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हजारों टन पानी के वजन के बावजूद बादल क्यों नहीं गिरते नीचे? जानिए कैसे फेल होता है न्यूटन का नियम?

India News (इंडिया न्यूज), Clouds Weight: पृथ्वी में एक ऐसा बल है जो हर चीज़ को अपनी ओर खींचता है। जिसको गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। इस नियम की खोज महान वैज्ञानिक न्यूटन ने की थी। इसी गुरुत्वाकर्षण के कारण जब आप कोई चीज़ ऊपर फेंकते हैं तो वह वापस आकर धरती पर गिरती है। लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि न्यूटन का नियम इन बादलों पर क्यों लागू नहीं होता? ये बादल नीचे क्यों नहीं गिरते हैं? दरसअल, सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि बादल कैसे बनते हैं।

कैसे बनते हैं बादल?

बता दें कि, हवा में हर जगह जलवाष्प है यानी गैस के रूप में पानी है। इसलिए हम उस पानी को नहीं देख पाते. लेकिन जब जलवाष्प युक्त गर्म हवा ऊपर उठती है, तो यह ठंडी होने लगती है। इसके बाद यहां जमा पानी घना होने लगता है और जब यह अधिक घना हो जाता है, तो यह पानी की बूंदों का आकार ले लेता है। फिर इनसे बादल बनने लगते हैं।

कितना होता है बादलों का वजन?

दरअसल, जब हम धरती से बादलों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे बहुत हल्के हैं। क्योंकि वे हवा की मदद से आसानी से एक जगह से दूसरी जगह चले जाते हैं। वहीं बादल को जितना हम उन्हें हल्का समझते हैं, उससे कई गुना भारी होते हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, गर्मी से बने बादल का वजन कई टन तक हो सकता है। कई बार वजन इससे कई गुना ज्यादा होता है। आसान भाषा में कहें तो एक बादल का वजन कई हजार किलो या उससे भी ज्यादा होता है।

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बता दें कि, बदल का वजन किसी वजन मशीन से नहीं मापा जाता है। इसे मापने का एक अलग तरीका है। इसका वजन मापने के लिए सैटेलाइट तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए सैटेलाइट का रडार उपकरण बादल में कुछ तरंगें भेजता है। इससे बादल के घनत्व के हिसाब से उसके वजन का अंदाजा लगाया जा सकता है।

विज्ञान क्या कहता है?

गौरतलब है कि, हवा में नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के अणु सबसे ज्यादा होते हैं। जब बादल बनते हैं तो उनमें से कुछ हवा के अणुओं की जगह पानी के अणु ले लेते हैं। पानी का मतलब है H2O यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का अणु। हाइड्रोजन नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से कई गुना हल्का होता है। इस वजह से इतना भारी होने के बावजूद भी बादल अपने आस-पास की सूखी हवा से काफी हल्का होता है। ऐसा नहीं है कि बादलों पर गुरुत्वाकर्षण बल काम नहीं करता। बादल इसके प्रभाव में बहुत धीरे-धीरे नीचे आ रहे हैं। लेकिन कभी-कभी हल्की हवा भी चलती है और फिर वे फिर से ऊपर उठ जाते हैं। उनके नीचे गिरने की गति बहुत धीमी होती है, बादल भी ऊपर से बहुत दूर होते हैं। इसलिए आम लोगों के लिए यह सब जानना बहुत मुश्किल होता है।

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Raunak Pandey

रौनक पांडे बिहार की माटी से निकलकर दिल्ली में पत्रकारिता को सीख और समझ रहे हैं. पिछले 1.5 साल से डिजिटल मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर सक्रिय हैं। अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय राजनीति पर लिखना पसंद है.

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