इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (African Swine Fever) : देश के कई राज्यों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सुअरों की मौत हो रही है। इसे लेकर कई राज्यों के प्रशासन ने नियंत्रित क्षेत्र घोषित कर दिया है। क्योंकि अभी तक इस बीमारी की वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में बिहार और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से ग्रसित सुअरों को मारने का तेजी से अभियान चलाया जा रहा है। ताकि इस बीमारी को रोका जा सके। हरियाणा के रोहतक में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से हुई सुअरों की मौत के बाद अन्य स्थानों पर भी तेजी से यह बीमारी फैल रही है।
जिले में अब तक 550 से अधिक सुअरों की मौत हो चुकी है। इसके बावजूद पशु पालन विभाग की ओर से इसका सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। सोमवार को भी जिले में 50 से अधिक सुअर मृत मिले। अफ्रीकन स्वाइन फीवर को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार ने रोहतक जिले को नियंत्रित क्षेत्र घोषित कर दिया है। जिले से बाहर सुअरों की आवाजाही पर पूर्ण रूप से रोक लगा दिया गया है। इसी तरह पंजाब में भी कुछ मामले सामने आने के बाद प्रदेश को नियंत्रित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है।
पश्चिम चंपारण में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से दो दर्जन सुअरों की मौत हो गई। इसके बाद इसे रोकने के लिए पशुपालन विभाग एक अभियान चला रहा है। इस अभियान के तहत जिले में तीन जगहों पर सोमवार को नौ सुअरों को दवा देकर मार दिया गया। रविवार को अफ्रीकन स्वाइन फीवर की सूचना मिलने पर चार सुअरों को मार दिया गया। पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान पटना के चिकित्सक व विज्ञानियों की चार सदस्यीय टीम दो दिन से जिले में तैनात है। ताकि इस बीमारी को रोका जा सके।
बिहार में पशुपालकों को निर्धारित मुआवजा दिया जा रहा है। एक से 15 किलो तक वजन वाले सुअर को मारने पर 2200 रुपये, 15 से 40 किलो को मारने पर 5800 रुपये, 40 से 100 किलो को मारने पर 8400 रुपये और 100 किलो से अधिक वजन के सुअर को मारने पर 12000 रुपये मुआवजा दिया जा रहा है।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर का प्रकोप उत्तर प्रदेश के भी कई शहरों में तेजी से फैला है। हालांकि सतर्कता बरतने पर इस पर तेजी से काबू पाया जा सका है। लखनऊ में गत माह 100 से अधिक सुअरों की मौत हो गई थी। इसके बाद प्रशासन ने सैनिटाइजेशन व एंटी बायोटिक दवाएं देकर स्थिति को नियंत्रित किया। इसी तरह सम्भल में 15 दिन के अंदर ही एक हजार के करीब सुअरों की मौत हो गई। लेकिन अब सुअरों के मौतों का सिलसिला रूक गया है। गत माह बरेली और पीलीभीत में भी कुछ सुअरों की मौत हुई थी।
प्रदेश के हरिद्वार, देहरादून और पौड़ी जिला अफ्रीकन स्वाइन फीवर से प्रभावित है। इन जिलों में अब तक कुल 1003 सुअरों में यह बीमारी मिली है। इनमे से 785 सुअरों की मौत हो चुकी है, जबकि 53 को मार दिया गया हैं। उत्तराखंड में पहली बार यह बीमारी सामने आई है। पशुपालन निदेशक प्रेम कुमार ने बताया कि इस बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीन अभी तक उपलब्ध नहीं है। इसलिए इस बीमारी से ग्रसित सुअरों को मारने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
भारतीय पशु चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान के पशु रोग शोध एवं निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डा. केपी सिंह ने बताया कि अगस्त 2019 में पहली बार नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश में यह वायरस फैला था। यह बीमारी सुअरों से मनुष्यों में नहीं फैलती, लेकिन मनुष्य के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान के सुअरों तक पहुंच जाती है। कोविड वायरस की तरह इस पर भी लिपिड लेयर होती है।
जैसे कोविड में साबुन, सैनिटाइजर आदि से लेयर हट जाती और वायरस मर जाता है। इसी तरह अफ्रीकन स्वाइन फीवर की लिपिड लेयर चूने के पानी से धुल जाता है। सुअर के बाड़े में आते जाते समय चूने के पानी से जूते साफ कर लें, हाथ साबुन से साफ कर लें तो इस वायरस के फैलने से रोका जा सकता है।
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