India News,(इंडिया न्यूज),China: भारत के खिलाफ गलत मनसुबा रखने वाले चीन(China) की एक और शर्मशार करने वाली चाल सामने आई है। जहां 74 साल से तिब्बत पर कब्जा किए बैठा चीन अब तिब्बती नागरिकों से उनके 4 से 6 साल के बच्चों को छीन कर ऐसे बोर्डिंग स्कूलों में डाल रहा है, जहां उन्हें तिब्बत देश की संस्कृति, जीवन शैली और भाषा से भी दूर किया जा रहा है। यहीं नहीं इन बच्चों को कई वर्ष जबरन माता-पिता से दूर रखकर चीनी भाषा व हिंसक चीजें सिखाई जा रही हैं, ताकि उनकी सांस्कृतिक पहचान खत्म कर सके।
यह दावे तिब्बती के जाने माने विद्वान डॉ. ग्याल लो ने किए हैं। मिली जानकारी के अनुसार बता दें कि, इस पत्रिका को इटली की बिटर लेख के रूप में प्रकाशित किया है। जिसमें बताया गया है कि, चीन मानता है कि शिक्षा का उपयोग समाज पर नियंत्रण और देश की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए होना चाहिए। यह स्कूल तिब्बत को एक देश के रूप में बुनियादी रूप से खत्म करने के लिए उसका प्रमुख हथियार बन चुके हैं। साल 2016 से उसने 4 साल जितने छोटे बच्चों को माता-पिता से दूर करके इन स्कूलों में भेजने की नीति शुरू कर दी। इन बच्चों को चीनी संस्कृति, भाषा, हिंसक गतिविधियों आदि सिखाई जाती हैं, जो तिब्बती संस्कृति से पूरी तरह अलग है।
वहीं बात अगर डॉ. ग्याल की करे तो उन्होने चीन के मकसद के बारे में बतातें इसे मनोवैज्ञानिक क्रांति जैसा बताया इसका उद्देश्य नई पीढ़ी के मन से तिब्बती संस्कृति व पहचान को जड़ सहित उखाड़ देना है।इसके बाद ग्याल कहते है कि, ऐसा करने से तिब्बत पर अवैध कब्जे के बावजूद स्थानीय निवासी भविष्य में चीन के खिलाफ प्रतिरोध में खड़े नहीं होंगे। उल्लेखनीय है कि चीन ने साल 1949 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद से अब तक वह 12 लाख से अधिक तिब्बतियों की हत्या और उनके 6 हजार धार्मिक स्थल नष्ट कर चुका है। प्रतिरोध करने पर हजारों नागरिकों को हमेशा के लिए जेल भेज देता है।
बता दें कि, डॉ. ग्याल ने कहा कि, 40 साल से चल रहे उपनिवेशवादी शैली के बोर्डिंग स्कूल चीन को सस्ते तिब्बती श्रमिक भी दे रहे हैं। यह श्रमिक अपने घरों से दूर चीन के कई शहरों में जाकर काम करने को मजबूर हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग की है कि इन स्कूलों को बंद करवाने व छोटे बच्चों को चीन के दमन से बचाने के लिए दबाव डालें। बच्चों के शोषण की नीतियां बनाने के लिए उस पर कार्रवाई भी करें।
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