India News(इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, जयपुर: राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी दो गुटों के बीच में इस तरह से फंस चुके हैं कि उनकी आगे की राजनीति पर सवाल उठने लगे हैं। तीसरी बार चुनाव जीतने के बाद भी इसी गुटबाजी के कारण वह मोदी 3.0 में जगह नहीं पा पाए। ऐसे में अब आगे क्या होगा, यह भविष्य के गर्त में है। प्रदेशाध्यक्ष पद से उन्हें हटाया जाना तो लगभग तय है। मर्जी के खिलाफ अध्यक्ष बने जोशी दो गुटों के बीच में ऐसे फंस गए कि वे ना दिल्ली के रहे और ना ही राज्य के। सीमित राजनीति करने वाले जोशी को प्रदेश की राजनीति में ऐसा उलझाया कि इस बार दिल्ली का मौका भी गंवा बैठे।
शुरुआती दौर की राजनीति सीपी जोशी ने कांग्रेस से की। कांग्रेस की छात्र इकाई से उन्होंने चुनाव भी लड़ा। वर्ष 2000 में भाजपा में शामिल हुए। निचले स्तर की राजनीति से सांसद तक का सफर पूरा किया। इसी दौरान 2014 में वसुंधरा राजे ने उन्हें चित्तौड़गढ़ से टिकट दिया और तब से वह लगातार तीसरी बार चुनाव जीते। उन्हें किसी गुट का नहीं माना जाता था, लेकिन अध्यक्ष बनाए जाने के बाद वह गुटबाजी में फंस गए। दरअसल, राजस्थान भाजपा की कहानी भी दिलचस्प है। यहां पर एक गुट ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के चक्कर में आलाकमान को उलझा दिया और फिर गलत फैसले करवाकर पार्टी की लोकसभा चुनाव में 11 सीटें गंवा दी। कहानी यह है कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को पहले दिल्ली में बैठे राजस्थान के सभी बड़े नेताओं ने टारगेट किया। उन्हें आलाकमान का भी समर्थन था। एक तरफ राजे अकेली थी तो दूसरी तरफ प्रभारी अरुण सिंह, संगठन महामंत्री रहे चंद्रशेखर, गजेंद्र सिंह शेखावत और ओम बिड़ला जैसे नेता थे।
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दरअसल, जिन नेताओं ने सतीश पूनिया को हटवाया था, उसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक है। साढ़े चार साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे सतीश पूनिया को भी अरूण सिंह, चंद्रशेखर और गजेंद्र शेखावत जैसे नेताओं ने ही हटवाया था। इसका कारण यह था कि पूनिया ने राज्य के दौरे कर पार्टी में अपनी हैसियत बना ली थी। वह आए दिन अकेले कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी करते तो कभी यात्रा और जिलों के दौरे करते। इससे दिल्ली में बैठे राजस्थान के कई नेताओं की चिंता बढ़ गई। उन्हें लगा कहीं सतीश पूनिया सीएम चेहरा ना बन जाए। राजे विरोधी सभी नेताओं ने मिलकर आलाकमान से अध्यक्ष बदलने को कहा।
हालांकि भाजपा आलाकमान तय कर चुका था अध्यक्ष नहीं बदला जाएगा, लेकिन मांग करने वाले नेताओं की संख्या ज्यादा देख आलाकमान ने सहमति दे दी। फिर चर्चा उठी किसे बनाया जाए। ऐसे में उस समय ओम बिड़ला ने भजनलाल शर्मा का नाम आगे बढ़ाया, लेकिन बात नहीं बनी। फिर सीपी जोशी का नाम आया और यह भी बताया जाता है कि जोशी ने अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था वह अपने इलाके तक ही ठीक हैं, लेकिन वह पूरे गुट को इसलिए ठीक लगे कि सीएम पद पर कोई खतरा नहीं था। ऐसे में जबरन जोशी को अध्यक्ष बना दिया गया। जोशी जानते थे कि उनकी चलेगी नहीं और वही हुआ भी। पूनिया को बदलने का फैसला पार्टी पर उल्टा पड़ गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक रिपोर्ट पहुंच गई कि चुनाव के समय अध्यक्ष बदलने का फैसला गलत करवा दिया गया। पीएम अध्यक्ष बदलने की मांग करने वालों पर नाराज भी हुए। राजे के साथ पूनिया गुट भी नाराज हो गया। जाटों में गलत मैसेज चला गया। राजे जाटों का चेहरा भी मानी जाती रही हैं तो पूनिया खुद जाट हैं।
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गजेंद्र सिंह शेखावत बाद में इस गुट से अलग हो गए। सूत्रों की मानें तो विधानसभा चुनाव के समय ओम बिड़ला मुख्यमंत्री पद के लिए लॉबिंग में लग गए थे। उनके एक निजी स्टाफ ने भी नौकरी छोड़ चुनाव की तैयारी की हुई थी। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में उनके समर्थक सक्रिय थे, लेकिन खुफिया तंत्र की रिपोर्ट से साफ हो गया था कि चुनाव आसान नहीं है। फिर प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कमान संभाली और चुनाव जिताया। कहा जाता है कि मोदी राजस्थान और मध्यप्रदेश में जिन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, दोनों नेता चुनाव हार गए। फिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने फैसले किए। जब आलाकमान ने साफ कर दिया विधायक में ही कोई सीएम बनेगा तो ओम बिड़ला की सिफारिश पर भजनलाल शर्मा को मौका दे दिया गया। ब्रह्मण सीएम बनने के बाद जोशी का अध्यक्ष पद छोड़ना लगभग तय था, लेकिन लोकसभा चुनाव तक उन्हें बनाए रखा गया। जोशी उम्मीद कर रहे थे कि मोदी 3.0 में उन्हें जगह मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब देर सवेर उन्हें बदला जाना तय है। अब यही सवाल है कि सांसद बन कर ही रहेंगे या उन्हें केंद्रीय संगठन में कोई जगह मिलेगी। जून में बीजेपी की नई टीम बनने वाली है।
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