19 जुलाई 1969 इतिहास के पन्ने में दर्ज वो दिन जिसने देश की अर्थवयवस्था को एक नई दिशा प्रदान की। साथ ही देश की इकॉनांमिक पॉलिसी में एक बेहद महत्वपूर्ण सुधार किया था। जी हां हम 1969 में हुए बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बात कर रहें हैं। इंदिरा गांधी सरकार ने अपने इस फैसले से देश के 14 सबसे बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। उनके इस फैसले ने देश के इन 14 सबसे बड़े बैंकों के 70 फीसदी जमा राशि को एक ही झटके में अपनें कंट्रोल में कर लिया था। उनके इस एक फैसले ने करोड़ो भारतीयों की जिंदगी बदल दी थी और भारत में युगों से चली आ रही साहूकारों की लूट वाली व्यवस्था से मुक्ति दिलाई थी।
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क्यों लिया गया था यह फैसला?
उस वक्त पर बैंक क्लास बैंकिंग नीति को अपनाते थें। इस नीति के तहत केवल समाज के धनी लोगों को ही बैंकिंग और ऋण सुविधाएँ मुहैया कराई जाती थी। इसके साथ ही देश के इन 14 बैंकों में ही देश की 80 फीसदी पूंजी थी। जिस पर केवल धनी घरानों का कब्जा था। आम आदमी को इसका कोई लाभ नहीं मिल पाता था। यही वजह थी कि देश के नीचे तबके के विकास के लिए इेदिरा गांधी ने यह साहसिक कदम उठाया था और देश की अर्थवयवस्था को एक नई दिशा प्रदान की थी।
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क्या हुआ इस फैसले का परिणाम?
इस राष्ट्रीयकरण का देश के मीडिल क्लास और लोवर मीडिल क्लास को काफी फायदा मिला। बैंकों के पास काफी मात्रा में पैसा इकट्ठा हुआ और आगे विभिन्न जरूरी क्षेत्रों में बांटा गया जिनमें प्राथमिक सेक्टर, जिसमें छोटे उद्योग, कृषि और छोटे ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स शामिल थे। इसके साथ ही कई और जरूरी कदम उठाए गए जैसे कृषि लोन को जरूरी बनाया गया, इसके साथ ही देश में बैंकों की शाखाएँ भी बढाई गई। 1969 में जहां देश में बैंकों की सिर्फ 8322 शाखाएं थीं और 1994 के आते-आते यह आंकड़ा 60 हज़ार से भी ज्यादा बैंक शाखाएं खुल चुकी थी। इंदिरा गांधी सरकार के इस फैसले ने समाज के केवल धनी वर्ग का ही विकास नहीं किया बल्कि समाज में अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को भी मुख्यधारा में आनें का मौका दिया।