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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (Attack On Salman Rushdie) : सलमान रुश्दी पर हुए हमले को लेकर आईएमएसडी ने ईशनिंदा पर पुनर्विचार करने की अपील की है। यह मामला राजनीति का एक रूप है, जो मुसलमानों को अच्छे से ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है। आईएमएसडी के इस बयान का समर्थन सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, योगेंद्र यादव और मैगसेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडे सहित अन्य 60 प्रतिष्ठित लोगों ने की है।
आईएमएसडी वेबसाइट के अनुसार भारतीय मुसलमानों का यह एक मंच है। जो संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और भारत के संविधान में निहित लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्याय के मूल्यों के लिए काम करता है। सलमान रुश्दी पर हमला भय का शासन स्थापित करने के लिए डिजाइन किया गया था।
आईएमएसडी ने कहा कि किसी भी प्रमुख भारतीय मुस्लिम संगठन ने सलमान रुश्दी पर हुए इस बर्बर हमले की निंदा नहीं की है। जो काफी दुखद है। आईएमएसडी ने स्पष्ट किया कि यही चुप्पी ही इस्लामोफोबिया को धर्म को हिंसा और आतंक के पंथ के रूप में चित्रित करता है।
पश्चिमी न्यूयार्क में एक सप्ताह पहले सलमान रुश्दी पर एक 24 वर्षीय व्यक्ति हादी मटर ने एक मंच पर गर्दन और पेट में चाकू से हमला कर घायल कर दिया था। उस दौरान सलमान रुश्दी चौटौक्वा इंस्टीट्यूशन में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलने वाले थे। मुंबई में जन्मे विवादास्पद लेखक सलमान रुश्दी जिन्होंने द सैटेनिक वर्सेज लिखने के बाद ईरान के शीर्ष धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी ने मौत का फतवा जारी किया था।
जिसके कारण रुश्दी को वर्षों तक मौत की धमकियों का सामना करना पड़ा था। इसके बाद भी उन्हें हमले का सामना करना पड़ा। न्यूयार्क में हमले के बाद रुश्दी को एक स्थानीय ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया, जहां उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया तथा वहां उनकी कई घंटों तक सर्जरी की गई।
आईएमएसडी ने स्पष्ट रूप से कहा कि डर के शासन के कारण बहुत कम लोग ही सलमान रुश्दी के साथ खड़े हों, सिवाय उन इस्लामोफोबिया के जो दुनिया को यह बताने में प्रसन्न थे कि यह दम घोंटने वाला असली इस्लाम है। फतवा जारी करने के 33 साल बाद भी मुस्लिम देशों में संगठनों ने इस मामले में चुप्पी साधे रखी है।
मुस्लिम संगठनों की यह बात प्रसिद्ध है कि जब उन पर हमला किया जाता है, तो वह मानवाधिकारों की बात करते हैं। लेकिन धर्म के मामलों में जो उनसे अलग हैं, उनको समान अधिकार और सम्मान नहीं देते हैं। यह कार्य निश्चित रूप से पाखंड है, जिन कारणों से मुस्लिमों की मदद नहीं करते हैं।
आईएमएसडी ने स्पष्ट रूप से कहा कि मुसलमानों को यह तर्क देने के लिए दक्षिणपंथी हिंदू की जरूरत नहीं है कि इस्लाम और मानवाधिकार असंगत हैं। आईएमएसडी की ओर से यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि स्वतंत्र भाषण, पढ़ने, लिखने और असहमति के बिना हम अपने संविधान में निहित स्वतंत्रता को बरकरार नहीं रख सकते हैं। हम मानते हैं कि केवल इन स्वतंत्रताओं में निवेश करके हम अपने गणतंत्र के मूल्यों को बनाए रख सकते हैं।
आईएमएसडी ने कहा कि गंभीर संकट की इस घड़ी में हम सलमान रुश्दी के साथ मजबूती से खड़े हैं और उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। आईएमएसडी ने अंत में एक बार अपील की कि हम सभी मुस्लिम संगठनों से ईशनिंदा पर पुनर्विचार करने की अपील करते हैं। यह एक ऐसी राजनीति है, जो मुसलमानों को अच्छे से ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है। जो काफी दुर्भाग्यजनक है। इसके लिए मुस्लिम संगठनों को आगे आना होगा।
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