India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, जयपुर: पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के उदयपुर में दिए गए बयान के कई अर्थ निकाले जाने लगे हैं। उनका यह कहना कि जिसने चलना सिखाया, उसी अंगुली को पहले काटने की कोशिश होती है। इसके अंदर कई अर्थ छिपे हुए हैं। यदि राजस्थान के लिहाज से बात करें तो आज दिल्ली में जितने भी राजस्थान के ताकतवर नेता हैं, उन सभी ने 2014 से पहले राजे के भरोसे ही राजनीति की। हालांकि अब उनकी वफादारी बदल चुकी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर जो उम्मीदवार चुने गए, वह सभी राजे की पसंद थे। तब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कोई दखल नहीं था। इसे इस रूप में भी कह सकते हैं कि राजे दिल्ली पर हावी थी।
ऐसे में भूपेंद्र यादव, ओम बिड़ला, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी जैसे नेता जो आज के दिन ताकतवर माने जाते हैं, वे कभी राजे गुट के ही थे। भूपेंद्र यादव तो शुरुआती दौर में राजे को चुनाव लड़वाने वाले प्रमुख रणनीतिकारों में थे। यादव उस समय बीजेपी के दिग्गज नेता अरुण जेटली गुट से थे। जिन्हें 2004, 2009 और 2013 में राजस्थान की विशेष जिम्मेदारी दी गई थी। साल 2004 में मुख्यमंत्री बनने के साथ राजे अपने आप में बीजेपी की ताकतवर नेता बनती चली गई थी। उस दौर में भैरोंसिंह शेखावत, ललित किशोर चतुर्वेदी, जसवंत सिंह, महेश शर्मा, हरिशंकर भाभड़ा और रघुवीर सिंह कौशल जैसे नेता कमजोर किए जाने लगे या कमजोर हो गए थे।
साल 2004 के बाद राजस्थान बीजेपी में एक बदलाव का दौर शुरू हुआ था। राजे इतनी ताकतवर हुई कि उन्होंने डेढ़ दशक तक दिल्ली की कभी परवाह नहीं की। राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई भी रहा हो जो चाहा, उन्होंने वो ही किया। साल 2014 में मोदी और शाह युग की शुरुआत होते ही राजस्थान की राजनीति में फिर बदलाव आने लगा। वफादारी धीरे—धीरे शिफ्ट होने लगी और 2019 आते—आते सब कुछ बदल गया। अधिकांश नेताओं ने दिल्ली से तार जोड़ने शुरू किए। आलाकमान ने उन्हें ताकत दी। इसी में ओम बिड़ला लोकसभा का अध्यक्ष बनते ही राजस्थान बीजेपी के ताकतवर नेता बन गए। अधिकांश नेताओं की आस्था बिड़ला में हो गई। जिसने आस्था नहीं बदली वे पार्टी छोड़ गए। अब फिर से अटकलें चल पड़ी है कि बिड़ला एक बार और लोकसभा के अध्यक्ष चुने जा सकते है, ऐसे में यह खबर राजे गुट के लिए अच्छी नहीं होगी।
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दरअसल, राजस्थान बीजेपी में इस समय सीधा दखल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का है। बिड़ला को शाह का करीबी माना जाता है।इसलिए भजनलाल शर्मा को सीएम बनाने और जोशी को अध्यक्ष बनाने में अहम भूमिका बिड़ला की थी। गजेंद्र सिंह शेखावत और भूपेंद्र यादव भी शाह गुट से है। अर्जुन मेघवाल की उनके काम के साथ ही दोनों गुटों में ठीक—ठाक पकड़ है, लेकिन जिस जाति से वे आते है, उन्हें कोई छेड़ेगा भी नहीं। भागीरथ चौधरी जाट हैं इसलिए मंत्री बने। राजे का शाह के साथ टकराव जगजाहिर है। वर्ष 2017 में प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर जोरदार टकराव हुआ था जो आज तक जारी है।
राजे ने अपने बयान में वफादारी के साथ अपनी मां विजया राजे सिंधिया और कई वरिष्ठ नेताओं का भी जिक्र किया। उनका एक इशारा आलाकमान को लेकर भी था। शायद वह यह कहना चाह रही थी, जिन लोगों ने इस पार्टी को इतनी ऊंचाई में पहुंचाया उनके अहसान भी भुला दिए गए हैं। राजे ने काफी दिनों तक चुप रहने के बाद एक तरह से अपने मन की बात को भले ही धीरे से कहा, लेकिन सार्वजनिक मंच पर बोल बहुत कुछ संकेत दिए हैं। विधानसभा चुनाव में की गई उपेक्षा, लोकसभा में पूछा ही नहीं गया, केंद्रीय मंत्रिमंडल में बेटे को जगह नहीं ये सब ऐसे मामले जो कहीं ना कहीं उन्हें आहत करते हैं। उन्होंने अपने मन की बात कह तो दी, लेकिन दिल्ली का मन बदलेगा, यह लगता नहीं है। हालांकि संघ अगर कोई दखल दे तब जा कर कोई बात बने।
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