इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
America’s Role In The Russia Ukraine War : रूस और यूक्रेन की जंग जब से शुरू हुई है तब से अमेरिका भारत को रूस से तेल व्यापार फौरन बंद करने की धमकी दे रहा है। बताते हैं कि हाल ही में व्हाइट हाउस ने कहा है कि भारत के हित के लिए रूस से तेल खरीदना सही नहीं है। वहीं रूस ने कहा कि पिछले एक हफ्ते में अमेरिका ने उससे तेल आयात में 43 फीसदी की वृद्धि की है।
अब सवाल ये उठता है कि क्या अमेरिका दोहरा रवैया अपना रहा है। तो चलिए जानते हैं कि दो देशों की जंग के बीच अमेरिका और यूरोपीय देशों दोहरा रवैया क्या है। भारत ने कैसे कई मौकों पर अमेरिकी दबाव के बावजूद देशहित में फैसला लिया है। कोई देश किसी दूसरे देश पर कैसे लगाता है पाबंदी।
सेंक्शन या पाबंदी क्या है? (America’s Role In The Russia Ukraine War)
इंटरनेशनल लेवल पर सुरक्षा और शांति स्थापित कराने के लिए यूनाइटेड नेशन (यूएन) सेंक्शन या पाबंदियों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है। यूनाइटेड नेशन के चैप्टर 7 के आर्टिकल 41 में इस बात का जिक्र किया गया है। 1966 से अब तक यूएन सिक्योरिटी काउंसिल ने कुल 30 सेंक्शन लगाए हैं, जिनमें 14 अलग-अलग देशों या संस्थाओं पर पाबंदी अब भी हैं। इसी तरह कोई देश भी किसी दूसरे देश पर अपनी सुरक्षा, शांति आदि को लेकर सेंक्शन लगा सकता है।
कितने तरह की होती है सेंक्शन या पाबंदी
बता दें कि सेंक्शन या पाबंदी पांच तरह की होती है। डिप्लोमैटिक सेंक्शन, इकोनॉमिक और ट्रेड सेंक्शन, मिलिट्री सेंक्शन, यातायात ट्रेवल बैन और
तकनीकी मामलों में लेनदेन पर पाबंदी।
पाबंदियों का उद्देश्य क्या: किसी व्यक्ति, संस्था या देश पर सेंक्शन उसके बिहेवियर में बदलाव या उसके किसी फैसले को कंट्रोल करने के लिए लगाया जाता है।
क्या अमेरिका खेल रहा गेम ? (America’s Role In The Russia Ukraine War)
- (44th Day Of Russia Ukraine War) लगभग दो माह से रूस यूक्रेन में तबाही मचा रहा। इसके विरोध में अमेरिका पाबंदियों के जरिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर लगाम लगाने के दावे कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे यूरोपीय देश भारत पर रूस से तेल नहीं खरीदने का दबाव बना रहे हैं। इस बीच इन ताकतवर देशों का असली चेहरा सामने आया है।
- बता दें कि रूसी की सुरक्षा काउंसिल के डिप्टी सेक्रेटरी मिखाइल पोपोव ने एक दावे में कहा कि रूस को दुनिया से अलग करने की कोशिश करने वाले अमेरिका ने पिछले सप्ताह रूस से 43 फीसदी ज्यादा, यानी हर रोज 1 लाख बैरल तेल खरीदा है। इससे पहले भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी एक कार्यक्रम में यूरोप की ओर से रूस से मार्च में ज्यादा तेल खरीदने की बात कही थी।
- उन्होंने कहा था फरवरी में जंग शुरू होने के बाद मार्च में यूरोप ने रूस से 15 फीसदी ज्यादा तेल खरीदा है। अगर आप रूस के तेल और गैस के प्रमुख खरीदारों को देखें तो इनमें ज्यादातर यूरोपीय देश ही शामिल हैं।
कई बार अमेरिका की पाबंदियों का भारत ने दिया जवाब
Lal Bahadur Shastri (फाईल फोटो)
अनाज संकट: 1964 में भारत में अनाज का संकट हो गया था। इस समय लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे। अमेरिका से भारत आने वाले अनाज पर वहां की सरकार ने पाबंदी लगा दी। शास्त्री जी ने अमेरिका से मदद मांगी तो बदले में अमेरिका ने कुछ शर्तों के साथ अनाज देने की बात कही। शास्त्री जी जानते थे कि अमेरिका से अनाज लिया तो देश का स्वाभिमान कम हो जाएगा। ऐसे में उन्होंने सप्ताह में एक दिन उपवास करने की बात कही, लेकिन अमेरिका से अनाज नहीं लिया। अगली फसल आने के बाद देश में फिर से अनाज की कमी दूर हो गई।
बांग्लादेश विभाजन: 1971 में इंदिरा गांधी की सरकार ने बांग्लादेश की आजादी के लिए सेना भेजने का फैसला किया। अमेरिका ने 14 दिसंबर 1971 को सैन्य वापसी की मांग करते हुए यूएन में भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया। अमेरिका के खिलाफ भारत का साथ देते हुए सोवियत रूस ने प्रस्ताव को वीटो के जरिए खत्म कर दिया। अर्जेंटीना, बेल्जियम, बुरुंडी, चीन, इटली, जापान, निकारागुआ, सिएरा लियोन, सोमालिया, सीरिया और अमेरिका ने प्रस्ताव के पक्ष में भारत के खिलाफ वोट किया था।
- उस समय अमेरिका ने भारत पर हमले के लिए अपने सातवें बेड़े को भेजा, जिसके जवाब में रूस ने भी भारत के समर्थन में अपनी नौसेना को उतार दिया था। इसके साथ ही अमेरिका ने भारत को पाबंदियों की धमकी दी। इस दबाव के बाद भी भारत नहीं झुका और बांग्लादेश आजाद हुआ।
दुनिया के कितने देशों में लगी हैं पाबंदियां ? (America’s Role In The Russia Ukraine War)
- दुनिया भर के देशों को पता चल गया है कि हथियार अब किसी समस्या का समाधान नहीं है। इसलिए आज के समय में कोई भी शक्तिशाली देश अपनी महत्वाकांक्षा और कूटनीतिक सफलता के लिए सैन्य बल के बजाय इकोनॉमिक सेंक्शन लगाना पसंद करते हैं। इसी वजह से अमेरिका और यूरोपियन यूनियन जैसी संस्था सेंक्शन लगाने पर ज्यादा जोर देते हैं।
- दुनिया में सिर्फ दो संस्था और एक देश ऐसा है, जिसके द्वारा लगाए जाने वाले पाबंदियों का असर किसी देश की इकोनॉमी पर देखने को मिलता है। इनमें पहला यूनाइटेड नेशन है, जिसके सदस्य दुनिया के 193 देश हैं। दूसरा यूरोपीय यूनियन है, जिसके 28 देश सदस्य हैं। वहीं, तीसरे नंबर पर अमेरिका है, जिसकी बातों को नाटो समेत कई छोटे देश मानते हैं।
- इस समय ईयू, यूएन और अमेरिका ने मिलकर दुनिया के 32 देशों या संस्थाओं पर पाबंदियां लगाई हुईं हैं। अक्सर अमेरिका पर आरोप लगता है कि किसी क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करने के लिए यूएस आर्थिक पाबंदियों का सहारा लेता है। साथ ही वह इसे अपनी विदेश नीति की तरह इस्तेमाल करने लगा है।
अमेरिका ने इन देशों में लगाई थी पाबंदियां, इकोनॉमी तबाह करने की कोशिश
क्यूबा: 1960 में क्यूबा ने अमेरिका की कई कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इसके साथ ही अमेरिका से आने वाले सामान पर भी एक्स्ट्रा टैक्स लगा दिया। इसके बाद अमेरिका ने जवाबी कार्रवाई में क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। अमेरिका को लगा कि ऐसा करने से क्यूबा कम्युनिस्ट देशों से दूर चला जाएगा। हालांकि, हुआ इसके ठीक उलट और क्यूबा को रूस हर तरह से मदद करने लगा।
- क्यूबा रूस का क्लाइंट स्टेट बन गया। मतलब आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य मामलों में रूस पर निर्भर हो गया। अमेरिका ने 1992 और 1996 में एक कानून पास कर क्यूबा पर और कड़े प्रतिबंध लगा दिए, लेकिन क्यूबा ने इसे भी झेल लिया। बाराक ओबामा ने क्यूबा पर लगाई गई पाबंदी में ढील दी, लेकिन बाद में फिर डोनाल्ड ट्रंप ने क्यूबा को आतंक पैदा करने वाले देश की लिस्ट में डाल दिया।
ईरान: दुनिया के सबसे ज्यादा तेल भंडार वाले देशों में शामिल ईरान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो चुकी है। दरअसल, अमेरिका नहीं चाहता है कि ईरान परमाणु शक्ति बने। इस वजह से अब ईरान की स्थिति 1979 की इस्लामी क्रांति के दौर से भी खराब है। तब दुनिया से अलग होकर भी ईरान की वो हालत नहीं थी, जो अब हुई है। ईरान और अमेरिका की दुश्मनी 40 साल पुरानी है। (America’s Role In The Russia Ukraine War)
- अमेरिका ने 1979 में ही ईरान पर आर्थिक पाबंदी लगा दी थी। तब से अब तक ईरान की इकोनॉमी बर्बाद हो गई है। इस समय ईरान की इकोनॉमी 40 साल में सबसे खराब दौर से गुजर रही है। 2017 के बाद से अब तक हर साल ईरान की इकोनॉमी लगभग 1.2 फीसदी की दर से ग्रोथ कर रही है।
- 2015 में अमेरिका और ईरान के बीच एक डील हुई, जिसमें ईरान इस बात पर राजी हुआ कि वह परमाणु बम नहीं बनाएगा। हालांकि, बाद में अमेरिका ने दावा किया कि ईरान एक बार फिर से परमाणु बम बना रहा है।
- 2015 के बाद ईरान की इकोनॉमी में 2016 और 2017 में वृद्धि देखी गई थी। 2016 में 12.5 फीसदी के दर से ईरान की इकोनॉमी बढ़ी थी, लेकिन 2019 में फिर से पाबंदी लगाए जाने के ईरान की अर्थव्यस्था तबाह हो गई। इस दौरान जब भारत ने ईरान से तेल खरीदना जारी रखा तो अमेरिकी की मीडिया ने लिखा था, कि ‘दिल्ली इज टर्निंग आउट टु बी द मुल्लाज, लास्ट बेस्ट फ्रेंड।’ इसका मतलब यह हुआ कि ‘भारत मुल्लाओं यानी ईरानियों का आखिरी दोस्त या उम्मीद रह गया है’।
इराक: 2 अगस्त 1990 को इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया। इसके बाद अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्र तीनों ने इराक पर पाबंदी लगी दी। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि इराक खतरनाक हथियारों से कुवैत पर हमला करना बंद कर दें। (America’s Role In The Russia Ukraine War)
- हालांकि, इसके बाद इराक को कुवैत पर हमला बंद करना पड़ा था। बाद में इस पाबंदी की वजह से इराक के आम लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस दौरान इराक में बेरोजगारी और महंगाई दोनों बेहद तेजी से बढ़ी थी। इस घटना के करीब 13 साल बाद यूएन ने इराक पर लगाई गई पाबंदी को हटाने का फैसला किया था।
वेनेजुएला: वेनेजुएला का आधिकारिक नाम बोलिवेरियन रिपब्लिक आॅफ वेनेजुएला है। प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न होने के बावजूद आज इस देश के ज्यादातर लोग खाने को तरस रहे हैं। इसकी वजह अमेरिका की ओर से इस देश पर 2017 से लगाई गई आर्थिक पाबंदियां हैं।
- वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदूरो पर लोकतांतत्रिक अधिकारों के हनन का आरोप लगाते हुए वहां 2017 में हुए प्रदर्शनों के बाद अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने वेनेजुएला पर आर्थिक पाबंदी लगा दी। इसे अक्सर राजनीति से प्रेरित बताया जाता है। इससे महंगाई बढ़ी और खाने पीने के सामानों का आभाव हो गया।
- 2019 में वेनेजुएला की सत्ता में बैठे निकोलस मादुरो के खिलाफ विपक्षी नेता जुआन गुएदो के नेतृत्व में एक आंदोलन हुआ। यह आंदोलन संसाधन संपन्न होने के बावजूद मुद्रा स्फीति, बिजली कटौती, जरूरी सामान की कमी के कारण लोगों ने विरोध किया। इस विरोध की अगुवाई विपक्षी नेता खुआन गोइदो ने की।
- आंदोलन के दौरान ही गोईदो ने खुद के देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया, जिसे अमेरिका ने मान्यता दे दी। इस आंदोलन में पुलिस की गोली से 14 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद अमेरिका ने प्रतिबंध और कड़े कर दिए। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में इन आर्थिक पांबदियों के बारे में लिखा गया था कि इससे आम लोगों के मूल मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।
अमेरिका ने भारत पर क्यों लगाई थीं पाबंदी?
- 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया था। इसके तहत भारत ने गोपनीय तरीके से पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। भारत ने इस परमाणु परीक्षण से अमेरिका समेत दुनिया भर के देशों को चौंका दिया था। अमेरिका भारत के इस फैसले के खिलाफ था। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत से अपने राजदूत को वापस बुलाने के साथ ही भारत पर कई तरह के इकोनॉमिक प्रतिबंध लगाए थे।
- 2001 में अमेरिका में जार्ज बुश की सरकार बनने के बाद अमेरिका ने भारत पर लगाए गए आर्थिक पाबंदियों को हटाया था। अमेरिका की ओर से लगाई गई पाबंदियों के दौरान भारत को दी जाने वाली हर तरह से आर्थिक मदद को रोक दिया गया था। इससे भारत को 142 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ था। अमेरिका ने भारत को सभी तरह से डिफेंस टेक्नोलॉजी देना मना कर दिया था। साथ ही अमेरिका ने वर्ल्ड बैंक से मिलने वाले लोन या मदद को लेकर भी विरोध जताया था।
किसी भी देश में पाबंदी का असर क्या होता?
बता दें कि किसी भी देश में पाबंदी का असर उस देश में महंगाई का बढ़ना। एफडीआई का घटना। एक्सपोर्ट रेवेन्यू कम होना। देश पर कर्ज बढ़ना और इंटरेस्ट रेट बढ़ना है।
44th Day Of Russia Ukraine War
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