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Autonomous Weapons: आखिर क्या है किलर रोबोट्स, क्यों उठी बैन लगाने की मांग

Suman Tiwari • LAST UPDATED : December 21, 2021, 2:02 pm IST

इंडिया न्यूज:
Autonomous Weapons: जीवन और मौत का फैसला लेने की क्षमता इंसान के बजाय मशीनों के ऊपर छोड़ देने को मानवता के लिए खतरा माना जा रहा है और इसी वजह से हाल ही में किलर रोबोट्स (हथियारों से लैस ऐसी मशीनें जो इस बात का निर्णय खुद लेती हैं कि हमला करना है या मारना है) पर बैन लगाने के लिए यूनाइटेड नेशन (यूएन) की पहल पर जिनेवा में हुई 125 सदस्य देशों वाले समूह सीसीडब्ल्यू की बैठक बेनतीजा समाप्त हो गई।

क्या है किलर रोबोट्स? What are killer robots

किलर रोबोट्स या लीथल आटोनॉमस वेपंस सिस्टम-आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित ऐसी मशीनें या रोबोट्स हैं, जिनका काम इंसानी आदेश के बिना ही खुद से हमला करना या मारना होता है।

यह हथियारों से लैस ऐसी मशीनें हैं, जो अपने आर्टिफिशियल दिमाग की मदद से खुद ये फैसला लेती हैं। रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इमेज रिकग्निशन में दिन-प्रतिदिन हो रहे सुधार से किलर रोबोट्स को और बेहतर बना पाना संभव हो पा रहा है।

ड्रोन से अलग होते हैं किलर रोबोट्स

  • ड्रोन जैसे मौजूदा सेमी-आटोमेटेड हथियारों के विपरीत, किलर रोबोट्स फुली-आटोनॉमस वेपंस होते हैं। किलर रोबोट्स में ह्यूमन आपरेशन का रोल नहीं होता है, यानी किलर रोबोट्स में जीवन और मौत का फैसला पूरी तरह से इसके सेंसर, सॉफ्टवेयर और मशीन की प्रोसेस पर छोड़ दिया जाता है।
  • अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में जिन ड्रोन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था, उन्हें किलर रोबोट्स नहीं माना जाता है, क्योंकि वे कहीं दूर स्थित इंसानों द्वारा आपरेट हो रहे थे, जहां इंसान ही लक्ष्य चुन रहे थे और तय भी कर रहे थे कि उसे शूट करना है या नहीं।

कई देश कर रहे बैन लगाने की मांग Autonomous Weapons

  • कुछ देशों की ओर किलर रोबोट्स टेक्नोलॉजी में भारी-भरकम निवेश के बावजूद दुनिया के 70 से अधिक देश इस पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं। 2021 मार्च में यूनाइटेड नेशंस ने कहा था कि संभव है कि पहला आटोनॉमस ड्रोन (किलर रोबोट्स) हमला लीबिया में हुआ हो।
  • इसके बाद यूएन की पहल पर पिछले हफ्ते कन्वेंशन आन सर्टेन कन्वेंशनल वेपंस के 125 सदस्य देशों की किलर रोबोट्स पर नए नियम बनाने को लेकर 5 दिनों की महत्वपूर्ण बैठक हुई, लेकिन 16 दिसंबर को सीसीडब्ल्यू की छठी समीक्षा बैठक, लीथल आटोनॉमस वेपंस सिस्टम के विकास और उपयोग को लेकर किसी नियम को बनाए बिना ही समाप्त हो गई।
  • सीसीडब्ल्यू के गठन का उद्देश्य किलर रोबोट्स से होने वाले खतरों की पहचान करना और उससे निपटने के उपाय सुझाना है। संगठन का मानना है कि अगर किलर रोबोट्स पर पूरी तरह से बैन नहीं लग सकता है, तो कम से कम रेगुलेट करने के नियम बनने चाहिए।
  • किलर रोबोट्स पर बैन लगाने का विरोध वे देश कर रहे हैं, जिन्होंने इस टेक्नोलॉजी में जमकर निवेश किया है। माना जा रहा है कि जिनेवा में हुई इस बैठक में किलर रोबोट्स पर बैन लगाने का सबसे अधिक विरोध अमेरिका और रूस जैसे देशों ने किया।

कुछ देशों ने क्यों बताया जरूरी?  Autonomous Weapons

किलर रोबोट्स पर बैन लगाने का विरोध करने वाले देश इसे भविष्य के लिए जरूरी भी बताते हैं। उनका तर्क है कि किलर रोबोट्स युद्ध की आपात स्थिति में इंसानी सैनिकों को न केवल नुकसान से बचा सकते हैं, बल्कि इंसानी सैनिकों की तुलाना में ज्यादा तेजी से फैसले भी ले सकते हैं।

  • किलर रोबोट्स के पक्ष में तर्क देने वालों का ये भी कहना है कि रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल, और परमाणु हमलों से प्रभावित क्षेत्रों में भी इंसानों के बजाय इन मिलिट्री रोबोट्स मशीनों का उपयोग किया जा सकता है।
  • साथ ही बारूदी सुरंगों, जवाबी हमलों और जीवन के लिए खतरनाक मिशनों पर भी इन किलर रोबोट्स का इस्तेमाल क्रांतिकारी हो सकता है।

किलर रोबोट्स से मानवता को खतरा क्यों?

  • किलर रोबोट्स को लेकर आलोचकों का तर्क है कि युद्ध की स्थिति में, टेक्नोलॉजी के एडवांसमेंट के बावजूद, इंसानी जानों का फैसला मशीनों पर छोड़ देना एक घातक निर्णय है। ये न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि मानवता के लिए भी खतरा है।
  • आलोचकों का कहना है कि मशीन या किलर रोबोट्स के लिए, एक बच्चे और एक वयस्क में या फिर, हाथ में बंदूक थामे या हाथ में झाड़ू या डंडा लिए इंसान में अंतर करना मुश्किल होगा। वहीं किलर रोबोट्स के लिए हमला करने वाले दुश्मन सैनिक, घायल या आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों को अलग करना मुश्किल होगा।
  • वहीं जिनेवा कॉन्फ्रेंस के बाद रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष ने कहा, “मौलिक रूप से, जीवन और मौत के मानवीय फैसलों को सेंसर, सॉफ्टवेयर और मशीनी प्रक्रियाओं से बदलने वाला आटोनॉमस वेपंस सिस्टम, समाज के लिए नैतिक चिंताएं पैदा करता है”।
  • अलजजीरा के मुताबिक, स्टॉप किलर रोबोट्स के समन्वयक रिचर्ड मोयस ने कहा, ”सरकारों को मशीनों की ओर से लोगों की हत्या के खिलाफ मानवता के लिए एक नैतिक और कानूनी रेखा खींचने की जरूरत है”।

आटोनॉमस वेपंस सिस्टम बनाने में कौन से देश आगे?

आटोनॉमस वेपंस सिस्टम या किलर रोबोट्स के जरिए भविष्य में होने वाली किसी भी जंग में आगे रहने के लिए कई देश कमर कस चुके हैं। किलर रोबोट्स के विकास की लड़ाई में अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और इजराइल जैसे देश तो करोड़ों डॉलर निवेश भी कर चुके हैं।

  • अमेरिकी सेना की नजरें कुछ सालों में अपनी जल, थल और वायु सेना को किलर रोबोट्स से लैस करना है। वहीं, रूस भी किलर रोबोट्स को ध्यान में रखकर न्यूक्लियर हथियारों से लैस सबमरीन विकसित कर रहा है।
  • चीन ने कहा है कि वह किलर रोबोट्स को विकसित करने वाली तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का 2030 तक ग्लोबल लीडर होगा।

किलर रोबोट्स तकनीक के मामले में कहां खड़ा भारत?

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित हथियारों को लेकर हाल में भारत ने कुछ कदम उठाए जरूर हैं, लेकिन अभी भी डिफेंस में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल का रोडमैप तैयार नहीं हो पाया है।
  • भारत ने आटोनॉमस वेपंस बनाने के लिए 2019 में दो एजेंसी- डिफेंस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काउंसिल और डिफेंस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोजेक्ट एजेंसी का गठन जरूर किया है, लेकिन अभी तक इसने कोई महत्वपूर्ण परिणाम नहीं दिए हैं।
  • भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन में 1986 से ही सेंटर आॅफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स है, लेकिन डिफेंस में अक के इस्तेमाल को लेकर इससे अभी तक कुछ खास हासिल नहीं हो पाया है।
  • रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसने अभी तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित हथियारों का प्रोटोटाइप ही तैयार किया है, लेकिन सेना में शामिल किए जा सकने वाला असली हथियार (किलर रोबोट्स) बनाने से ये अभी कोसों दूर है।

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